क्या सो रहे थे रेलमंत्री: 750 से ज्यादा ट्रेन रद्द, अब पदयात्रा की बारी

वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल का बिजली संकट के चलते 750 से ज्यादा ट्रेन रद्द किये जाने के संदर्भ में आलेख।

बात बुरी लगे तो लग जाये लेकिन मैं जो कह रहा हूँ वो सच है, क्योंकि आने वाले दिनों के लिए आपको पैदल चलने की तैयारी करके रखना पड़ेगी या फिर लौटकर छकड़े खरीदना पड़ेंगे। कारण बहुत साफ़ है। देश विद्युत संकट के दौर से गुजर रहा है। सरकार के पास विद्युत कारखानों तक पहुंचने के लिए अव्वल तो कोयला नहीं है और है तो उसे ढोने के लिए सुविधा नहीं है। फलस्वरूप देश के इतिहास में बिना किसी हड़ताल के 750 से ज्यादा रेलें रद्द करना पड़ी हैं।

मै अब तक इस जुमले को गलत मानता था कि-‘ मोदी है तो मुमकिन है ‘ लेकिन अब मुझे ये स्वीकार करने में कोई संकोच, शक, शुव्हा नहीं है कि ‘मोदी जी हैं तो सब कुछ मुमकिन है। देश के इतिहास में रेलें तीन बार बड़े पैमाने पर बंद कि गयीं थीं। पहली बार जार्ज फर्नाडिस के नेतृत्व में हुई हड़ताल के दौरान 1974 में, जब जार्ज के एक आव्हान पर देश की सभी रेलों के पहिये थम गए थे, सिर्फ माल गाड़ियां चलने दी गयीं थीं। 1974 के पहले और बाद में फिर कभी ये नहीं हुआ,अब तो ऐसा होना नामुमकिन है,क्योंकि अब सरकार ने ट्रेड यूनियनों की ही कमर तोड़ रखी है।

देश में दूसरी बार रेलों का संचालन व्यापक पैमाने पर कोविड महामारी के कारण रोका गया था। इस साल सभी तरह की रेलनों का परिचालन बंद किया गया था। तीसरा मौक़ा अब 2022 में आया है जब कोयले की कमी की वजह से 753 रेलों को बंद करना पड़ा है। पहले दो कारण समझ में आते हैं लेकिन तीसरा कारण समझ से बाहर है। देश के पास कोयले का भंडार अकूत नहीं, तो कम भी नहीं है।

राकेश अचल

अक्सर सरकार के पास देश की जरूरत के हिसाब से कम से कम 30 दिन की जरूरत का कोयला तो रहता ही है। देश को हर दिन कम से कम 22 लाख टन की जरूरत पड़ती है। सरकार का दावा है कि अभी भी उसके पास 30 दिन का कोयला स्टॉक है। अकेले कोल इंडिया के पास 72.5 मिलियन टन का स्टॉक है लेकिन इसकी ढुलाई नहीं हो पा रही है,फलस्वरूप विद्युत उत्पादन प्रभावित हो रहा है।

सरकार की अकर्मण्यता पर पर्दा डालते हुए रेलवे ने सफाई देते हुए कहा है कि देश में प्राथमिक तौर पर कोयले की आपूर्ती करने के लिए यात्री ट्रेन रद्द की जा रही हैं। सवाल ये है कि सब जानते हैं कि भीषण गर्मी के चलते देश के लगभग हर राज्य में बिजली की मांग बढ़ती है। ऐसे में कोयले की कमी के चलते बिजली संयंत्रों में बिजली उत्पादन प्रभावित हो रहा है। बिजली की कमी के चलते देश के कई राज्यों में लोगों को बिजली कटौती का सामना करना पड़ रहा है।अब रेलवे ने ताबड़तोड़ 533 ट्रेनों को कोयले ढोने में लगाया गया है। इनमें पॉवर सेक्टर के लिए कुल 1.62 मिलियन टन कोयला लादा गया है।

आम भारतीय नागरिक के नाते आपको हक है कि आप सरकार से पूछें कि अब तक क्या आपके रेल मंत्री सो रहे थे? क्या उन्हें पता नहीं था कि कोयले की ढुलाई प्रभावित हो रही है? क्या इस गंभीर लापरवाही के लिए रेल मंत्री को तत्काल प्रभाव से घर नहीं बैठा देना चाहिए? दुर्भाग्य ये है कि जनता अपनी ही सरकार से सवाल कर नहीं सकती और जो सवाल कर सकते हैं वे यदि सवाल करते हैं तो उसे सियासत कह दिया जाता है। 753 रेलें बंद करने से एक तरफ जहाँ जनता परेशान होगी वहीं राजस्व का भी भारी नुक्सान होगा। होगा तो होगा। रेल मंत्री और प्रधानमंत्री बेचारे क्या करें? वे सब तब इन दिनों गुजरात और हिमाचल प्रदेश को दोबारा जीतने में दिन-रात एक किये हुए हैं।

बिजली संकट के कारण पैदा हो रहे तमाम दूसरे संकटों से देश को दो-चार होना पड़ रहा है। सरकारी आंकड़े हैं कि मार्च में बिजली मांग 8.9 फीसदी चढ़ी, जिसके पीछे बड़ी वजह आर्थिक गतिविधियां, खेत और घरेलू मांग में इजाफा होना रहा। ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार, सुचारू बिजली आपूर्ति के लिए सरकार काम कर रही है। अब कंपनियां बिजली की कमी के लिए एक-दूसरे पर दोषारोपण कर रही हैं। लेकिन महंगे बिल भरने के बावजूद आम जनता को कटौती से जूझना पड़ रहा है। लेकिन इसके लिए न मोदी जी जिम्मेदार हैं न ऊर्जा मंत्रालय और न रेल मंत्रालय.ये सब तो देश की जनता की बदनसीबी है।

देश में विद्युत संकट की हकीकत के लिए जनता से ज्यादा सरकार जिम्मेदार है,क्योंकि बिजली कंपनियों पर लाखों करोड़ की देनदारी और मुफ्त बिजली देने की राज्यों में मची होड़ ने देश को बिजली संकट की मुसीबत में धकेला है। एक लाख करोड़ से अधिक देनदारी के बावजूद विद्युत कंपनियां राज्यों को बिजली आपूर्ति कर रही हैं, तो वोटों की सियासत में किसानों से लेकर औद्योगिक क्षेत्रों तक कहीं मुफ्त बिजली तो कहीं छूट दी जा रही है। ऐसे में आग बरसाते पारे, बढ़ती आर्थिक गतिविधियों और कम कोयला भंडार का बिना समाधान निकले सुधार की गुंजाइश नहीं है।

कहते हैं कि कंगाली में आटा गीला हो ही जाता है लेकिन अब आप अपनी आँखों से सरकार का आटा गीला होते हुए देख सकते हैं। भारत की बिजली मांग बढ़कर 26 अप्रैल को सर्वाधिक 201 गीगावाट हो गई। जैसे-जैसे पारा चढ़ता जा रहा है, मई-जून तक इसके 215-220 गीगावाट हो जाने के आसार हैं। पावर सिस्टम ऑपरेशन कॉरपोरेशन लिमिटेड की 29 अप्रैल की रिपोर्ट के अनुसार देश में इस समय पीक डिमांड के समय 10778 मेगावाट बिजली की कमी है। ये शर्म से चुल्लू बाहर पानी में डूब मरने की स्थिति है,लेकिन जब शर्म आती नहीं हो तो डूबने का सवाल कहाँ से उठता है?

पेट्रोल-डीजल की पहले से आसमान छोटी कीमतों की वजह से आम आदमी की कमर टूटी पड़ी है,ऊपर से इस विद्युत संकट ने उसका कचूमर निकाल दिया है। जनता को नहीं पता लेकिन मैं बता देता हूँ कि इस समय 165 में से 106 ताप विद्युत संयंत्र कोयले की गंभीर कमी से जूझ रहे हैं। देश में चार लाख मेगावाट विद्युत उत्पादन की क्षमता है, मगर इस समय उत्पादन महज 221359 मेगावाट ही है। कोयले के अभाव में 68600 मेगावाट बिजली का उत्पादन नहीं हो रहा। देश की 150 घरेलू कोयला आधारित इकाइयों में से 86 के पास 25 फीसदी से भी कम कोयला बचा है।

आने वाले दिनों में किसी भी रात 8 बजे देश के प्रधानमंत्री टेलीविजन पर अवतरित होकर आपसे देश में विद्युत संकट से निबटने के लिए बिजली के बजाय लालटेन और चिमनी [जिसे देशज भाषा में ‘लम्प’कहते हैं] जलाने का आव्हान कर सकते हैं। ‘सबका साथ ,सबका विकास’ करने के लिए आपको प्रधानमंत्री की बात मानना पड़ सकती है। आपने नोटबंदी के समय उनकी बात मानी, आपने कोविड की महामारी के समय उनकी बात मानी तो क्या विद्युत संकट के समय उन्हें निराश कर देंगे आप?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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