बदलाव एक जरूरी प्रक्रिया है ,लेकिन बदलाव वे ही अच्छे होते हैं जो हमारी मान्यताओं और मूल्यों को आहत न करते हों,लेकिन दुर्भाग्य ये है कि हमारी सरकार के सिर पर सब कुछ बदलने की धुन सवार है। सरकार को जो भी महात्मा गाँधी, नेहरू-गांधी से जुड़ा नजर आ रहा है उसे बदला जा रहा है। हाल ही में सरकार ने अमर जवान ज्योति का ठिकाना बदला और अब बीटिंग रिट्रीट समारोह से महात्मा गांधी की पसंदीदा धुन ‘ अबाइड विद मी ‘ को बदल दिया गया है। अब ये धुन आपको कभी नहीं सुनाई देगी।
कहते हैं न ‘ अपनी-अपनी ढपली,और अपना-अपना राग ‘की धुन जब सर पर सवार हो तो ऐसा ही होता है जैसा अब हो रहा है। सरकार को पता नहीं क्यों महात्मा गांधी और नेहरू गांधी परिवार से जुड़ी चीजों से एलर्जी है। एलर्जी तो अंग्रेजों और मुगलों के कामकाज से भी है लेकिन उनसे भी ज्यादा एलर्जी गांधी,नेहरू-गांधी से है, इसलिए जब भी मौक़ा मिलता है सरकार बदलाव का चौका जड़ देती है। बीते सात साल में सरकार ने देश की सूरत बदलने के बजाय गांधी,नेहरू-गांधी से जुड़ी चीजों को ही ज्यादा बदला है।
साल 2022 के गणतंत्र दिवस में झांकियां बदली जा रही हैं,समय बदला जा रहा है। बीटिंग रिट्रीट में शामिल गीतों की धुनों को हटाया जा रहा है। सरकार चूंकि सर्वशक्तिमान होती है इसलिए कुछ भी बदल सकती है लेकिन भूल जाती है कि सरकार से भी ज्यादा शक्तिमान देश की जनता होती है जो अंतत: सरकारों को ही बदल देती है। हाल के वर्षों में जनता ने राज्यों में अपनी बदलने की ताकत का मुजाहिरा किया भी है। इसके बावजूद केंद्र की सरकार अपनी बदलने की आदत बदलने को राजी नहीं है।
कोई 175 साल पहले हेनरी फ्रांसिस लाइट द्वारा लिखे इस ईसाई भजन को विलियम हैनरी मोंक ने संगीतबद्ध किया था। इस गीत या भजन के इतिहास में जाने के बजाय ये बताना काफी है कि ये दुनिया भर में उसी तरह लोकप्रिय है जैसे कि भारत में ‘रघुपति,राघव ,राजा राम ‘ अबाइड विद मी’ जितना महात्मा गांधी को पसंद था उतना ही किंग जार्ज को। ये भजन ब्रिटेन की साम्राज्ञी एलजावेथ की शादी के मौके पर भी गाया,बजाया गया।
.
बीटिंग रिट्रीट दरअसल युद्ध की समाप्ति के बाद बैरिकों में लौटती सेनाओं के मनोबल को बढ़ने के लिए आयोजित की जाने वाली एक कार्रवाई है। इसमें तरह-तरह की धुनें बजाई जातीं हैं। अंग्रेजों ने अपनी सेना के लिए ये समारोह शुरू किया था,आजादी के बाद भी भारतीय सेना इसे अपनाये हुए है यहां तक कि 1950 से भारत में गणतंत्र दिवस समारोह के समापन का अभिन्न हिस्सा बनाया गया है। इस समारोह में कोई 26 गीतों की धुनें बजाई जाती हैं। ‘अबाइड विद मी’ भी इनमें से एक है। सरकार ने लेकिन इसी ईश बंदना को हटाने का फैसला किया। क्यों किया इसका कोई तर्क नहीं है। ठीक उसी तरह जैसे इंडिया गेट से अमर जवान ज्योति को हटाने का कोई तर्क नहीं था।
सब कुछ बदलने पर आमादा सरकार ने गणतंत्र दिवस समारोह को लेकर इस बार काफी बदलाव किए हैं। इस साल से गणतंत्र दिवस समारोह सुभाष चंद्र बोस की जयंती यानी 23 जनवरी से शुरू हो रहा है। भारतीय सेना द्वारा बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी के लिए जारी किए और मीडिया के साथ साझा किए गए शेड्यूल में यह ईसाई भजन शामिल नहीं है पिछले साल भी यही कोशिश की गयी थी किन्तु लोकनिंदा की वजह से इसे स्थगित कर दिया गया था किन्तु इस साल लोकनिंदा की परवाह किये बिना ‘अबाइड विद मी’ को पूरी तरह ‘अवॉइड’ कर दिया गया।
महात्मा गांधी को सरकार का शुक्रगुजार होना चाहिए कि अभी उसने उनका पसंदीदा भजन ही हटाया है उनकी मूर्तियां नहीं हटाई। सरकार चाहे तो ये भी कर सकती है। सरकार चाहे तो बीटिंग रिट्रीट समारोह को भी बंद करा सकती है, क्योंकि ये अंग्रेजों द्वारा शुरू किया गया है। अंग्रेजों और मुगलों ने इस देश को ‘अबाइड विद मी’ भजन पसंद क्यों था? जाहिर है वे अंग्रेज परास्त रहे होंगे इसीलिए ईसाई ईश बंदना को पसंद करते थे। आज की सरकार को तो राम के सिवाय कुछ सूझता ही नहीं .इसलिए सरकार का ‘अबाइड विद मी ‘ को अवॉइड करना उचित फैसला कहा जा सकता है।
बदलाव की इस बयार में आने वाले दिनों में क्या-क्या बाह जाएगा और क्या- क्या रह जाएगा,कहना कठिन है। वैसे यदि ये सरकार अगर बनी रही तो कम से कम गांधी,नेहरू-गांधी की तमाम स्मृतियों को तो विलोपित कर ही देगी, क्योंकि इस सरकार का भारत तो उदित ही 2014 के बाद है। इस सरकार के लिए शेष सत्तर वर्षों का भारत तो भारत है ही नहीं शेष वर्षों का भारत तो गांधी,नेहरू-गांधी का भारत था ..खैर जो भी हो हमारी सहानुभूति कल भी महात्मा गांधी के प्रति थी,आज भी है। हम प्रार्थना करेंगे की ‘अवाइड विद मी’ को हटाने से ईसाईयों के भगवान नाराज न हो हमारी सरकार से।
हमारी सरकार सबको साथ लेकर चलने वाली सरकार है। अवॉइड सिर्फ उसी चीज को करती है जिसमें से उसे महात्मा गांधी या नेहरू-गांधी की गंध आती है। यदि आपको सरकार का फैसला गलत लगता हो तो आप ‘अबाइड विद मी’ की धुन अपने घर पर बैठकर भी जोर-जोर से सुन सकते हैं ,क्योंकि अभी सरकार ने इस धुन को राष्ट्र विरोधी घोषित कर इसके सुनने ,बजाने पर रोक नहीं लगाईं है। इतनी उदार सरकार आपको दुनिया में कहीं मिलेगी?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)