JNU: मांसाहार पर मांसमारी, कुएं के मेंढकों की तरह सोच से बचे ABVP

जेएनयू में मांसाहार को लेकर हुई हिंसा के संदर्भ में वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल का आलेख

आप माने या न मानें भारत रामराज की और बढ़ रहा है और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा उसके अनुषांगिक संगठन भारत को त्रेता युग में ले जाकर मानेंगे क्योंकि उन्होंने जहाँ-तहाँ क़ानून अपने हाथ में लेना शुरू कर दिया गया है। इसकी शुरुवात हालांकि बहुत पहले गुजरात से हुई थी लेकिन ताजा कोशिश जवाहर लाल नेहरू विश्व विद्यालय में की गयी। यहां अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कर्मठ कार्यकर्ताओं ने विश्विद्यालय की रसोई में मांस पकाने और परोसने को रोकने की कोशिश की और मांसाहार करने वालों के सर फोड़ दिए।

पता नहीं अभाविप के नौजवानों को त्रेता युग की सच्चाई से अवगत कराया जाता है या नहीं ,लेकिन वे मांसाहार को लेकर जितने संवेदनशील दिखाई देते हैं उससे जाहिर होता है कि उन्हें त्रेता युग के खानपान का ज्ञान नहीं दिया गया। उन्हें नहीं बताया गया की त्रेता युग में मांसाहार पर कभी रोक नहीं लगाई गयी और मर्यादा पुरषोत्तम राम स्वयं एक अच्छे शिकारी थे। आप जान लें कि शिकार केवल हिरण या शेर की खाल उतारने के लिए नहीं किया जाता,बल्कि इन पशुओं का मांस शौक से खाया जाता है।

व्यक्ति क्या खाये और क्या न खाये इसका निर्धारण व्यक्ति खुद करता है। दुनिया में संविधान ने व्यक्ति को ये स्वतंत्रता दी है कि वो अपना खान–पान और पहनावा खुद तय करे। अभाविप या और कोई इसे तय नहीं कर सकते और यदि वे ऐसी कोशिश करते हैं तो ये गुनाह है। भारतीय दंड संहिता के तहत भी,संविधान के तहत भी और समाज के प्रति भी .इसके लिए बाकायदा मुकदमे कायम होते हैं और सजाएं भी मुकर्रर की जाती हैं,लेकिन कहा जाता है कि- जब सैयां बने कुतवाल तो फिर डर काहे का ?

जेएनयू से पहले देश में जहाँ-जहाँ भाजपा की सरकारें हैं वहां कुछ उत्साहित स्थानीय सरकारों और बिके हुए नौकरशाहों ने मांसाहार पर अपने तरीके से रोक लगाने की कोशिश की थी। हाल ही में देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के एक शहर में नवदुर्गा के दौरान ऐसी कोशिश की लेकिन फिर कदम पीछे खींच लिए। गुजरात के अहमदाबाद और सूरत समेत कुछ शहरों में मांसाहार बेचने वालों के ठेले पलट दिए गए थे। मांसाहार अच्छा है या बुरा ये आप तय कर नहीं सकते। इसके लिए किसी सरकार को ही जब जनादेश नहीं मिला तो अभाविप या उस जैसे दूसरे भगवा गमछाधारी संगठन भी इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकते लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा करने की कोशिश की जा रही है।

राकेश अचल

मामले पर धूल डालने के लिए अब आरोप-प्रत्यारोप चल रहा है। अभाविप कह रही है की वामपंथी छात्र संगठन के सदस्यों ने एक हॉस्टल में अभाविप द्वारा आयोजित हवन-पूजन में दखल देने की कोशिश की जबकि भाराछासं का आरोप है कि अभाविप सदस्य किचिन में मेन्यू बदलने के लिए हिंसा पर उतारू थे और पुलिस का कहना है कि कोई बड़ी बात नहीं हुई। जाहिर है कि मामले पर धूल डाल दी जाएगी क्योंकि सरकार भी ऐसा ही चाहती है। दिल्ली पुलिस आप के अधीन नहीं बल्कि केंद्र के अधीन है और केंद्र में सबसे पावरफुल आदमियों में नंबर दो पर देश के गृहमंत्री श्री अमित शाह जी हैं। पुलिस उनकी है।

मुझे पूरा यकीन है कि देश और दुनिया में कोई भी सरकार आदमी का खान-पान तय नहीं कर सकती। भारत में भी ये नाममुकिन है क्योंकि व्यक्ति का खान-पान देशकाल और भौगोलिक परिस्थितयां तय करती हैं। धर्म भी इसमें हस्तक्षेप नहीं कर पाता,चिकित्सक भी नहीं, हाँ धर्म और चिकित्सक आपको खान-पान के गुण-दोष अवश्य बता सकते हैं। माने या न मानें ये आपकी मर्जी है। अब जहां चावल और मछली ज्यादा होती है वहां लोग इसी का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। और जहाँ परम्परा से ही मांसाहार किया जाता है वहां भी इसकी मुखालफत नहीं की जा सकती।

अभाविप और उसकी मातृ संस्था को जानना चाहिए की देश में 80 प्रतिशत पुरुष और 70 प्रतिशत महिलाएं, अनियमित तौर पर अंडा, मछली, चिकन या मीट का सेवन करते हैं। इंडियास्पेंड ने नैशनल हेल्थ डेटा का का विश्लेषण करके ये निष्कर्ष निकाले हैं। अभाविप को नहीं मालूम कि नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन, हैदराबाद प्रोटीन रिच फूड जैसे मिल्क, मीट, फिश, एग खाने की सलाह देती है। तुष्टिकरण के चलते 2015 में मध्य प्रदेश सरकार ने कथित तौर पर जैन समुदाय के दबाव में आंगनवाड़ी में परोसे जाने वाले भोजन में अंडे को प्रतिबंधित कर दिया था लेकिन इससे कुछ हुआ नहीं। जिसे जो खाना है वो उसे खा रहा है।

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, ओडिशा और झारखंड ऐसे राज्य हैं जहां मांसाहारी लोगों का अनुपात 97 प्रतिशत से अधिक है। इसके विपरीत, पंजाब, हरियाणा, गुजरात और राजस्थान में सबसे कम मांसाहारी आबादी (40 प्रतिशत से कम) है।

अभाविप वाले यदि पढ़ते-लिखते होते तो उन्हें ये पता होता कि खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय के अनुसार वैश्विक मांस उत्पादन में भारत का हिस्सा 2.18 प्रतिशत है। यानी चीन,अमेरिका, ब्राजील, रूस और जर्मनी के बाद भारत मीट उत्पादन में छठे नंबर पर है। मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के अनुसार, भारत में मांस उत्पादन 2014-15 से 2019-20 तक 5.15 प्रतिशत की दर से बढ़ा है।

आरबीआई के अनुसार भारत के कुल मीट उत्पादन में 30 प्रतिशत हिस्सा भैंस के मीट का है। वहीं, अगर राज्य स्तर की बात करें तो मीट का सर्वाधिक उत्पादन उत्तर प्रदेश में (15 प्रतिशत), महाराष्ट्र (13 प्रतिशत) और पश्चिम बंगाल (10 प्रतिशत) होता है। ओईसीडी के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में मांस की खपत 2010 से घटनी शुरू हो गई थी, लेकिन 2014 के बाद एक बार फिर इसमें तेजी आई है।जाहिर है कि ये सब केंद्र में भाजपा सरकार बनने के बाद हुआ .भाजपा की सरकार न भी बनती तो भी ये होता ही।

कुल मिलकर बात ये है कि अभाविप को समझना और आरएसएस को उसे समझना होगा कि देश में त्रेता युग का राम राज लाने के लिए किसी के खानपान में दखल देना पाप है और पाप करके कोई भी दल देश में रामराज नहीं ला सकता। अभाविप को कुएं के मेढकों की तरह नहीं सोचना चाहिए। उन्हें दुनिया घूमना चाहिए ,तब वे जान पाएंगे कि हकीकत क्या है और वे किस स्वप्नलोक में जी रहे हैं। छात्रों का काम किसी दल या किसी स्वयंसेवी संगठन का चुनावी घोषणापत्र लागू करना नहीं है। उनकी उम्र पढ़ने की है, वे पढ़ें खुद आगे बढ़ें और देश को बढ़ाएं अन्यथा मारपीट से उनका भविष्य बर्बाद हो जाएगा। पाठक जान लें कि मै शुद्ध शाकाहारी हूँ हालांकि मुझे दुनिया के हर खाद्य-अखाद्य का अनुभव है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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