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विरासत के नाम पर चटा रहे धर्म की अफीम, चौकीदारी कीजिए पंडिताई नहीं

यदि प्रधानमंत्री जी के धार्मिक उन्माद को न रोका गया तो आज न सही कल लोकतंत्र का राम नाम सत्य हो जाएगा।

लोकतंत्र खतरे में है या नहीं, ये तो भगवान जाने या आप जानें! मै तो बस इतना जानता हूं कि अब प्रधानमंत्री बनाम चौकीदार की भूमिका जरूर खतरे में है। हमारे प्रधानमंत्री यानि चौकीदार सब कुछ छोड़कर पंडिताई यानि पूजा पाठ में उलझे हुए हैं। उनका एक नहीं बल्कि दोनों पांव मंदिरों में हैं।

धर्म कर्म निजी आस्था और विश्वास का विषय है किन्तु हमारे प्रधानमंत्री जी ने कमर कस ली है कि वे अपनी धार्मिकता को पूरे देश पर लाद कर मानेंगे। कोई कानून, कोई शपथ उन्हें ऐसा करने से रोक नहीं सकती, लेकिन रोका जाना चाहिए। यदि प्रधानमंत्री जी के धार्मिक उन्माद को न रोका गया तो आज न सही कल लोकतंत्र का राम नाम सत्य हो जाएगा।

हमारे देश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहले प्रधानमंत्री नहीं हैं जो कि पूजाघरों में जाते हैं। उनके पहले के शायद ही किसी प्रधानमंत्री को पूजा पाठ का भूत कभी सवार नहीं हुआ। सबने गंगा स्नान किए, सबने चारों धाम की यात्रा भी की होगी (नहीं भी की होगी, क्योंकि सबको वक्त ही नहीं मिला) किंतु किसी भी प्रधानमंत्री ने अपनी धार्मिकता को राष्ट्रीय घटना बनाने का काम नहीं किया। ये काम प्रधानमंत्री का है भी नहीं।

राकेश अचल

हमारे प्रधानमंत्री भैरा भूत होकर देश को विरासत के नाम पर धर्म की अफीम चटाने में लगे हैं। वे कभी किसी मंदिर में होते हैं तो कभी किसी में। महाकाल और केदारनाथ यात्रा से फारिग हुए तो अब दीपावली मनाने अयोध्या जा रहे हैं। अरे भाई दीपावली अपने परिवार में जाकर मनाइए। प्रधानमंत्री आवास में मनाइए, किसी अनाथालय में जाकर मनाइए, क्या जरूरत है कि अयोध्या ही जाया जाए और वो भी सरकारी खर्चे पर। हमारे एक प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री जी भी थे, जिन्होंने सरकारी काम के अलावा कभी सरकारी संसाधनों का इस्तेमाल नहीं किया, मंदिर जाना तो दूर।

मै या कोई और प्रधानमंत्री से किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल पर जाने का आग्रह नहीं कर सकते। करना भी नहीं चाहिए, क्योंकि ये तय करना प्रधानमंत्री का अपना विशेषाधिकार है। ये उन्हें अपने आचरण से प्रमाणित करना है कि वे धर्मनिरपेक्ष भारत के प्रधानमंत्री हैं या हिन्दू राष्ट्र के। क्या उन्होंने प्रधानमंत्री पद तक इसीलिए इतना संघर्ष किया था कि वे दुनिया को बता सकें कि वे केवल हिंदुओं के प्रधानमंत्री हैं।

हमने तो बचपन से अब तक यही देखा और जाना है कि चौकीदार हो या प्रधानमंत्री वो सबका होता है। वो सबके लिए होता है। सब जगह आता जाता है। उसके लिए कुछ भी वर्जित और त्याज्य नहीं। उसके लिए मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर और गुरूद्वारा एक जैसे होते हैं। सरकार का खजाना केवल काशी और अयोध्या के लिए नहीं बल्कि हर उस शहर का ख्याल रखना चाहिए जो कि पवित्र शहर माने जाते हैं।

प्रधानमंत्री जी ने एक दिन पहले 75 हजार युवाओं को रोजगार देने के लिए मेला लगाकर ‘ईवेंट पोलिटिक्स’ में एक नया अध्याय जोड़ा है। जो काम एक सतत प्रक्रिया के तहत होना चाहिए था उसके लिए भी मेला लगाना सचमुच हैरान करने वाली घटना है। चुनाव घोषणापत्र के अनुसार तो हर साल लाखों नौकरियां दी जाना थी। चौकीदारी का दायित्व बड़ा गंभीर है। उसे पूजा पाठ से पूरा नहीं किया जा सकता, लेकिन कोशिश जारी है।

मुझे मालूम है कि मेरी इस टिप्पणी को लेकर भक्तिभाव में डूबे लोगों का झुंड मुझे निशाने पर लेगा, लेकिन मै इसकी फिक्र नहीं करता। क्योंकि मुझे देश की फ़िक्र है। आपको मुमकिन है कि सिर्फ अपने धर्म की विभूति के लिए काम करते प्रधानमंत्री पसंद हों किन्तु मुझे देश के लिए काम करते प्रधानमंत्री पसंद हैं।धर्म की फ़िक्र प्रधानमंत्री को नहीं धर्माचार्यों को करने दीजिए। प्रधानमंत्री को देश के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री जी को यदि चौकीदार के बजाय धर्माचार्य की भूमिका पसंद है तो उनका स्वागत है। वे किसी और को चौकीदारी सौंपकर पूर्णकालिक धर्माचार्य बन सकते हैं।

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