न वे सूरज हैं और न वे जुगनू,लेकिन हालात ने उन दोनों के लिए ही जैसे ये दोनों उपमाएं गढ़ी है। ग्वालियर के सांसद विवेक शेजवलकर और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच अघोषित रार शुरू हो गया है। स्थानीय सांसद होते हुए भी स्थानीय प्रशासन विवेक शेजवलकर को उतना महत्व नहीं दे रहा जितना की राज्यसभा के सदस्य और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को दिया जा रहा है। प्रशासन असहाय है। प्रशासन प्रभामंडल को देखकर व्यवहार कर रहा है।
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राजनीति में पहला कदम गुना से रखा था और दो दशक बाद भाजपा ने ही उन्हें पिछले आम चुनाव में चुनावी राजनीति से आउट कर दिया था, किन्तु हालात बदले और सिंधिया अपनी पराजय का दर्द भूलकर उसी भाजपा का हिस्सा बन गए जिसने उन्हें पराजय का स्वाद चखाया था। सिंधिया भाजपा में लौटे तो अपनी पुरानी आभा के साथ। सबसे पहले उन्हें राज्य सभा भेजा गया और फिर केंद्र में नागरिक उड्डयन मंत्री बना दिया गया।
दोहरे सुर्खाव के पर पाने के बाद सिंधिया ने ग्वालियर और गुना में एक साथ अपनी सक्रियता बढ़ाई तो स्थानीय सांसद विवेक शेजवलकर और गुना सांसद केपी सिंह ही ठंडे पड़ गए बल्कि केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह ने भी ग्वालियर से किनारा करना शुरू कर दिया। वे भी गाहे बगाहे ग्वालियर की राजनीति में सक्रिय दिखाई देते हैं।
ग्वालियर की तमाम विकास योजनाओं ,उनके क्रियान्वयन और उनसे जुड़े श्रेय पर इन दिनों केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का कब्जा है। दूसरे मंत्री और सांसद किनारे कर दिए गए हैं या खुद हो गए है। सिंधिया का वजन अपने आप बढ़ रहा है या या उसे बढाने में पार्टी हाईकमान और राज्य सरकार की भी कोई भूमिका है ये शोध का विषय है लेकिन इस सबके बावजूद स्थानीय सांसद विवेक शेजवलकर के सब्र का प्याला छलकने लगा। उन्होंने स्थानीय प्रशासन को ये कहकर हड़काया है की विकास योजनाओं के बारे में क्या तभी सुनवाई होगी जबकि सिंधिया जी कुछ कहेंगे ?
इस बात में कोई दो राय नहीं है की विवेक जी एक सौम्य जन प्रतिनिधि है। सांसद बनना उनके नसीब में लिखा था इसलिए वे महापौर से सीधे सांसद बन गये, उनके पिता भी सांसद थे और ग्वालियर के महल यानि सिंधिया परिवार के बहुत ख़ास थे यहां तक की उनकी वजह से ही एक बार ज्योतिरादित्य सिंधिया के स्वर्गवासी पिता माधवराव सिंधिया को भाजपा ने ग्वालियर से वाकओव्हर भी दिया था ,लेकिन अब आज के सिंधिया इस उपकार के बदले शेजवलकर को हाशिए पर क्यों डाल रहे हैं, ये किसी की समझ में नहीं आ रहा।
शेजवलकर बाहर मुखर नहीं तो बहुत चुप रहने वाले सांसद भी नहीं है। वे शून्यकाल में अक्सर बोलते दिखाई देते हैं ,किन्तु उनकी पहुँच उतनी नहीं है जितनी की सिंधिया की ,फलस्वरूप वे सिंधिया के मुकाबले में ठहर नहीं पा रहे।सिंधिया की सक्रियता से ये साफ़ हो चला है कि अब ग्वालियर में विवेक शेजवलकर जी की ये अंतिम पारी है। ग्वालियर से अब या तो खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव लड़ेंगे या उनका बेटा।
सिंधिया की सक्रियता को उनकी मंत्री बुआ यशोधरा राजे सिंधिया ने भी स्वीकार कर लिया है। ग्वालियर में रहते हुए भी वे ग्वालियर के किसी मामले में अब पहले की तरह दिलचस्पी नहीं ले रहीं। उन्हें भी पता है कि भाजपा नेतृत्व बुआ के मुकाबले भतीजे को ज्यादा महत्व दे रहा है इस लिहाज से आप कह सकते हैं की इन दिनों सिंधिया इन दिनों एक साथ दो संसदीय क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। दोनों ही संसदीय क्षेत्रों को इसका लाभ भी मिल रहा है लेकिन स्थानीय सांसद और स्थानीय प्रशासन के बीच टकराव की नौबत आ गयी है। स्थानीय सांसद के हिस्से में सरकारी बैठकों की अध्यक्षता भी नहीं आ रही है।
सिंधिया के भाजपा में आने के बाद से भाजपा के मूल कार्यकर्ता ये अनुभव करने लगे हैं की पार्टी धीरे -धीरे मुखर्जी भवन से हटकर महल में समाती जा रही है। भाजपा का समभागीय कार्यालय मुखर्जी भवन इन दिनों वीरान है,सारे मेले महल के दरवाजे पर लगते है। महल की अगवानी और विदाई के लिए जिले का ही नहीं बल्कि संभाग का पूरा प्रशासन चकरघिन्नी बना हुआ है। धीरे-धीरे लोग भूलने लगे हैं कि गुना और ग्वालियर का सांसद कौन था ?
यही हालात कमोवेश माधवराव सिंधिया के समय भी थे। तब कांग्रेस ‘ एम् ‘ हुआ करती थी ,अब भाजपा ‘ जे ‘हो गयी है। मजे की बात ये है कि एक जमाने में महापौर के रूप में आज के स्थानीय सांसद विवेक शेजवलकर ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को बहुत सहारा और सम्मान दिया था।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)