18 मुख्यमंत्रियों के 18 किस्से : मध्यप्रदेश के इकलौते आदिवासी मुख्यमंत्री की कहानी

भोपाल (जोशहोश डेस्क) नरेशचंद्र सिंह (Nareshchandra Singh) मध्यप्रदेश के इकलौते आदिवासी मुख्यमंत्री थे। सारंगढ़ रियासत के इस गौंड राजा को कुछ ही दिन मुख्यमंत्री रहने का मौका मिला। जोशहोश मीडिया की सीरीज ’18 मुख्यमंत्रियों के 18 किस्से’ में आप जान सकेंगे, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्रियों की अनसुनी कहानियां। आज पढ़िए मध्यप्रदेश के आठवें सीएम नरेशचंद्र सिंह (Nareshchandra Singh) के बारे में जो महज 13 दिन ही इस कुर्सी पर विराजमान रह सके (13 मार्च 1969 से 25 मार्च 1969 तक)।

अर्जुन सिंह ने अपनी आत्मकथा में लिखा कि मार्च 1969 की एक मध्यरात्रि भोपाल के मेरे निवास पर मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह को देखकर मैं चौंक गया। वे पहचाने जाने के भय से रात के अंधेरे में मेरे घर पहुंचे थे। उन्होंने बताया कि वे इस सरकार से तंग आ चुके हैं और इस्तीफा देकर कांग्रेस में वापस आना चाहते हैं। अगले दिन सवेरे सात बजे उन्होंने मेरे पास एक बंद लिफाफे में कांग्रेस अध्यक्ष एस. निजलिंगप्पा के नाम संबोधित पत्र दिया। मैं उस पत्र को लेकर तत्काल बैंगलोर गया और उसके कुछ हफ्तों बाद कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें वापस कांग्रेस में ले लिया।  

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गोविंद नारायण सिंह और नरेशचंद्र सिंह

 इस बीच द्वारका प्रसाद मिश्र ने राजमाता सिंधिया और गोविंद नारायण की संविद सरकार के खिलाफ जबलपुर से भोपाल तक सागर होते हुए पदयात्रा की थी। इस पदयात्रा में हजारों की संख्या में लोगों का हुजूम उनके साथ चलता था। दिन भर में आठ से दस मील चलकर ही मुकाम करते थे। लोगों ने इस यात्रा का गांव-गांव में स्वागत किया। दूसरी तरफ, संविदकाल में जनसंघ गोविंद नारायण सिंह का कट्टर विरोधी बन गया था। इन सब बातों से मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह तंग आ चुके थे और 10 मार्च 1969 को उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इसी के साथ संविद सरकार का अंत हो गया जो कि पहले से ही तय था, क्योंकि कोई भी व्यवस्था इतनी मजबूत नहीं थी कि द्वारका प्रसाद मिश्र, राजमाता सिंधिया और गोविंद नारायण सिंह को विशालकाय अहंकारों को संभाल सकें। कालांतर में गोविंद नारायण सिंह को कांग्रेस में वापस आने का उपहार बिहार के राज्यपाल के रूप में मिला। पर वे वहां ज्यादा दिनों तक नहीं टिके सके, क्योंकि उन पर राजभवन के खर्चों को लेकर अनेक आरोप लगे और स्थिति इनती बिगड़ गई कि उनको त्यागपत्र देना पड़ा।  

पहले आदिवासी मुख्यमंत्री 

गोविंद नारायण के इस्तीफे के बाद राजा नरेशचंद्र (Nareshchandra Singh) मुख्यमंत्री बने। मार्च 1969 में राजा नरेशचंद्र सिंह ने तेरह दिनों के मुख्यमंत्रित्व में बिखरती संविद सरकार को संभालने के बहुत प्रयास किए, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह दर्जनों विधायकों के साथ वापस कांग्रेस में चले गए। तकनीकी रूप से नरेशचंद्र सिंह (Nareshchandra Singh) मध्यप्रदेश के पहले आदिवासी मुख्यमंत्री थे। सारंगढ़ रियासत के इस गौंड राजा को कुछ ही दिन मुख्यमंत्री रहने का मौका मिला।  इसी बीच द्वारका प्रसाद मिश्र वापस कांग्रेस विधायक दल के नेता बन गए और श्यामाचरण शुक्ल उपनेता। मार्च 1969 जाते-जाते कांग्रेस की सरकार फिर से बनाने की मुहिम तेज हो गई। मिश्र स्वाभाविक उम्मीदवार थे, पर दुश्मन इतने अधिक थे कि विरोधी फिर से तीसरी बार उन्हें मुख्यमंत्री देखना नहीं चाहते थे।   

कहते हैं कि इंदिरा गांधी के कहने पर नरेश चंद सिंह ने अपनी बेटी पुष्पा को रायगढ़ से लोकसभा का चुनाव लड़वाया था।  

[साभार- पुस्तक राजनीतिनामा मध्यप्रदेश]

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