अतिवृष्टि: सिर्फ डिजास्टर मैनेजमेंट नहीं, प्री प्लानिंग से निकलेगा हल

कांक्रिट के जंगलों-अदूरदर्शी योजनाओं से नदियों-तालाबों का प्राकृतिक बहाव प्रभावित है, सिर्फ डिजास्टर मैंनेजमेंट के भरोसे चीजों को नहीं छोड़ा जा सकता

हमारे देश में अतिवृष्टि आज भी एक भीषण समस्या है। मौजूदा दौर में लगातार बारिश से कई जगहों पर बाढ़ के हालात हैं। इससे जनजीवन प्रभावित हो रहा है। मानव द्वारा निर्मित कांक्रिट के जंगलों और अदूरदर्शी योजनाओं के बीच नदियों-तालाबों का प्राकृतिक बहाव प्रभावित है। ऐसे में इस ओर ध्यान देने की जरूरत है। सिर्फ डिजास्टर मैंनेजमेंट के भरोसे चीजों को नहीं छोड़ा जा सकता। इसे लेकर प्री प्लानिंग जरूरी है, तभी हम आमजन और मुख्यरूप से ग्रामीण परिवेश की आबादी को सुविधा दे सकते हैं।

अतिवृष्टि और बाढ़ प्रबंधन की तैयारियाँ पूरी तरह से करें। इसके साथ ही बाँधों में वर्षा जल के अधिक भराव को नहरों में छोड़कर फसल उगाने वाले किसानों के खेतों तक भी पानी पहुँचाना व्यर्थ पानी बहाने का अच्छा विकल्प हो सकता है।

वर्षा जल संरक्षण पर वन , ग्रामीण विकास , जल-संसाधन विभाग समन्वित कार्य-योजना बनायें। कार्य-योजना ऐसी हो, जिसमें अतिवृष्टि से बाढ़ से बचाव के साथ-साथ वर्षा जल का उपयोग और संरक्षण भी किया जा सके। वर्षा जल संरक्षण महत्वपूर्ण कार्य है।

प्रवीण कक्कड़

भारत में घटित होने वाली सभी प्राकृतिक आपदाओं में सबसे अधिक घटनाएँ बाढ़ की हैं। यद्यपि इसका मुख्य कारण भारतीय मानसून की अनिश्चितता तथा वर्षा ऋतु के चार महीनों में भारी जलप्रवाह है, परंतु भारत की असम्मित भू-आकृतिक विशेषताएँ विभिन्न क्षेत्रों में बाढ़ की प्रकृति तथा तीव्रता के निर्धारण में अहम भूमिका निभाती हैं।

बाढ़ के कारण समाज का सबसे गरीब तबका प्रभावित होता है। बाढ़ जान-माल की क्षति के साथ-साथ प्रकृति को भी हानि पहुँचती है। अतः सतत् विकास के नज़रिये से बाढ़ के आकलन की ज़रूरत है। सामान्यतः भारी वर्षा के बाद जब प्राकृतिक जल संग्रहण स्रोतों/मार्गों की जल धारण करने की क्षमता का संपूर्ण दोहन हो जाता है, तो पानी उन स्रोतों से निकलकर आस-पास की सूखी भूमि को डूबा देता है लेकिन बाढ़ हमेशा भारी बारिश के कारण नहीं आती है, बल्कि यह प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों ही कारणों का परिणाम है।

बाढ़ का पानी संक्रमण को अपने साथ लाता है बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में कई तरह की बीमारियाँ, जैसे- हैजा, आंत्रशोथ, हेपेटाईटिस एवं अन्य दूषित जलजनित बीमारियाँ फैल जाती हैं। बाढ़ की स्थिति इसे और अधिक हानिकारक बना सकती है। असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश (मैदानी क्षेत्र) और ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और गुजरात के तटीय क्षेत्र तथा पंजाब, राजस्थान, उत्तर गुजरात एवं हरियाणा में बार-बार बाढ़ आने और कृषि भूमि तथा मानव बस्तियों के डूबने से देश की अर्थव्यवस्था तथा समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

मध्यप्रदेश के धार में कारम डैम में हमने गंभीर हालातों को देखा। देश में असम में बाढ़ हो या हिमाचल में अतिवृष्टि हर जगह सरकारी प्रबंधन बौने नजर आते हैं। बाढ़ से बचने के लिए इस बारे में गंभीरता से सोचना जरूरी है, बारिश पूर्व और अतिवृष्टि के क्षेत्रों में शासन-प्रशासन को अधिक मुस्तैदी से आंकलन कराने की जरूरत है। तालाबों के गहरीकरण, बांधों से नहरों में पानी छोड़ने के प्रबंधन, वाॅटर हार्वेस्टिंग को बढ़ावा और किसी भी निर्माण कार्य में दूरदर्शी सोच और योजना से कई हालातों को टाला जा सकता है।

(लेखक समाजसेवी हैं । वे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के ओएसडी भी रह चुके हैं)

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