सच स्वभाव से कड़वा होता है,लेकिन कहना पड़ता है। दुर्भाग्य ये है कि सच का सामना बड़े-बड़े सूरमा नहीं करते तो छोटे-मोटे पिद्दियों की तो बात ही और है। मैं अक्सर कहता रहा हूँ कि प्रदेश की सरकार इन दिनों मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के भरोसे नहीं बल्कि भगवान के भरोसे चल रही है,लेकिन मेरी बात पर कोई यकीन नहीं करता, किन्तु जब पिछले दिनों उज्जैन में बाबा महाकाल ने मंत्रिमंडल की बैठक की अध्यक्षता की तो मेरी बात सच साबित हो गयी।
मेरी मान्यता है कि सरकार शिवराज सिंह चौहान के भरोसे चले या महाकाल के भरोसे ,खुलकर चलना चाहिए। मेरे जीवनकाल में ये पहला अवसर है जब किसी संवैधानिक सरकार के मंत्रिमंडल की बैठक में किसी भगवान को अध्यक्षता का मौक़ा दिया गया हो। ये संविधान का अपमान भले हो लेकिन महाकाल का सम्मान अवश्य है। सरकारें जब इंसानों के भरोसे चलने के लायक नहीं रहतीं तो उन्हें भी भगवान के भरोसे छोड़ दिया जाता है। मध्य्प्रदेश में भी यही होता।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि बाबा महाकाल असंख्य हिन्दुओं की आस्था का आदि केंद्र हैं, लेकिन इस बात में भी कोई दो राय नहीं है कि प्रदेश की मौजूदा या कोई भी सरकार केवल बाबा महाकाल के प्रति आस्था रखने वाले ही नहीं अपितु सभी धर्मों के लोग मिलजुलकर चुनते हैं। चुनी गयी सरकार का मुखिया व्यक्ति होता है, कोई भगवान नहीं। अगर भगवान के नाम पर ही मंत्रिमंडल की बैठकें होने लगीं तो जाहिर है कि सरकार की सफलताओं के साथ ही तमाम विफलताओं का ठीकरा भी भगवान के ही सर फोड़ा जाएगा। ऐसे में क्या बाबा महाकाल के असंख्य भक्त अपने भगवान को तोहमतें देखते हुए देख पाएंगे?
देश में ये पहला तमाशा भगवान के नाम पर हुआ है। तमाशा करने की हिम्मत इसलिए हुई क्योंकि अब सरकार चलाने वालों का यकीन संविधान से ज्यादा भगवान पर हो गया है। सरकार चलाने वाले लोग भूल जाते हैं कि आप पद और गोपनीयता की शपथ भले ही अपने ईश्वर के नाम पर लेते हैं किन्तु सरकार संविधान के अनुरूप चलाने का कौल उठाते हैं और संविधान कहता है जो कहता है वो आप सबको पता है। मुख्यमंत्री या उसके मंत्रिमंडल को शपथ राज्यपाल महोदय दिलाते हैं बाबा महाकाल नहीं।
बहरहाल मंत्रिमंडल की बैठक में किसी धर्म विशेष के देवता का चित्र रखना संविधान की धज्जियां उड़ाना है या नहीं,इसका उत्तर संविधान विशेषज्ञ ही दे सकते हैं। हम जैसे सामान्य लोग तो केवल सवाल ही कर सकते हैं। सवाल ये है कि क्या आने वाले दिनों में मंत्रिमंडल की बैठके किसी दूसरे धर्म के आराध्य के चित्र के साथ भी हो सकेंगी या फिर केवल और केवल हिन्दुओं के देवी देवता इसके लिए चिन्हित या अधिकृत किये गए हैं?
हमारे प्रदेश में सरकारें जनता जनार्दन से भी ऊपर धर्म को रखने की आदी हो चुकी हैं। वे भूल जातीं है कि सरकार का चुनाव और गठन धर्म के आधार पर नहीं बल्कि संविधान के प्रावधानों के आधार पर जनता के वोट से होता है। सरकार एक चुनाव घोषणापत्र के आधार पर जनता की पसंद या नापसंद के बीच होता है। किसी देवी देवता के बीच नहीं ,लेकिन सब चलता है। हमारे सूबे में ओरछा में न जाने कब से रामराजा को सरकार की ओर से सशस्त्र सलामी दी जाती है.लेकिन किसी ने आपत्ति नहीं की। कोई आपत्ति करे भी क्यों ? जब एक परम्परा को सरकार ने ओढ़ लिया है तो उसे कौन रोक सकता है?
मध्यप्रदेश की सरकार तो इस मामले में केंद्र की सरकार से दो हाथ आगे रहना चाहती है। कलियुग के गंगापुत्र प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपने निर्वाचन क्षेत्र काशी में कॉरिडोर बनवाया तो मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने महाकाल के लिए एक ‘लोक’ बनाने की ही घोषणा कर दी? अरे बाबा इतना तो बताइये कि तीन लोक के स्वामी महाकाल को आपके बनाये लोक की दरकार कब से हो गयी? ये सारे काम बाबा विश्वनाथ हों या महाकाल उनके भक्तों के ऊपर छोड़ दीजिये न! इन दोनों मंदिरों में उनके भक्त अकूत चढ़ावा चढ़ाते हैं,उससे ये सब हो सकता है। जनता का धन इस काम के लिए क्यों उड़ाना चाहते हैं आप ?
मुझे तो नहीं पता लेकिन मेरे परिचय के एक सेवानिवृत्त भाप्रसे के अधिकारी को जरूर पता होगा कि दुनिया में कितनी सरकारें भारत सरकार और मध्यप्रदेश सरकार की तरह भगवान को मंत्रिमंडलीय बैठकों की अध्यक्षता का अवसर देती है या सरकारी खजाने से उनकी सेवा करती है? निश्चित ही वे इस आलेख के बाद इस बारे में सरकार के पक्ष में एक नया आलेख लिखेंगे,क्योंकि उन्हें इसी के लिए ईश्वर ने लगाया है। मुझे हैरानी होती है कि इस देश,प्रदेश में धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देने वाले तमाम राजननीतिक दल,अर्बन नक्सली कहे जाने वाले बुद्धिजीवी कैसे सरकारों के इस तमाशे को आँखें बंद कर देखते रहते हैं?
भगवान में मेरा भरोसा है या नहीं,इसे भूल जाइये,मेरा भरोसा संविधान में है। मैं देश-प्रदेश में कानून के शासन का पक्षधर हूँ। मेरे जैसा कहने वालों की संख्या शायद बहुत कम भी नहीं होगी। इसलिए हम इस कड़वे सच पर बात करने का साहस जुटा सकते हैं। हम बाबा महाकाल से विनती करते हैं कि वे हमारी निर्वाचित सरकार की मूढ़ताओं पर ध्यान न दें। .भस्म रमाकर जहाँ विराजे हैं वहीं विराजें। मुमकिन हो तो सरकार को सद्बुद्धि दें कि चुने हुए लोग अपने भरोसे सरकार चलाएं,आपके भरोसे नहीं। सरकार के उस प्रस्ताव को भी ठुकरा दें जो उसकी ओर से आपके लिए नया लोक बनाने बावद किया गया है।
मेरी बात छोड़ दीजिये लेकिन पूरा प्रदेश जानता है कि इस प्रदेश में सरकार किसके भरोसे पर चल रही है? कौन इस सरकार का माई-बाप है? किसने ये सरकार बनवाई है? कौन इस सरकार को भविष्य में चलना चाहता है? बाबा महाकाल से तो कुछ छिपा नहीं है। उनका अपना कोई जनसम्पर्क कार्यालय भी नहीं है जो वे इस बारे में विज्ञप्ति जारी कर खंडन कर देते कि ये सरकार उनके नहीं किसी और के भरोसे चल रही है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)