डॉ. राकेश पाठक
० अंतिम संस्कार के लिये टोकन बंट रहे हैं और
एक गिरोह शौचालय का कीर्तन कर रहा।
० ज़िंदा रहने को ऑक्सीजन नहीं और बी-पॉजिटिव
गिरोह श्मशान में सोहर गाने का आह्वान कर रहा है।
० कोई और सरकार होती तो यही लोग सड़कों
पर नग्न होकर नागिन डांस कर रहे होते।
आधुनिक युग की सबसे बड़ी आपदा से देश त्राहिमाम कर रहा है। श्मशान से लेकर क़ब्रिस्तान तक धरती छोटी पड़ रही है।
और एक गिरोह सकारात्मकता का कीर्तन कर रहा है।
इधर चिता पर रखने को लकड़ियां कम पड़ रहीं हैं तो उधर कब्र खोदने वाले हाथों में ठेठ पड़ गयीं हैं।
इतिहास में पहली बार अंतिम संस्कार के लिये घण्टों की वेटिंग है…टोकन बंट रहे हैं…परिजनों के शव लेकर लोग दर दर भटक रहे हैं।
और गिरोह कह रहा है कि हम आंखें मीच लें और ऑल इज़ वेल पोयम कोरस में गायें…!
तिपहिया की छत पर शव बांध कर ले जाया जा रहा है तो कहीं ई रिक्शा में बेबस मां के कदमों में बेटे की लाश औंधे मुंह पड़ी है। अस्पतालों की देहरी पर पछाड़ ख़ाकर लोग मर रहे हैं..!
और गिरोह कह रहा है कि सब ठीक है..सकारात्मक रहिये।
साँसों की डोर थामने को न ऑक्सीजन है और न इंजेक्शन। अस्पलात में न बिस्तर हैं न डैड हाउस में लाश रखने की जगह।
सामूहिक चिताओं के धुंए से हर शहर का आसमान धुंधला हो रहा है..!
और ‘नमो रोगियों’ का गिरोह चाहता है कि सकारात्मकता की सजी संवरी चादर से लाशों को ढंक दिया जाए।
चिताओं के धुएं की आसमान छूती काली लक़ीर को सिस्टम की जयजयकार के हुंकार से उड़ा दिया जाए।
गर्म और खारे आंसुओं का सैलाब बस्ती बस्ती…शहर शहर उमड़ा पड़ा है…सिसकियों और चीत्कार की हृदयविदारक आवाज़ें सातवें आसमान तक पहुंच रहीं हैं।
और ऐसे दारुण समय में एक गिरोह सकारात्मकता का राग भीम पलासी छेड़े हुये है…! ये गिरोह चाहता है कि लोगों का करुण क्रंदन इनके ढोलक,खड़ताल,मृदंग के शोर में दब जाए।
यह बी-पॉजिटिव कैम्पेन दरअसल ‘सिस्टम’ की नाकाम नंगई को निक्कर पहनाने की निर्लज्ज कोशिश है।
इस गिरोह को दम दौड़ती मानवता से कोई लेना देना है और न अपने इंसान होने के अपने मामूली फर्ज़ से।
इसकी एकमेव चिंता अपने आराध्य की छवि को बचाना है।
यह गिरोह ‘ श्रीमान सिस्टम जी उर्फ़ नरेंद्र वल्द दामोदर’ की निराट नाकामी पर धूल डालने के लिये आपसे शुतुरमुर्ग बनने का आह्वान कर रहा है।
तो जैसे ही कोरोना की दूसरी लहर ने कहर बरपाना शुरू किया यह निर्लज्ज गिरोह सकारात्मकता की कीर्तन मंडली बन कर आ गया।
देश में जैसे ही अस्पतालों, दवाओं,ऑक्सीजन का हाहाकार मचा इस गिरोह ने माल तैयार किया कि अगर घर में दस लोगों को दस्त लग जाएं तो क्या दस शौचालय
होने चाहिये..? इसी घटिया पोस्ट में पचास मेहमानों के आने पर दूध के इंतिज़ाम का घटिया कुतर्क देना शुरू कर दिया।
हे मशीनी खिलौनो, किसी ने नहीं कहा कि दस लाख लोगों के शहर में दस लाख हॉस्पिटल बेड हों। लेकिन इतने तो हों कि लोग सड़क पर तड़पते हुए न मरें।
जांच लीजिये आपकी फ्रेंड लिस्ट में जितने मोदी समर्थक हैं उन सबकी वॉल पर ये वाली पोस्ट एक या दो दिन में ही चिपकी मिलेगी।
हद ये है कि इस महान आपदा के समय ऐसे लोगों की वॉल पर आपको एक भी पोस्ट नहीं मिलेगी जिससे लगे कि देश किसी बड़े संकट से गुज़र रहा है।
उनकी वॉल से लगेगा कि ‘अगर फ़िरदौस बर रूये ज़मी अस्त… तो सिस्टम जी के अवतरित होने के बाद ही ‘हमी अस्तो हमी अस्तो हमी अस्त’ हुआ है।
पिछले कोरोना काल में इस गिरोह ने जमात के नाम पर अपनी नफ़रत से देश की धमनियों में ज़हर भरा था लेकिन इस दफ़ा ऐसा कोई छाया-शत्रु नहीं मिल रहा तो बी-पॉजिटिव के नाम के झांझ-मंजीरे लेकर सिस्टम जी को
बचाने गली गली नाच रहे हैं।
विनती : हे मशीनी खिलौनो,
कुछ समय के लिये मनुष्य बन जाइये।
जब मानवता से यह महान दुःख छंट जाए तब फिर जॉम्बीज में बदल जाइये। हम कुछ न कहेंगे।
क्योंकि हम जानते हैं कि…
जब भी यह महान आपदा ख़त्म होगी उसके अगले चौबीस घंटे में आप सकारात्मकता का ये दुशाला फेंक कर एक बार फिर अपने उसी एजेंडे पर लौट कर तांडव करेंगे।
अगर किसी को आपके सुधरने की उम्मीद है तो क्षमा कीजिये वो बहुत भोला भाला इंसान है…आपको ठीक से पहचान नहीं पाया।