कल का छोकरा आज का स्टार बाबा बन गया है। ‘ठठरी बंधे ‘ उसका तकिया कलाम है। रातों-रात करोड़पति हो गया है। बाल सुलभ चंचल होने के साथ ही शातिर बहुरूपिया भी है लेकिन मध्यप्रदेश के कमजोर नेता विधानसभा चुनाव में एक-दूसरे की ठठरी बंधवाने के लिए बागेश्वर धाम के शास्त्री धीरेन्द्र के चक्कर लगा रहे हैं। यानि मध्यप्रदेश की राजनीति अब बाबाओं के भरोसे है।
पिछले एक साल में बागेश्वरधाम के इस नौजवान कथा वाचक का सितारा चमका तो सबसे पहले भाजपा ने उसे लपका। प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से लेकर उनके मंत्रिमंडल के तमाम सदस्य धीरेन्द्र शास्त्री के सामने नतमस्तक हो गए। भाजपा सरकार के मंत्रियों और नेताओं में शास्त्री की कथा कराने की होड़ लग गयी, क्योंकि शास्त्री आपने कथित चमत्कारों की वजह से भीड़ खींचने की मशीन बन चुका है। अतीत के तमाम बड़े कथा वाचकों की तरह अब उसका भी आभा मंडल और भक्तमंडल है। एक भाई तो धीरेन्द्र को इंग्लैंड की सैर भी करा लाया।
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव में अब कुल जमा 250 दिन रह गए हैं, ऐसे में बाबाओं का महत्व अचानक बढ़ गया है। पिछले महीनों में प्रदेश के गृहमंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा ने अपने चुनाव क्षेत्र दतिया में शास्त्री का जादू दिखने के लिए सात दिवसीय मजमा लगाया। शास्त्री ने कथित तौर पर गृहमंत्री की धर्मपत्नी के घुटने का दर्द छूमंतर कर दिया। मंत्री जी ने बाबा के साथ पूरे सात दिन काटे और क्षेत्र की जनता को दंडवत प्रणाम किया। इंदौर में भी भाजपा नेता शास्त्री की दुकान सजवा चुके हैं।
बहरहाल प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा एक तरफ विकास यात्राओं के जरिये मतदाताओं तक पहुँचने की कोशिश कर रही है तो दूसरी तरफ भाजपा धीरेन्द्र शास्त्री को साधकर उसके जरिये कांग्रेस की ठटरी बंधवाना चाहती है। खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह शात्री के सामने शरणागत हैं। यानी मुख्यमंत्री से लेकर तमाम भाजपा सरकार के मंत्रियों और विधायकों को अपने पुरुषार्थ पर भरोसा नहीं है। सब चाहते हैं की बाबा धीरेन्द्र शास्त्री और उसके आराध्य हनुमान जी कोई चमत्कार कर दें।
बुंदेलखंड में ठठरी बाँधने का अर्थ बहुत स्पष्ट है। बाबा बात,बात में अपने विरोधियों की ठठरी बाँध देता है। बाबाओं के मुंह से ‘ठठरी बंधे’ सुनना हैरान करता है। क्योंकि बुंदेलखंड में ये शब्द एक गाली है और उसका इस्तेमाल प्राय: महिलायें करतीं हैं, वो भी कमजोर,दलित,शोषित महिलायें। कोई साधू,संत या कथा वाचक नहीं। धीरेन्द्र शास्त्री तो न साधू है ,न संत है और न ढंग का कथावाचक किन्तु उसकी उचक कर लग गयी है।
धीरेन्द्र के भक्तों की भीड़ देखकर अपने आपको हनुमान जी का भक्त बताने वाले कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ भी धीरेन्द्र शास्त्री की दुकान में मत्था टेकने जा पहुंचे। शास्त्री के कथित धाम को मै जान-बूझकर दुकान कह रहा हूँ क्योंकि जिस बुंदेलखंड में धीरेन्द्र रातोंरात धूमकेतु की तरह चमका है उस बुंदेलखंड में बागेश्वरधाम नाम का कोई धाम पहले था ही नहीं। ये एक सजाई गयी दूकान से ज्यादा कुछ नहीं है। बहरहाल दुकान चल पड़ी है और कांग्रेस तथा भाजपा के नेता इस दुकान के जरिये विधानसभा चुनाव में जितना कुछ फायदा हो सके उठा लेना चाहते हैं। .
धीरेन्द्र शास्त्री का इस्तेमाल भाजपा करे तो कोई हैरानी नहीं होती, क्योंकि ये उसका पुराना तरीका है। भाजपा के पिछले शासनकाल में बाबाओं को बाकायदा खूब सांरक्षण और सत्ता सुख पहुंचाया गया था,लेकिन कमलनाथ और उनकी कांग्रेस भी चुनाव जीतने के लिए बहुरूपियों का इस्तेमाल करे तो बुरा लगता है। कमलनाथ की जगह यदि पूर्व मुख्यमनत्री दिग्विजय सिंह ये ठठकर्म करते तो कोई हैरानी नहीं होती,क्योंकि उनके शासनकाल में धीरेन्द्र शास्त्री जैसी अनेक दुकाने सजीं थीं। दिग्विजय सिंह का भक्तिभाव जग जाहिर है। वे किसी भी छोटे-बड़े मंदिर में मत्था तक सकते हैं। उन्होंने अपनी सरकार के समय अनेक सरकारें समानांतर बनवा दी थीं जिनका आज कोई अतापता नहीं है। इंदौर के एक खूबसूरत भय्यू महाराज का किस्सा तो सबको पता है ही। एक जमाने में वे भी धीरेन्द्र शास्त्री की तरह चमकते थे लेकिन अंत में उन्हें ख़ुदकुशी करना पड़ी थी।
मध्यप्रदेश एक ऐसा प्रदेश है जहां सरकारें बिना बाबाओं के सहारे के चलती नहीं हैं। भाजपा ने तो 2003 से लेकर अभी तक जितनी बार शपथ ग्रहण समारोह आयोजित किये उन सबमें धीरेन्द्र शास्त्री जैसे तमाम छोटे-बड़े बाबाओं को मंच सजाकर दिया। यहां कम्प्यूटर बाबा हैं, मिर्ची बाबा हैं. पंडोखर सरकार है , सियाराम सरकार है ,डाक्टर हनुमान हैं.और मजे की बात इन सबके लिए प्रदेश के ही नहीं केंद्र के नेता भी अपने-अपने स्वेच्छाअनुदान से उपकृत करते रहते हैं। ये बाबा -बैरागी भी सरकार को खूब लूटते-खसोटते रहते हैं।
मध्यप्रदेश में 2023 के विधानसभा चुनावों में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, शिवराज सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया के चेहरों के साथ ही बाबा-बैरागियों के चेहरे इस्तेमाल किये जायेंगे। धीरेन्द्र शास्त्री की दूकान चूंकि आजकल सबसे ज्यादा चल रही है इसलिए हर दल चाहता है कि शास्त्री उनके लिए फील्डिंग करे . अकेले बसपा है जो शास्त्री के खिलाफ है। राजनीति के इस खेल में कांग्रेस और भाजपा को जो मिलेगा सो मिलेगा लेकिन शास्त्री की फजीहत हो सकती है। धीरेन्द्र शास्त्री दो घोड़ों पर सवार है। उसके लिए किसी भी दल से इंकार करना कठिन है। अब ये हकीकत प्रदेश की जनता को समझना चाहिए कि नेता उनकी धार्मिक भावनाओं का दोहन करना चाहते हैं। हकीकत ये है कि लोकतंत्र में कोई बाबा -बैरागी किसी की ठठरी नहीं बांध सकता ,ये शक्ति केवल जनता के पास है और इसका इस्तेमाल जनता को ही करना चाहिए।
मध्य्प्रदेश में डबल इंजन की सरकार को इस बार भी 2018 के विधानसभा चुनाव की तरह अपनी नाव डूबने का अंदेशा है, शायद इसीलिए मजबूरी में उसकी निर्भरता धीरेन्द्र शास्त्री जैसे नौसीखियों पर ज्यादा हो गयी है। शास्त्री बाबा-बैरागी नहीं है लेकिन उसने वेश बना लिया है। उसने अपने व्यक्तित्व को और आकर्षक बनाने के लिए एक और जहां कश्मीरियों की फेरन पहन ली है वहीं मैराथन की खासतौर पर सिंधियाशाही पगड़ी भी धारण कर ली है। जो उसके स्वभाव में छिपी सामंती प्रवृत्ति को रेखांकित करती है जबकि कोई सात्विक कथा वाचक इस तरह की हरकतें नहीं करता। जनता को समझना चाहिए कि इन बहुरूपियों के पास कुछ भी नहीं है सिवाय ठगी के। ये सब राजनीतिक दलों के हथियार भर हैं और कुछ नहीं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)