ओमप्रकाश श्रीवास्तव
शीर्षक पढ़कर कुछ अजीब सा लगा न? हमें बचपन से ही सिखाया गया है कि जरूरत पड़ने पर देश के लिए मर-मिटना देश की सर्वोच्च सेवा है। सही भी है, परंतु व्यवहार में सभी के लिए न तो संभव है और न ही आवश्यक। देश पर संकट तब आता है जब देश कमजोर होता है। संकटों से पार पाने के लिए के लिए राष्ट्र का शक्तिशाली होना आवश्यक है। सामान्य रूप से लगता है कि शक्तिशाली होने का केवल एक ही अर्थ है कि सेना इतनी ताकतवर हो कि दुश्मन आंख उठाकर भी न देख सके, इतने परमाणु बम हों कि शत्रु देश का नामोनिशान मिटा सकें। यदि आप ऐसा सोचते हैं तो जरा रुकिये। सोचिये इस संसार में शक्ति के कितने रूप हैं। भौतिक बल निश्चित ही शक्ति है परंतु उसके अलावा धन भी शक्ति है जिसके बल पर संसार चलता है। समाज में आपके अच्छे संपर्क हैं तो वह भी आपकी शक्ति है। आपका ज्ञान भी आपकी शक्ति है। यदि आपकी छबि अच्छे सहयोगी पड़ोसी की बनी है और लोग आपको एक अच्छे नागरिक के रूप में सम्मान देते हैं तो वह भी आपकी शक्ति है। आप के पास कोई ऐसा कौशल है जो वक्त जरूरत दूसरों के काम आता है तो वह भी आपकी शक्ति है।
अंतर्राष्ट्रीय मामलों में भी यह सही है। इसमें राष्ट्रों की ताकत को दो भागों में बांटते हैं – हार्ड पॉवर और सॉफ्ट पॉवर। हार्ड पॉवर से तात्पर्य सैन्य और आर्थिक क्षमता से है । वहीं सॉफ्ट पॉवर का अर्थ है देश की सभ्यता, संस्कृति, कला, पुरातत्व, संगीत, साहित्य, धर्म, दर्शन, खानपान आदि से विश्व को प्रभावित करने की देश की क्षमता। सॉफ्ट पॉवर से विश्व का दिल और दिमाग जीता जाता है।
कोई भी देश केवल सैन्य ताकत के बल पर विश्व का सहयोग व सम्मान नहीं पा सकता। उत्तरी कोरिया को देखिए। बहुत बड़ी सैन्य ताकत है परंतु पूरे संसार से कटा हुआ है। उसके नागरिकों को न तो विश्व में कोई जानता है न ही उनका कोई सम्मान है। चीन के पास तो सैन्य और आर्थिक दोनों ताकतें हैं परंतु उसे भी विश्व राजनय में कभी भी आत्मिक सम्मान नहीं मिल सका। सीआईए वर्ल्ड फैक्टबुक के अनुसार विश्व के 36 देशों में नियमित सेना ही नहीं है। फिर भी यह देश सुरक्षित हैं। दरअस्ल वर्तमान विश्व के राष्ट्र आपस में इस प्रकार अंतर्संबंधित हो गये है कि यह संभव ही नहीं है कि कोई बलशाली राष्ट्र सैन्यबल में कमजोर राष्ट्र को हड़प ले।
देश के शक्तिशाली होने में नि:संदेह सैन्य शक्ति का योगदान है परंतु यही केवल एकमात्र कारण नहीं है। सेना राष्ट्र की भौगोलिक सीमाओं की रक्षा कर सकती है, आपदाओं में नागरिकों की मदद कर सकती है परंतु यही सब कुछ नहीं है। राष्ट्र में मौजूद सभी का उत्थान ही राष्ट्रवाद है तभी देश शक्तिशाली बनता है। देश में उद्योग धंधे होंगे, उत्पादन होगा, रोजगार होगा तभी अर्थव्यवस्था उन्नत होगी । उन्नत अर्थव्यवस्था में सेना को शक्तिशाली बनाने के लिए हथियार खरीदने, सैन्यबल का विस्तार करने, प्रशिक्षण, सैन्य अभ्यास आदि के लिए अधिक बजट उपलब्ध होगा। इसके लिए इसके लिए नागरिकों का सीधा योगदान है। दूसरे विश्वयुद्ध में लगभग बर्बाद हो चुके जापान के नागरिकों ने अपनी कर्मठता, कुशलता और व्यवहार से उसे विश्व की प्रमुख आर्थिक ताकत बना दिया। आज भी जापान के पास परमाणुबम नहीं है फिर भी बड़ी से बड़ी सैन्य शक्ति उसकी ओर आंख उठाकर भी नहीं देख सकती।
देश की सरकारें अपने नागरिकों के विचारों के अनुरूप निर्णय लेती हैं और दूसरे देशों के नागरिक आपकी सॉफ्ट पॉवर से ज्यादा प्रभावित होते हैं। गांधी जी के अहिंसक आंदोलन से भारत के लोगों की पूरे विश्व में पहचान शांति और न्यायप्रिय लोगों के रूप में बनी। हाल में ही भारत के योग को विश्व भर में अपनाया गया । पूरे विश्व में 2 करोड़ से अधिक अनिवासी भारतीय अपनी कार्यकुशलता और व्यवहार की छाप छोड़ रहे हैं। यह हमारी सॉफ्ट पॉवर है । ओलंपिक खेल कराने के लिए विश्व भर के देश लालायित रहते हैं क्योंकि इस माध्यम से वे अपनी आर्थिक और तकनीकी क्षमताओं के साथ ही साथ सभ्यता, संस्कृति, कला, साहित्य का भी प्रचार करते हैं। हमारे देश के पास इतिहास, कला, संस्कृति, पुरातत्व, धर्म, दर्शन आदि की प्राचीनतम विरासत है। चार धर्म हिन्दू, बौद्ध, जैन और सिख तो इसी धरती पर पैदा हुए इसके अलावा मुस्लिम, ईसाई धर्मों के अनुयायी और प्राचीन धार्मिक स्थल भी भारत में हैं। भारत के धर्म, दर्शन और पुरातत्व को देखने समझने के लिए विश्व भर से पर्यटक आते हैं। इस सॉफ्ट पॉवर को बढ़ाने में नागरिकों का योगदान सर्वोपरि होता है।
इन विचारों की पृष्ठभूमि में देखें कि नागरिक अपने देश की कैसे सेवा कर सकते हैं। एक शिक्षक ईमानदारी से पढ़कार अपने छात्रों को अच्छा नागरिक बनाता है, एक अधिकारी उद्योग लगाने में होने वाली कठिनाइयां दूर कर मदद करता है, पुलिस अधिकारी और न्यायाधीश अपनी कार्यशैली से न्याय प्रशासन में विश्वास पैदा करते हैं, एक उद्यमी विश्वस्तरीय उत्पाद पैदा करता है, एक टैक्सीवाला या गाइड पर्यटकों से ईमानदार व्यवहार करता है, एक डॉक्टर अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं देता है, फिल्म जगत उत्कृष्ट फिल्में बनाकर विश्व का ध्यान खींचता है, देश की सांवैधानिक संस्थाओं के प्रमुख उनकी निष्पक्षता और स्वतंत्रता बहाल रखते हैं, खिलाड़ी विश्वस्तरीय खेल प्रतियोगिताएं जीतते हैं, देश का कोई साहित्यकार या वैज्ञानिक नोबेल पुरुस्कार जीतते हैं तो वे भी देश को मजबूत बनाते हैं। ऐसे हजारों उदाहरण हो सकते हैं।
समय ही जीवन है। शहादत देने वाला देश के लिए अपने जीवन का पूरा समय समर्पित कर देता है। हम अपने व्यवसाय में, कार्यालय में प्रतिदिन कार्य करते हैं। उतना ही समय अपने काम में ईमानदारी से लगा दें तो उतना समय तो देश और समाज की उन्नति में लगेगा। यह भी तो आपके जीवन के उतने हिस्से की शहादत ही है।
जब हम अत्यंत भावुक होकर सैन्य शक्ति का महिमामंडन करने लगते हैं, तो नागरिक के रूप में हमारे कर्तव्य और जिम्मेदारियॉं पीछे चली जाती हैं। ऐसा माहौल बनता है जैसे जो करना है वह सेना को ही करना है, हम तो मात्र दर्शक हैं जो वाह-वाह करेंगे। ऐसा नहीं है। सैन्य शक्ति पूरे राष्ट्र की शक्ति का एक अल्प हिस्सा भर है। शेष तो वह है जिसे नागरिक मिलकर बनाते हैं और नागरिकों की यही शक्ति अंततोगत्वा सैन्य शक्ति को भी मजबूत करती है। गणतंत्र दिवस पर हम संविधान में दिये नागरिक कर्तव्यों का स्मरण करें और दिन के मात्र 7 या 8 कार्यकारी घंटों में देश और समाज के लिए ईमानदारी से कार्य करने की शपथ ले लें तो यह भी जीवन के उतने हिस्से की शहादत ही होगी जो देश को शक्तिशाली बनाएगी।
(ओमप्रकाश श्रीवास्तव आईएएस अधिकारी हैं तथा धर्म, दर्शन और साहित्य के अध्येता हैं। वर्तमान में वह मुख्यमंत्री के अतिरिक्त सचिव हैं।)