घोटालों के लिए इंडियन इंडेक्स में सबसे शीर्ष पर रहने वाले मध्यप्रदेश में जबतक घोटाला न हो तब तक न सरकार को चैन मिलता है और न नौकरशाही को। पिछले दिनों पटवारी भर्ती घोटाले के बाद अब प्रदेश में धार्मिक स्थलों की भूमि हड़पने का घोटाला सामने आया है। मजे की बात ये है कि इस घोटाले में नेता, अफसर,और तमाम रसूखदार लोग शामिल हैं,किन्तु कोई किसी के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए तैयार नहीं है । मप्र में धार्मिक सम्पत्तियों के रखरखाव का जिम्मा माफ़ी औकाफ विभाग पर है।
मप्र में धार्मिक आस्था वाली सरकार है। लेकिन ये सरकार मंदिरों -मस्जिदों की जमीनों को पंजीरी की तरह तकसीम करने में ज्यादा भरोसा करती है । प्रदेश में एक तरफ धार्मिक स्थलों को लोक के रूप में विकसित किया जा रहा है ,दूसरी तरफ इन मंदिरों के रखरखाव के लिए अतीत में राजे-रजवाड़ों द्वारा दी गयी जमीन को खुर्दबुर्द भी किया जा रहा है।
ताजा सूचना ये है कि अकेले ग्वालियर-चंबल संभाग में ही धार्मिक विभाग की करीब 1200 करोड़ रूपये की मंदिरों की जमीन एक दर्जन रसूखदार लोगों ने हड़प ली ,और सरकार कुछ नहीं कर पायी। संभाग स्तर पर जब खसरों का मिलान किया गया तो ये जमीन घोटाला पकड़ में आये । अब मौजूदा अधिकारी सर पकड़कर बैठे है। मजे की बात ये है कि मंदिरों की जमीन हड़पने वालों में एक पूर्व न्यायाधीश का नाम भी शामिल है । हाईकोर्ट के इन पूर्व न्यायाधीश का नाम बाकायदा खसरे में अंकित है।
ग्वालियर के जगनापुरा हल्के में स्थित राम जानकी मंदिर को तत्कालीन सिंधिया शासकों ने तीन एकड़ जमीन दी थी किन्तु अब इस जमीन पर एनके कुमार मोदी का नाम दर्ज है। मोदी जी मप्र हाईकोर्ट के न्यायाधीश रह चुके हैं और सिंधिया राजघराने के विधिक सलाहकार भी हैं। मोदी जी के पुत्र अंकुर मोदी ग्वालियर के अतिरिक्त महाधिवक्ता हैं। उनसे कोई कैसे जमीन वापस ले सकता है ?
सिंधिया की पुरानी रियासत के रायरू हल्के में ग्राम कुतवार में देवीजी का मंदिर है । इस मंदिर की जमीन पर बेनाम लोगों के नाम दर्ज हैं। रुद्रपुरा में बाबा कपूर दरगाह की जमीन पर रामदास प्यारेलाल दर्ज का नाम लिख दिया गया है यहां तक कि चबूतरा माताजी देह हजा की जमीन भी नहीं छोड़ी गयी। रामबांके रामकुई मंदिर की जमीन अब भगवान के नाम नहीं किन्हीं जगन्नाथ पुत्र देवी के नाम लिखी जा चुकी है कोटा लश्कर में शिवसत मंदिर की जमीन पर अब लक्ष्मण सिंह पुत्र मुंशी का नाम लिखा जा चुका है देवस्थान मूर्ती साहब की बगिया की जमीन का मालिक अब अम्रेश्वरी देवी पत्नी किशनपाल को बना दिया गया है।
ग्वालियर शहर के बीचों बीच निम्बालकर की गोठ में स्थित मंदिर श्री मंगलमुर्ति की जमीन पर भी अब भगवान के नहीं निजी लोगों के नाम दर्ज हैं। गंगा मालनपुर में भुजबला देवस्थान कि जमीन भी अब निजी हो चुकी है और देवी जी देखती रह गयीं। गौसपुरा में मंदिर सोमेश्वर महादेव ,गड़ाई पूरा में मंदिर गणेश जी ,ग्राम बड़ा में बाबा कपूर की दरगाह और बहोड़ापुर में हनुमान मंदिर की जमीन अब आनंदपुर ट्रस्ट के नाम लिखी जा चुकी है। माफी औकाफ विभाग इस तरह के भूमि घोटाले पर मौन है। संभागीय माफ़ी अधिकारी कहते हैं कि उन्होंने मामला समभग आयुक्त के संज्ञान में ला दिया ह। कलेक्टर भी कहते हैं कि हमने मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं संभाग आयुक्त ने भी इस जमीन घोटाले की रिपोर्ट शासन को भेजकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली है। और सरकार के पास तो इस घोटाले पर कार्रवाई करने के लिए फुरसत ही कहाँ है।
इस जमीन घोटाले में रसूखदारों की मदद राजस्व विभाग का अमला भी शामिल है। अगर पटवारी ये हेरफेर न करे तो उसे राजस्व निरीक्षक हड़काता है । राजस्व निरीक्षक का जमीर जाग जाये तो उसे नायब तहसीलदार हड़काता है। नायब तहसीलदार भी भगवान से डर जाए तो उसे एसडीएम हड़का देता है। सबसे ऊपर तो कलेक्टर साहब होते ही हैं ,जिन्हें किसी का भय नहीं होता। सरकार का भी नहीं और भगवान का भी नहीं। वे डरते हैं तो नेताओं से ,मंत्रियों,विधायकों और सांसदों से। उनके कहने पर वे मंदिरों की जमीं क्या मंदिर तक किसी के भी नाम लिख सकते हैं। लिख चुके हैं।
ग्वालियर में 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की सेनानी के शहीद स्थल गंगादास महाराज की बड़ी शाला की सैकड़ों बीघा जमीन इसी तरह हड़प ली गय। बेचारे महंत जी अदालतों के चक्कर काट-काटकर तक गए। मध्यप्रदेश में ऐसे करीब 750 धार्मिक स्थल हैं जिन्हें आजादी के पहले के सत्ता प्रतिष्ठान ने तमाम जमीने अता फरमायी थीं लेकिन आज की सरकारों ने इन तमाम जमीनों को रसूखदारों के नाम लिख दिया। उस पर से तुर्रा ये कि सरकार तो धार्मिक मिजाज की सरकार है।
लोक पर लोक बनाये जा रही है। धार्मिक स्थलों की जमीनों पर स्वत्व के अमले में सिंधिया परिवार के एक दर्जन से अधिक ट्रस्टों में से अनेक का नाम लिया जाता रहा है। अनेक मामले अदालतों में विचाराधीन हैं लेकिन भगवान की मदद कोई नहीं कर पा रहा। भगवान लाचार हैं भूमाफिया के समाने। मध्य्प्रदेश सरकार का धर्मस्व विभाग मंदिरों की समपत्ति की रक्षा करने के अलावा सब करता है । विभाग को मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना, सिंधु दर्शन योजना,कैलाश मानसरोवर दर्शन योजना ,पाकिस्तान स्थित हिंगलाज देवी मंदिर और श्री लंका स्थित सीता माता मंदिर दर्शन योजना से ही फुरसत नहीं मिलती। ऐसे में सरकार मंदिरों की जमीन बचाये तो आखिर कैसे बचाये ? कहने को शासन ने प्रदेश में दर्जनों पूजाघरों के प्रबंधन के लिए समितियां,निगम और मंडल बना रखे हैं लेकिन कोई भी मंदिरों की जमीनों को बचने की गारंटी नहीं देता।
मध्यप्रदेश सरकार के क़ानून के हिसाब से प्रदेश के ऐसे मंदिर जिनके संबंध में भू-अभिलेख में भूमि-स्वामी के रूप में मंदिर की मूर्ति का नाम दर्ज है, उन मंदिरों को शासन संधारित मंदिर की श्रैणी में रखते हुए कलेक्टर को भू-अभिलेख में ”प्रबंधक” के रूप में दर्ज किया जाता है। शासन संधारित मंदिरों में शासन द्वारा मुख्यत: मंदिरों का जीर्णोद्धार एवं धर्मशाला का निर्माण कराया जाता है। इनमें कार्यरत पुजारियों की नियुक्ति, पदच्युक्ति तथा मानदेय वितरण का कार्य कलेक्टर के माध्यम से विभाग द्वारा कराया जाता हैलेकिन शायद ही ऐसा कोई दिलेर कलेक्टर प्रदेश में आया हो जिसने मंदरों की जमीनों से घोटाला कर काबिज हुए भू-माफिया को बेदखल करने में रूचि ली हो।
मध्य्प्रदेश में धार्मिक मामलों का विभाग स्वर्गीय लक्ष्मीकांत शर्मा के अलावा श्रीमती यशोधरा राजे सिंधिया के पास भी रहा लेकिन वे दोनों भी भगवान की समपत्ति नहीं बचा पाए । अब सुश्री ऊषा ठाकुर के पास पूजास्थलों की समपत्ति की सुरक्षा का दायित्व है ,लेकिन वे भी इस विभाग के कामकाज में ज्यादा दखल नहीं देतीं और नौकरशाही को तो इस काम के लिए फुरसत ही नहीं ह। नौकरशाही तो भगवान के बजाय मतदाताओं को तीर्थ दर्शन करने की योजनाओं पर अमल करने में लगी है ,क्योंकि ये चुनाव का साल है।मजे की बात ये है कि पूजाघरों की जमीन हड़पने के इस घोटाले की सुध विपक्ष को भी नहीं है। विपक्ष भी मध्यप्रदेश में घोटालों की फेहरिस्त बना,बनाकर तक गया ह। कार्रवाई किसी के ऊपर होती नहीं ह। बीते 18 साल में प्रदेश की भाजपा सरकार में कोई काम बिना घोटाले के हुआ हो ऐसा मुझे याद नहीं आता।
मंदिरों की संपत्ति के मामले में मप्र सरकार का रवैया ढुलमुल है।हाल ही में सरकार ने नया नियम बना दिया है कि मध्य प्रदेश में मंदिर से जुड़ी जमीन को नीलाम करने या लीज पर देने के लिए कलेक्टर से इजाजत नहीं लेनी पड़ेगी. अब मंदिर के पुजारी ही मंदिर से जुड़ी जमीन को नीलाम या लीज पर देने का काम कर सकेंगे। ये नियम चुनाव को देखते हुए ही किया गया है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)