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बुंदेलखंड की बर्बादी की कहानी क्यों लिख रही सरकार?

सरकार को बताना होगा कि आप बुंदेलखंड की धरती, मानव, वन संपदा और जीव जगत की बर्बादी की कहानी क्यों लिख रहे हो..?

डॉ धरणेन्द्र जैन

मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड का छतरपुर जिला खनिज,वन,वन्य जीव,पुरातात्विक स्थल पर्यटन स्थल एवं सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत सम्पन्न जिला है। छतरपुर जिले में आयरन,ग्रेनाइट,हीरे सॉप स्टोन आदि के प्रचुर भंडार है या होने के साक्ष्य मिले हैं। यहाँ तक कि यूरेनियम के भी भंडार होने के साक्ष्य मिले है।साथ ही अनेक प्रकार की वन संपदा जैसे तेंदू पता,जड़ी बूटियां,महुआ,गुली,सागौन सहित अनेक प्रजाति के वृक्ष यहाँ हैं।अगर प्राकृतिक स्थल की बात करें तो भीम कुंड, अर्जुन कुंड,जटाशंकर जैसे प्राकृतिक स्थल हैं जिनका अस्तित्व और आंतरिक संरचना आज भी एक रहस्य है। साथ ही इस जिले की संस्कृति औऱ भाषा की अपनी एक अलग पहचान है।

इस जिले के एक क्षेत्र विशेष के बारे में वातानुकूलित कमरे में मिनरल वाटर की बोतलों के बीच ऐसी सफेद लिबास में लिपटी हुई देहों और नौकरशाहों ने जो रात चार बजे से महुआ के पेड़ के नीचे बैठकर महुआ बीनकर अपने परिवार के भरण पोषण की आर्थिकी से अनिभिज्ञ हैं,जो 45-46 डिग्री के तापमान में तेंदू पत्ते तोड़कर परिवार के भरण पोषण की आर्थिकी से अनिभिज्ञ है, जिन्होंने वृक्षों के नीचे नमक और प्याज के साथ सूखी रोटी नहीं खाई, जिन्होंने जंगल की शुद्ध वायु को आत्मसात नहीं किया, जिन्होंने मूक पशुओं की पीढ़ा को महसूस नहीं किया उन्होंने एक निर्णय पारित कर दिया कि इस क्षेत्र विशेष के हीरों का उत्खनन किया जाएगा और इस कार्य हेतु लाखों पेड़ो का कत्लेआम किया जायेगा।

उन्हें मालूम नहीं कि सैकड़ो वर्षों से अनवरत रूप से यह वृक्ष इस क्षेत्र के मानव को ऑक्सीजन दे रहें है और उनकी आर्थिकी या भरण पोषण का साधन हैं। साथ ही उक्त जंगल मे रह रहे पशु-पक्षियों,जीवों को संरक्षण दे रहे हैं।

वस्तुतः बुंदेलखंड के छतरपुर जिले की बकस्वाहा तहसील जिसका अधिकांश क्षेत्र बड़ामलहरा से लगा हुआ क्षेत्र है। उक्त क्षेत्र में एक सर्वे के अनुसार अत्यंत कीमती रत्न हीरे के अपार भंडार है और सरकार इसका उत्खनन कराना चाहती है। लगभग 382 हेक्टेयर जमीन को लीज पर देकर हीरो का उत्खनन कार्य होना है। याद रखना यह सिर्फ शासकीय आंकड़ा है आप जानते है कि 382 हेक्टेयर की जगह न जाने कितने हेक्टेयर जमीन पर उत्खनन होगा यह आपकी कल्पना के परे है।

हीरों के उत्खनन हेतु शासकीय निर्णय पर मेरे कुछ ज्वलंत सवाल हैं, जो आपसे, शासन से और प्रशासन से है..

1 इस क्षेत्र की बायोडायवर्सिटी का क्या होगा, जैव विविधता में आने बालेअसंतुलन से उत्पन्न दुष्प्रभावों के बारे में सरकार की क्या सोच है?

2 शासकीय आंकड़ो के अनुसार लगभग 2.15 लाख वृक्षकाटे जायेगे पर यह मात्र एक आंकड़ा है मैरे नज़रिये से लगभग छोटे बड़े 10 लाख वृक्षों की आहुति दी जाएगी। उक्त वृक्ष कटने से प्राकृतिक असंतुलन उत्पन्त होगा उसकी भरपाई कौन और कैसे करेगा?

3 जंगल मे तेंदू पत्ता,महुवा,अचार(चिरौंजी) सहित अनेक ऐसे वृक्ष है जो वनोपज देते हैं और इस क्षेत्र की गरीब जनता के भरण पोषण का साधन हैं,उस गरीब जनता के भरण पोषण हेतु सरकार की क्या योजना है?

4 यह कि काटे जाने जंगल मे अनगिनित जीव जंतु जैसे तेंदुआ,भालू,मोर,हिरण,जंगली सुअर,नील गाय सहित तमाम बड़े जानवर इसके साथ रेंगने वाले जीव,पक्षी सहित तमाम प्रकार की जीव जंतु की प्रजातियों के घरोंदों इस जंगल मे है यूं कहें कि यह निवासरत है। इन मूक जीव जंतुओं का क्या होगा? इनके घरौंदों को उजाड़ने या इनकी अप्रत्यक्ष हत्या की जिम्मेदारी किसकी होगी?

5 इस क्षेत्र में और उसके आस पास रहने बाली मानव प्रजाति को वृक्ष जो शुद्ध प्राण वायु (ऑक्सीजन) उपलब्ध कराते है उसकी भरपाई कौन औऱ कैसे करेगा?

6 अनुमान से अधिक हीरों के भंडार के उत्खनन से प्राप्त अगणित राजस्व से इस क्षेत्र और इस क्षेत्र के धरतीपुत्रों को क्या मिलेगा ?

7 उत्खनित हीरों से प्राप्त राजस्व का क्या और कैसे उपयोग होगा ?

8 निश्चित ही जैसा अन्य प्रोजेक्ट में होता है उत्खनन का क्षेत्र बाद में और बढ़ाया जायेगा तथा जंगल उजाड़े जाएंगे,आगे चलकर जो ग्राम बीच मे आएंगे वो उजाड़े जाएंगे इसके लिये सरकार का क्या कहना है?

सवाल कठिन हैं और सरकार के पास इसके कल्पनात्मक जवाब भी होंगे जैसे कुछ जनप्रतिनिधि अज्ञानतावश या भृष्टाचार के ठनठन करते सिक्को की चाहत में इस प्रोजेक्ट में कोई बुराई नहीं देखकर उसका समर्थन कर रहे हैं।

जब मामला आगे बढ़ेगा तो सरकार,प्रशासन की तरफ से संभावित बचाव होगा कि एक दूसरा जंगल खड़ा करेंगे? पर क्या यह सरकार की अभी तक की कार्यप्रणाली देखकर संभव नहीं लगता है। मैं कहता हूँ कभी नहीं क्योंकि हमने और आपने नर्मदा किनारे के वृक्षारोपण के आंकड़े, सड़क निर्माण में काटे गये वृक्षों के बदले वृक्ष लगाने के आंकड़े,,बांध निर्माण में जल समाधि लेने बाले वृक्षों के बदले वृक्ष लगाने के आंकड़े और उनकी जमीनी हकीकत देखी है।

सरकार की तरफ से दूसरा बचाव आ सकता है हम स्थानीय लोगों को रोजगार देंगे, क्षेत्र का विकास करेंगे पर आप जानते है बुंदेलखंड की धरती के सीने पर प्रहार करके ग्रेनाइड ,हीरे सहित अन्य खनिज पदार्थों का दोहन किया जा रहा है उसके बदले क्या मिला इस क्षेत्र और उसकी जनता को? बुंदेलखंड में स्थित बीना रिफायनरी की स्थापना से क्या मिला इस क्षेत्र के वासियों को, प्रदूषण के अलावा?

बुंदेलखंड की धरती से पहले से ही हीरो का उत्खनन हो रहा है, ग्रेनाइड का उत्खनन हो रहा है इसके साथ ही अन्य खनिज पदार्थों का उत्खनन हो रहा है पर यहाँ की अधिकांश जनता रोटी के लिये दर दर भटकती है। रोटी के लिये यहाँ के निवासी दिल्ली,हरियाणा,पंजाब,आंध्रप्रदेश सहित तमाम अन्य प्रदेशों में पलायन कर रोजगार तलाशते है। यहाँ भी यही होने वाला है जो सारे देश मे या इस क्षेत्र में पहले हुआ है।आज सरकार को बताना होगा कि आप बुंदेलखंड की धरती, मानव, वन संपदा और जीव जगत की बर्बादी की कहानी क्यों लिख रहे हो..?

हमें याद रखना चाहिये जब भी सरकारों ने विकास के नाम पर किसी क्षेत्र विशेष का दोहन किया, प्रकृति से छेड़छाड़ की या प्राकृतिक असंतुलन उत्पन्न किया तो इसका परिणाम उस क्षेत्र की जनता को भुगतना पड़ा है। इसके ताज़े उदाहरण उत्तराखंड की धरती पर घटित घटनाएं हैं। क्योंकि प्रकृति अपना संतुलन बनाने में सक्षम है। इस सक्षमता को आप कोविड -19 काल मे ऑक्सीजन की किल्लत से आप समझ सकते हैं। यह खतरे की घंटी है जिसे हम सभी को समझना होगा।

आज पूरे देश से इस प्रोजेक्ट के विरोध की खबरें आ रहीं हैं। देश के तमाम पर्यावरणविद आवाज़ उठा रहे है। अनेक सामाजिक संस्थाएं इस प्रोजेक्ट के खिलाफ शंखनाद कर रहीं हैं। जिसमें आगाज़ ए पहल संगठित रूप से लड़ाई लड़कर सभी को संगठित कर एक मंच उपलब्ध करा रही है।

सरकार को इस प्रोजेक्ट का पुनरावलोकन करना चाहिये, सभी की चिंताओं के समझना चाहिये, स्थानीय लोगो से संवाद,विरोध करने काली संस्थाओं से संवाद बड़े स्तर पर करना चाहिये क्योंकि लोकतंत्र में निर्णय भी लोकतांत्रिक तरीके से होने चाहिये।

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