भोग विलास नहीं जीवन की तलाश है गंगा, क्यों उतारे जा रहे क्रूज?
गंगा विलास क्रूज के संदर्भ में ध्रुव शुक्ल का समसामयिक आलेख
Ashok Chaturvedi
गंगा में क्रूज उतारते हुए प्रधानमंत्री को देखकर महाकवि तुलसीदास की रची रामकथा याद आने लगी। वे याद दिला गये हैं कि भवसागर को पार करने के लिए तो मनुष्य का शरीर ही एक नौका है। जल ही जीवन का आधार है और इस जलमार्ग पर अपनी-अपनी नाव खेते हुए खुद अपने आपको खोजना पड़ता है। कोई और खेवैया पार नहीं लगा सकता। गंगा में जल किसी क्रूज के लिए नहीं बह रहा है। गंगा विलास नहीं, वह तो जीवन की तलाश है।
प्रजातंत्र के जल में जीवन की सत्ता का अष्टदल कमल खिलाने का दावा करने वाला राजनीतिक दल क्या यह नहीं जानता कि देश के जीवन की चादर पृथ्वी, जल, आकाश, आग और हवा में बसे तीन गुणों से बुनी जाती है और जिसे ओढ़कर मैली न करने का उपदेश ऋषि-मुनियों ने किया है।
इस चादर को मैली करने का अधिकार राजा और प्रजा दोनों को नहीं है। संत कबीर भी तो कह गये हैं कि — आठ कॅंवल दस चरखा डोले, पाॅंच तत्व गुन तीनी चदरिया। दास कबीर जतन सें ओढ़ी, ज्यौं की त्यौं धर दीनी चदरिया।
धर्मशास्त्र के इतिहास में यह नियम अंकित है कि-वनों, पर्वतों, पवित्र नदियों और तीर्थों के स्वामी नहीं होते। इन पर किसी का प्रभुत्व नहीं हो सकता। फिर इस नियम के विरुद्ध गंगा में पर्यटन-व्यापार के लिए गंगा विलास क्रूज क्यों उतारे जा रहे हैं? क्या इससे राम की वह गंगा मैली होने से बची रहेगी जिसे पार करने के लिए राम केवट से नाव माॅंगते हैं? राम गंगा के निर्मल जल की तरंगों को देखकर पुलकित होते हैं और उसे पृथ्वी पर उतार लाने की भगीरथी कथाएं याद करते हैं।
रामायण पढ़ना भूलकर रामराज्य का नारा लगाना कितना पाखण्ड से भरा जान पड़ता है। गंगा में उतरते क्रूज को देखकर किनारों पर खड़ी नौकाएं और नाविक अपने जीवन में आने वाली विषमता से उपजने वाले दुखों के बारे में सोचकर कितने अकेले पड़ गये होंगे। यह विलासी क्रूज उस बिहार प्रान्त से भी गुजरेगा जो सदियों तक बुद्ध के महाज्ञान की रौशनी में जीवन के दुखों की पहचान का केन्द्र रहा।
बिहार के वर्तमान जीवन के दुखों के अंधेरे में ‘लालटेन’ जलाये रखने का दावा करने वाले एक राजनीतिक दल का मंत्री भी रामायण पढ़ना भूल गया है। यह मंत्री उसी राजनीतिक विचारधारा का प्रतिनिधि है जो प्रजातंत्र के बहते हुए मुक्त जल को जात-पांत के छोटे-छोटे तालाबों छेंककर में राजनीतिक नौका बिहार कर रही है और जल सड़ रहा है।