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जुबैर-नुपूर: बदनामी किसकी? दांव पर साख किसकी? जिम्मेदार कौन?

जुबैर की तरह देश में अकारण जेल की हवा खाने वाले हजारों जुबैर हैं और बहन नूपुर की तरह मुकदमे कायम होने के बाद भी हजारों नूपुरे आजाद हैं।

मोहम्मद जुबैर से मेरा न कोई रिश्ता है और न कोई जान-पहचान। जुबैर न मेरी जाति का है और न मजहब का लेकिन उसकी रिहाई से मुझे खुशी है। जुबैर को जिन आरोपों की बिना पर गिरफ्तार किया गया था और जिन हालात में गिरफ्तार किया गया था उन्हें देखकर सरकार और पुलिस की बदनीयती साफ़ दिखाई दे रही थी। जुबैर को उसकी कथित बेईमानी के लिए नहीं बल्कि अपनी साफगोई की वजह से पूरे 23 दिन जेल रहना पड़ा .जुबैर की गिरफ्तारी से सवाल ही सवाल खड़े हो गए थे।

हिन्दुस्तान को जबसे ‘ हिन्दू स्थान ‘ बनाने की जोरदार मुहिम शुरू हुई है तब से रोज तमाशे हो रहे हैं। किसे गिरफ्तार करना है और किसे खुला छोड़ना है ये पुलिस नहीं सरकार तय करती है और अंतत:फैसला अदालतों को करना पड़ता है। पहले से कामबाढ़ की शिकार अदालतें इन बे-सर-पैर के मामलों को सुलझाते सुलझाते थकी सी नजर आने लगीं हैं। आपको याद होगा कि मोहम्मद ज़ुबैर को दिल्ली पुलिस ने कथित तौर पर धार्मिक भावनाएं आहत करने के आरोप में गिरफ्तार किया है। ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर को ट्वीट के जरिये हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में सोमवार को गिरफ्तार किया गया था।

दिल्ली पुलिस ने मोहम्मद जुबैर पर बाद में साजिश और सबूतों को नष्ट करने का आरोप लगाया और कहा कि आरोपी को विदेशों से चंदा मिला था। जुबैर के खिलाफ प्राथमिकी में दिल्ली पुलिस ने तीन नई धाराएं – 201 (सबूत नष्ट करने के लिए – प्रारूपित फोन और हटाए गए ट्वीट), 120- (बी) (आपराधिक साजिश के लिए) और एफसीआरए के 35 मामले जोड़े थे। दिल्ली की हो या देश के किसी भी भाग की पुलिस जो चाहे सो कर सकती है. पुलिस की शक्तियां ‘ हरि कथा ‘ की तरह ‘ अनंत ‘ हैं। पुलिस केवल सरकार और अदालत कि नकेल पड़ने पर ठहरती है।

राकेश अचल

जुबैर की तरह का ही मामला बहन नूपुर शर्मा का भी है। नूपुर से भी मेरा या आपका कोई सीधा रिश्ता नहीं है। सिवाय इसके कि वे हिन्दू हैं और ब्राम्हण हैं एक अलग बात ये है कि वे सत्तारूढ़ दल की पूर्व प्रवक्ता हैं। उन्हें जुबैर की तरह न आजतक गिरफ्तार किया गया और न ही उनके खिलाफ कोई धारा बढ़ाई गयी। अब तो उनकी गिरफ्तारी पर माननीय अदालत ने ही रोक लगा दी है। बहन नूपुर के बयान के बाद देश के तीन अलग-अलग हिस्सों में प्रतिक्रिया स्वरूप दो लोगों की जान चली गयी और तीसरा जेरे इलाज अस्पताल में हैं। जुबैर के ट्वीट से ऊपर वाले की कृपा से पुलिस के अलावा किसी और की भावना आहत नहीं हुई ,फिर भी जुबैर 23 दिन जेल की हवा खा आये।

जुबैर की तरह देश में अकारण जेल की हवा खाने वाले हजारों जुबैर हैं और बहन नूपुर की तरह मुकदमे कायम होने के बाद भी हजारों नूपुरे आजाद हैं। इस प्रसंग में किसी तीस्ता सीतलवाड़ का जिक्र नहीं करना चाहता। उन लोगों का जिक्र भी करना अब गैर जरूरी है जो शहरी नक्सली कहकर जेलों में बंद किये गए और 84 साल की उम्र में जेलों के भीतर ही मर गए। ये विसंगतियां हमारे लोकतंत्र के साथ जन्मी हैं और शायद उसी के साथ ही दूर होंगीं।

आजादी के 75 वे साल में हमारा लोकतंत्र मजबूत होने के बजाय कमजोर हो रहा है। ये कोई आरोप नहीं बल्कि एक हकीकत है और जुबैर तथा नूपुर के मामले इसके उदाहरण हैं। दुर्भाग्य की बात ये है कि देश के तनखीन हो रहे लोकतंत्र को बचने की जो कोशिशें हो रहीं हैं। वे सब बिखरी-बिखरी और नाकाफी हैं। देश में पहले भी सत्ता पर काबिज बने रहने के लिए आयाराम-गयाराम का इस्तेमाल होता रहा है। कांग्रेस ने विपक्ष की सरकारों को धनादेश के बजाय क़ानून का बेजा इस्तेमाल करते हुए बर्खास्त किया था लेकिन आज सरकारों को खरीदा जा रहा है,बेचा जा रहा है और सब असहाय हैं।

मुहम्मद जुबैर को देश की सबसे बड़ी अदालत ने राहत दी है। सबसे बड़ी अदालत ही नूपुर बहन को राहत दिए है लेकिन उसका चश्मा अलग है। जुबैर को चार साल पुराने ट्वीट के आधार पर गिरफ्तार किया गया था जबकि नूपुर को ताजातरीन मामले में भी गिरफ्तारी से छूट दी गयी है। अदालत का विवेक है। मुझे उस पर टिप्पणी नहीं करना क्योंकि अदालत की हालत भी आम भारतीय जैसी है। अदालत ने नूपुर को हड़काया तो एक संप्रभु वर्ग ने अदालत के लत्ते ले लिए थे। वो तो अदालत उदार है इसलिए किसी के भी खिलाफ अवमानना का मामला दर्ज नहीं किया अन्यथा एक बड़ी आबादी अवमानना की आरोपी बन चुकी होती।

अब सवाल ये है कि इन तमाम प्रसंगों में मुंह की कौन खा रहा है ? बदनामी किसकी हो रही है ? साख किसकी दांव पर लगी है ? और इन सबके लिए जिम्मेदार कौन है ? हम लोग बचपन से सुनते आये हैं कि ‘ यथा राजा-तथा प्रजा ‘होती है। इस समय राजा साम्प्रदायिक रंग में रंगा है। इसलिए देश की एक बड़ी आबादी भी इस रंग में रंगी दिखाई दे रही है। हर गले में नफरत और कटटरता का दुपट्टा पड़ा दिखाई दे रहा है और भुगत रहा है पूरा अवाम। असल मुद्दों तक कोई पहुंच ही नहीं रहा। सबके मेरुदंड झुके हुए हैं। सीधे खड़े होने की ताकत खत्म होती जा रही है। आटा-दाल ,दही-मही सब कर के दायरे में हैं लेकिन मजाल कि कोई उफ़ भी करे,आह भी भरे।

प्रधानमंत्री जी के सामने भाषण देने में हकलाने वाले बिहार विधानसभा में नेता विपक्ष और राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव की मै तारीफ़ करना चाहूंगा। तेजस्वी ने गिरफ्तार ‘फैक्ट चेकर’ और ‘ऑल्ट न्यूज’ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर का समर्थन किया है। उन्होंने मोहम्मद जुबैर के साथ अपनी एकजुटता दर्शाने के लिए हैशटैग ‘स्टैंड विद जुबैर’ के साथ अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा, ‘ऐ आखं वालो इबरत हासिल करो. कोई जालिम कोई जाबिर हमेशा न रहा है न रहेगा। एक दिन उसको जरूर अपने आमाल का हिसाब देने अपने रब के रूबरू हाजिर होना है।

आज वक्त है कि पूरा देश इसी तरह कटटरता,धार्मिक उन्माद और संविधान की फजीहत के खिलाफ एकजुट हो। लोकतंत्र इसी एकजुटता से मजबूत होगा। इसी से सबका विकास होगा और सब साथ-साथ रह पाएंगे। आइये हम सब जुबैर की तरह लड़ें ,बहन नूपुर को भी जुबैर कि तरह न्याय मिले। अच्छा हो कि वे देश से खुद कहें कि उनकी टिप्पणी से आहत लोग कत्लोगारद से अपने आपको दूर रखें।

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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