मध्यप्रदेश के साथ विचित्र संयोग, अमावस्या की रात हुआ था जन्म, जानिए ऐसे ही कुछ रोचक किस्से

भोपाल (जोशहोश डेस्क) एक नवंबर 1956 को जिस समय मध्यप्रदेश का जन्म हुआ, वह अमावस्या की रात थी। राज्यपाल डॉ. भोगराजू पट्टाभि सीतारमैया, जब आधी रात को पहले मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल को लालकोठी कहे जाने वाले, आज के राजभवन में, शपथ दिला रहे थे तभी किसी ने याद दिलाया कि ‘‘आज तो अमावस्या की रात है’’। शपथ ले रहे शुक्ल पहले तो थोड़ा असहज हुए, फिर बोले ‘‘पर इस अंधेरे को मिटाने के लिए हजारों दिये तो जल रहे हैं’’। वह शपथ वाली रात दीपावली की भी रात थी। अमावस्या की रात का कुछ असर था या नहीं, कौन जाने। इसे विधि का विधान ही कहा जायेगा कि उस दिन के ठीक दो महीने बाद 31 दिसम्बर 1956 को रविशंकर शुक्ल चल बसे, वह दीपावली उनकी आखिरी दीपावली बन गई।

एमपी के पहले सीएम रविशंकर शुक्ला

एक नवंबर को शपथ वाले दिन ही 80 साल के शुक्ल, उसी शाम को पुराने मध्यप्रदेश की राजधानी नागपुर से भोपाल, जी.टी. एक्सप्रेस के प्रथम श्रेणी के कूपे में बैठकर पहुँचे थे। उनका जगह-जगह पर स्वागत हुआ, इटारसी रेलवे स्टेशन पर शुक्ल का ऐतिहासिक अभिनंदन किया गया। जब वे भोपाल पहुँचे, तो स्टेशन से उन्हें जुलूस की शक्ल में ले जाया गया। नागपुर राजधानी में रविशंकर शुक्ल सन् 1946 से मध्य प्रान्त के मुख्यमंत्री के रूप में रहे थे। यह प्रदेश जिसमें विदर्भ के कई जिले शामिल थे, आजादी के पहले सेन्ट्रल प्रॉविन्स और बरार के नाम से जाना जाता था। 1 नबंवर 1956 को ही शुक्ल के शपथ लेने के पहले राज्यपाल सीतारमैया को हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस हिदायतउल्ला ने शपथ दिलाई। इसके पहले सीतारमैया, रविशंकर शुक्ल के साथ नागपुर में भी राज्यपाल थे। पहले मंत्रिमंडल में बारह केबिनेट और ग्यारह उपमंत्री थे।

मध्यप्रदेश के जन्म का विचित्र संयोग

मध्यप्रदेश का जन्म एक विचित्र संयोग था। यहां के रहने वालों ने कभी किसी ऐसे प्रदेश की माँग नहीं की थी। लेकिन जब आंध्रप्रदेश में दिसम्बर 1952 में श्रीरामुलु नाम का एक व्यक्ति तेलगु भाषी राज्य की माँग को लेकर भूख हड़ताल करते हुए मर गया और आज का आंध्रप्रदेश बना दिया तब देश के बाकी इलाके भी भाषायी आधार पर राज्य की मांग करने लगे।
कांग्रेस पार्टी, जो कि सन् 1920 से भाषायी आधार पर राज्यों को बनाने की बात कर रही थी, आजादी के बाद बदल गई थी। ऐसा उसने 1948 के एस.के.धर कमीशन की सिफारिश पर किया। लेकिन जब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने मराठी भाषा के लोगों के लिए महाराष्ट्र राज्य की माँग की और आंध्रप्रदेश की घटना हो गई तब सुप्रीम कोर्ट के जज सर सैयद फजल अली की अध्यक्षता और कवालम माधव पाणिक्कर एवं डॉ हृदयनारायण कुंजरू की सदस्यता में राज्य पुर्नगठन आयोग सन् 1955 में बना दिया गया। इस आयोग ने एक लाख बावन हजार दो सौ पचास अभ्यावेदनों पर विचार किया। ये मेमोरेण्डम व्यक्तियों और संस्थाओं ने दिये थे। आयोग एक सौ चार स्थानों पर गया और अड़तीस हजार मील लम्बी यात्रा की।

राज्य पुर्नगठन आयोग ने अपनी 267 पृष्ठों की रिपोर्ट में भाषायी आधार पर सोलह राज्य और तीन केन्द्र शासित राज्यों की सिफारिश की। मध्यप्रदेश के सम्बन्ध में आयोग ने केवल इतना किया कि जो छोटे राज्य थे और बाकी के राज्यों से बचे हिस्से को जोड़कर नया राज्य बना दिया। इस तरह पुराने मध्यप्रदेश के महाकौशल, छत्तीसगढ़ के चौदह जिले, विंध्यप्रदेश, मध्यभारत, भोपाल राज्य और राजस्थान की सिरोंज तहसील की अदला-बदली मंदसौर के सुनेल टप्पा से करके नया प्रदेश बना दिया गया। जवाहर लाल नेहरू ने जब राज्य का नक्शा देखा तो कहा यह क्या ऊंट की तरह दिखने वाला राज्य बना दिया। उस दौर में हिन्दू महासभा ने नये मध्यप्रदेश के निर्माण का विरोध किया।

‘आओ बनाएं अपना मध्यप्रदेश’

इधर-उधर से कांट-छांट करके जो प्रदेश बना वह लोगों का अपना प्रदेश सही मायनों में आज तक नहीं बन पाया। इसीलिए सन् 2010 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने अभियान चलाया ‘आओ बनाएं अपना मध्यप्रदेश’ जो भावनात्मक एकता के लिए एक प्रयास था, क्योंकि जब बिहार के निवासी बिहारी, राजस्थान के राजस्थानी, पंजाब के पंजाबी और उड़ीसा के उडि़या हो सकते है तो यहाँ के लोग रीवाड़ी, मालवी, बुंदेलखंडी, निमाड़ी क्यो रह गए। ऐसा आज भी माना जाता है कि सन् 1956 की भौगोलिक एकता भावनात्मक रूप में परिवर्तित नहीं हो पाई। राज्य पुर्नगठन आयोग ने भी इस बात को अपनी रिपोर्ट में उल्लेखित किया था। छत्तीसगढ़ का गठन अन्य कारणों के अलावा शायद इसी भावनात्मक एकता की कमी के कारण हुआ।

35 राजे-रजवाड़े

गुना से हिन्दु महासभा के सांसद विष्णु घनश्याम देशपाण्डे ने संसद में नये राज्य का विरोध किया। पुर्नगठन की बहस में बोलते हुये उन्होंने कहा ‘‘अगर कोई एक प्रान्त है जिसका अपना जीवन नहीं है लाईफ आफ इट्स ओन नहीं है तो वह मध्यप्रदेश है’’4 विंध्यप्रदेश जो आजादी के पहले बघेलखण्ड और बुन्देलखण्ड के रूप में देश में जाना जाता था, मूलतः 35 राजे-रजवाड़ों का एक समूह था। आजादी के बाद जब सरदार पटेल ने नए देश का निर्माण शुरू किया, तो उन्होंने अलग राज्य विंध्यप्रदेश का गठन किया। नये प्रदेश का उद्घाटन केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग मंत्री एन.वी. गाडगिल ने सन् 1948 में किया। यह राज्य शुरू से ही विवादों में रहा और सन् 1951 तक विंध्यप्रदेश सीमा निर्धारण के विवादों के कारण केन्द्र के नियंत्रण में रखा गया। बाद में सन् 1951 के अंत में इसे विधिवत विधानसभा व मंत्रिमण्डल बनाने की इजाजत मिली। यह राज्य कुल पांच साल ही चल पाया और सन् 1956 में मध्यप्रदेश में मिला दिया गया। उसी तरह मध्यभारत राज्य में इन्दौर व ग्वालियर रियासतों के अलावा 25 और रियासतें थीं। शुरू से ही मध्यभारत में राजप्रमुख के पद को लेकर विवाद था। किन्तु बाद में सरदार पटेल के हस्तक्षेप से ग्वालियर के महाराजा जीवाजीराव सिंधिया को राजप्रमुख बनाया गया और इन्दौर के यशवन्तराव होलकर को उप राजप्रमुख। सन् 1948 में जवाहरलाल नेहरू ने जब मध्यभारत का उद्घाटन किया, तब भी दोनों महाराजाओं के बीच भीषण मनमुटाव था। यह राज्य, देश का एक धनी प्रदेश माना जाता था।

सन् 1956 में जब मध्यप्रदेश बनने लगा तब मध्यभारत को इसमें मिलने की इच्छा नहीं थी। यहां के तत्कालीन मुख्यमंत्री तखतमल जैन, जो विदिशा के रहने वाले थे, इस बात के विरोधी थे कि मध्यभारत को गरीब राज्यों से जोड़ा जाए। विदिशा में उन दिनों मद्य निषेध था। तखतमल जैन का मानना था कि मध्य प्रान्त, विंध्यप्रदेश और भोपाल राज्य के मिलने से मध्यभारत की पहचान समाप्त हो जाएगी। चूंकि मध्यभारत पहले से ही काफी विकसित राज्य था इसलिए उनका मानना था कि उसकी कीमत पर विंध्य, बुन्देलखड, महाकौशल और छत्तीसगढ़ जैसे अविकसित इलाके तरक्की करेंगे। यह धारणा कुछ हद तक सही भी थी, जो आज तक मालवा के नेताओं के बीच चलती रहती है।

(साभार : पुस्तक राजनीतिनामा मध्यप्रदेश)

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