लोक-सेवाओं पर कालिख पोतते ये बिगड़ैल सांड

नई पीढ़ी में भी ऐसे अफसर आ रहे हैं जिन्‍हें धैर्य नहीं है। वे तत्‍काल सिंघम बनना चाहते हैं। उनके लिए सस्‍ती लोकप्रियता ही सब कुछ है।

ओमप्रकाश श्रीवास्‍तव
(आईएएस अधिकारी एवं धर्म, दर्शन और साहित्‍य के अध्‍येता)
 
सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें एक कलेक्‍टर साहब सिंघम स्‍टाइल में अवतरित होते हैं। उनके पीछे डण्‍डों और शस्‍त्रों से लैस पुलिस है। स्‍थान है एक मैरिज हॉल। कलेक्‍टर क्‍या हैं जनरल डायर के अवतार हैं। आते ही मार-पिटाई शुरू कर देते हैं। दुल्‍हन की मॉं अनुमति दिखाती है। कलेक्‍टर साहब बिना पढ़े उसे फाड़कर उसी के मुँह पर मार देते हैं।  इसके बाद कलेक्‍टर के मातहत और पुलिस चलो, भागो, मारो चिल्‍लाने लगती है। कलेक्‍टर साहब खुद पंडित को पीटते हैं। इसके बाद ऐसा लगता है जैसे चंगेज खाँ दिल्‍ली का कत्‍लेआम करने आ गया हो। पुलिस लाठी चलाती है, महिलाओं के कमरों में घुस कर उन्‍हें खदेड़ती है। घबराई महिलाऍं और बच्‍चे भय से चीखने लगते हैं। एक व्‍यक्ति दूल्‍हे का सेहरा सजा रहा है। दूल्‍हा ठिठक जाता है। कलेक्‍टर साहब को यह गुस्‍ताखी हजम नहीं होती। वह दूल्‍हे को गर्दन से पकड़कर बाहर धकेलते हैं। सजी-धजी दुल्‍हन अपने कमरे से निकलकर हतप्रभ-सी खड़ी रह जाती है। कलेक्‍टर साहब दुल्‍हन को भी बाहर तक खदेड़ आते हैं।

इसके बाद अलग-अलग टेबल पर खाना खा रहे अतिथियों का नंबर आता है। किसी पर डण्‍डे पड़ते हैं तो किसी पर गालियॉं। कलेक्‍टर साहब एक अतिथि को गले से पकड़कर धक्‍का देते हैं वह गिर जाता है। कलेक्‍टर चिल्‍लाते हैं – ऑब्‍ट्रेक्टिंग पब्लिक सर्वेंट ऑन ड्यूटी, अरेस्‍ट हिम। आदेश का तुरंत पालन होता है। इसके बाद कलेक्‍टर साहब दूसरे अतिथि पर पिल पड़ते हैं। उसकी पत्‍नी हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाती है तो पति के साथ पत्‍नी को भी गिरफ्तार करने का हुक्म हो जाता है। कुछ अतिथियों को डण्‍डा मारने का हुक्‍म देते हैं और तत्‍काल हुक्‍म की तामीली भी हो जाती है। वीडियो के अगले हिस्‍से में कलेक्‍टर साहब मैरिज हॉल के बाहर ऐसे भाव से घूमते दिखते हैं जैसे सिकन्‍दर विश्‍व-विजय के बाद तफरीह कर रहा हो। इसी बीच एक रिश्‍तेदार आकर कुछ अर्ज करना चाह रहा है। कलेक्‍टर साहब अब ‘ब्‍लडी विलेजर’ पर उतर आते है और उसे भी ऑब्‍ट्रेक्टिंग पब्लिक सर्वेंट ऑन ड्यूटी में पकड़ने का आदेश देते हैं। उसकी पत्‍नी आ जाती है गिड़गिड़ाती है प्‍लीज भैया, प्‍लीज भैया। ‘भैया’ उसे भी झिड़क देते हैं और दो पुलिस वाले उसके पति को धकिया कर ले जाते हैं। 5 मिनिट और 33 सेकेण्‍ड का यह वीडियो यहीं खत्‍म हो जाता है। आप सोच रहे होंगे यह 1921 की घटना होगी और कोई अंग्रेज बहादुर कलेक्‍टर रहा होगा। पर आप गलत हैं, यह घटना है 27 अप्रैल 2021 की स्‍थान है अगरतला और कलेक्‍टर हैं शैलेश यादव। 


अब आप अपराध भी सुन लीजिए। यह न तो देशद्रोहियों के अड्डे पर रेड थी और न ही पाकिस्‍तान में घुसकर सर्जिकल स्‍ट्राइक। अगरतला में कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए रात 10 बजे के बाद कर्फ्यू लगा है। यह शादी विधिवत अनुमति लेकर हो रही थी, अतिथि भी 50 से कम थे (कलेक्‍टर ने भी 19 पुरुष व 14 महिलाओं कुल 33 के विरुद्ध ही प्रकरण दर्ज कराया)। बस समय का उल्‍लंघन हो गया। बारात के आने में देरी हो गई और 10 बजे के बाद भी कार्यक्रम चलता रहा और कलेक्‍टर साहब हत्‍थे से उखड़ गये। कर्फ्यू, दंड प्रक्रिया सं‍हिता की धारा 144 में लगाया जाता है जिसके उल्‍लंघन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के अंतर्गत प्रकरण चलता है जिसमें साधारण स्थिति में 1 माह की साधारण जेल या 200 रुपये जुर्माना या दोनों का दंड दिया जा सकता है। कुछ विशेष स्थितियों में साधारण कारावास 6 माह का और जुर्माना 1 हजार रुपये तक हो सकता है। इसके लिए भी प्रक्रिया है, प्रकरण न्‍यायालय में जाता, सुनबाई होती। अपराधी को दंड दिया जा सकता है परंतु उसे अपमानित करने का अधिकार किसी को नहीं है। कानून का उल्‍लंघन हुआ था तो उसका दंड भी कानून के तरीके से ही दिया जा सकता था यहॉं तो कलेक्‍टर साहब ने हाथों-हाथ मामला निपटा दिया। यहॉं देश का कोई कानून काम नहीं कर रहा था। यहॉं तो कलेक्‍टर साहब खुद ही संविधान थे, खुद ही कानून थे और खुद ही न्‍यायालय थे। कलेक्‍टर साहब की यह तालिबानी न्‍याय व्‍यवस्‍था एक परिवार को सार्वजनिक अपमान, संत्रास दे रही थी, दूल्‍हे-दुल्‍हन को जीवन भर के लिए टीस दे रही थी, लोकसेवकों की छवि पर कालिख पोत रही थी। 


आज से 32 वर्ष पहले जब मैं सेवा में आया तो प्रशासन अकादमी के पहले व्‍याख्‍यान में बताया गया था कि – ‘सदैव यह याद रखना कि हम ‘लोकसेवा’ में हैं, हमारा चयन ‘ पब्लिक सर्विस कमीशन’ ने किया है ‘पब्लिक रूलिंग कमीशन’ ने नहीं । हमने यह पेशा सेवा करने के लिए चुना है शासन करने के लिए नहीं ।‘ जब हम लोक सेवा के लिए हैं तो हमारे सभी कामों में संवेदनशीलता होनी चाहिए। कानून जनता की भलाई के लिए हैं उसे प्रताड़‍ित करने के लिए नहीं। कानून का पालन उसकी मंशा के अनुरूप होना चाहिए। कभी सरदार पटेल ने सिविल सेवा को स्‍टील फ्रेम कहा था। उनका अभिप्राय था कि लोक सेवक इतने नैतिक और दृढ़ होंगे कि वे तमाम दवाबों में भी नहीं झुकेंगे और कार्यपालिका का ढ़ॉंचा संविधान के अनुरूप बनाए रखेंगे। लोक सेवाओं ने समय-समय पर अपनी उपादेयता सिद्ध भी की है। 


परंतु सिक्‍के का दूसरा पहलू भी है भारत की अफसरशाही अपनी ढुलमुल नीतियों और अपनी नकारात्मकता के लिए कुख्यात है। नई पीढ़ी में भी ऐसे अफसर आ रहे हैं जिन्‍हें धैर्य नहीं है। वे तत्‍काल सिंघम बनना चाहते हैं। उनके लिए सस्‍ती लोकप्रियता और मीडिया में छवि ही सब कुछ है। फिल्‍मों में सिंघम ठीक लगता होगा, एक दिन का मुख्‍यमंत्री अनिल कपूर सब कुछ ठीक कर देता होगा परंतु व्‍यवहार में ऐसा कुछ नहीं हो सकता। व्‍यवस्‍था के साथ कुछ अच्‍छा करने के लिए भी टीमवर्क, कानून का ज्ञान, प्रक्रियाओं का पालन करना होता है और इसके लिए लम्‍बे धैर्य और मेहनत की जरूरत होती है।


शैलेश यादव जैसे अफसर इतनी अकड़ दिखाते हैं तो कई बार लोग समझने लगते हैं कि यह तो ‘स्‍टील फ्रेम’ का सही उदाहरण है। जबकि है इसका उलटा है। इसे समझाने के लिए मैं इतिहास का उदाहरण लेता हूँ। विश्‍व में जहॉं-जहॉं भी कोई गुलाम से बादशाह बना है वह सदैव अपने अधीनस्‍थों के लिए बेहद क्रूर हुआ है। इसका मनोवैज्ञानिक कारण है। अपने बादशाह का हुक्‍म अदा करते करते गुलाम का अवचेतन मन गुलामी को स्‍वाभाविक मान लेता है और जब उसे बादशाह बनने का मौका मिलता है तो वह अपने से कमजोरों को अपना गुलाम मानने लगता है और मनचाहा व्‍यवहार करता है। इसलिए जब भी आप अफसर को अपने अधीनस्‍थों पर बेवजह रौब झाड़ते देखें, जनता से असंवेदनशील व्‍यवहार देखें तो मान लें कि वह अपने आकाओं के समक्ष उतना ही रीढ़विहीन होगा। वास्‍तव में आदर्श अधिकारी तो गम्‍भीर, धैर्यवान्, संवेदनशील, दूसरों को सम्‍मान देनेवाला, उनकी सुननेवाला होता है। वह अपने से वरिष्‍ठों के समक्ष सत्‍य के लिए दृढ़ता से खड़ा रह सकेगा और अपने अधीनस्‍थों के लिए प्रेमपूर्ण सहयोगी और आम जनता के प्रति संवेदनशील होगा। ध्‍यान रखें, नदी जितनी गहरी होती है उतनी ही शांत दिखती है। यही बात व्‍यक्तियों के चरित्र के लिए भी सही है।  


सामान्‍य रूप से आईएएस अधिकारियों को अत्‍यंत ज्ञानवान्, बुद्धिमान् व प्रत्‍युत्‍पन्‍न‍मति संपन्‍न माना जाता है। यदि दूसरे न भी माने तब भी आत्‍मश्‍लाघा में डूबी हमारी बिरादरी तो ऐसा मानती ही है। परंतु क्‍या लोकसेवक में यही गुण अपेक्षित हैं? नहीं। लोक सेवक न तो विषय के विशेषज्ञ होते हैं और न ही उनसे ऐसी अपेक्षा ही की जाती है । उनके लिए प्रत्‍येक विषय की सामान्‍य समझ होना ही पर्याप्‍त है। मेरे मत से सफल लोकसेवक वही होता है जिसमें बुद्धि की तुलना में हृदय विशाल होता है, मानवीय गुण होते हैं, संवेदना होती है। 


लोक सेवकों के चयन की सबसे बड़ी संस्‍था संघ लोक सेवा आयोग ने कुछ वर्ष पहले इसकी जरूरत समझी और मुख्‍य चयन परीक्षा में ‘नीतिशास्‍त्र, सत्‍यनिष्‍ठा और अभिवृत्ति’ का एक पेपर जोड़ दिया। परंतु इसके बाद भी यदि शैलेष यादव जैसे अधिकारी चयनित हो रहे हैं तो परीक्षा प्रणाली में और सुधार की जरूरत है। आईएएस बिरादरी को भी चाहिए कि ऐसे कृत्‍यों की निंदा करें और अपने आप को ऐसे कृत्‍यों से अलग करें ताकि आम लोग शैलेश यादव जैसे बदमिजाज नौकरशाहों को ही लोक सेवकों का प्रतीक न मान लें। 

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