प्रीतम प्यारे पर ‘सिलेक्टिव’ एक्शन, क्या होगा उमा भारती का रिएक्शन?

जाहिर है कि प्रीतम तभी तक प्रीतम था जब तक उसकी जातीय उपयोगिता थी। अब न प्रीतम प्यारे उपयोगी है और न उसकी नेता सुश्री उमा भारती |

मध्यप्रदेश में प्रीतम लोधी एक मामूली से भाजपा कार्यकर्ता का नाम है। वो भाजपा के अनुशासन दंड से मारा गया। उसे सजा मिलने से मध्यप्रदेश के ब्राम्हण समाज में ख़ुशी है,लेकिन प्रीतम की नेता सुश्री उमाभारती के ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। प्रीतम उमा भारती जी का समर्थक है। उससे उमा जी की भाईबंदी है। उमा जी प्रीतम के बेटे के विवाह में सार्वजनिक रूप से नृत्य करती नजर आयीं थीं।

प्रीतम ने पिछले दिनों लोधी समाज की एक सभा में ब्राम्हण समाज की पोंगापंती पर टिप्पणी की थी। उसने कहा था कि भागवत कथाएं करने वाले कथावाचकों की नजर कथाश्रवण करने आने वाली खूबसूरत औरतों पर रहती है। कथावाचक युवा और खूबसूरत महिला भक्तों को अगर पंक्ति में बैठते हैं,उनके साथ नृत्य करते हैं। प्रीतम की इस अर्धसत्य टीप से ग्वालियर-चंबल संभाग का ब्राम्हण समाज बिदक गया। प्रीतम के खिलाफ इलाके के अनेक थानों में समाज में विद्वेष फ़ैलाने वाली टिप्पणी करने के मामले दर्ज करा दिए गए।

असामाजिक गतिविधियों को त्याग कर राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय प्रीतम मामले दर्ज होने से कभी नहीं घबड़ाता। पुलिस रिकार्ड में उसके खिलाफ हत्या,हत्या के प्रयास ,अपहरण,लूट डकैती और डराने-धमकाने के दर्जनों मामले अतीत में दर्ज हो चुके हैं। प्रीतम ग्वालियर पुलिस द्वारा हिस्ट्री शीटरों की तरह घसीट कर हवालातों में भी जा चुका है। उसने जेल यात्राएं भी की हैं लेकिन उसके खिलाफ जैसी कार्रवाई एक राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में भाजपा ने की है ,वैसी कार्रवाई कभी नहीं हुई।

प्रीतम प्यारे की ब्राम्हण विरोधी टिप्पणी से इलाके के ब्राम्हणों के साथ ही भाजपा के ब्राम्हण प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा की भावनाएं भी आहत हुई। प्रीतम प्यारे को फौरन भोपाल तलब किया गया। उससे सार्वजनिक माफीनामा भी लिखवाकर वायरल कराया गया। मामला यही समाप्त नहीं हुआ,अध्यक्ष जी ने प्रीतम प्यारे को भोपाल से ग्वालियर पहुँचने के पहले ही भाजपा की प्राथमिक सदस्य्ता से भी बर्खास्त कर दिया। देखने में भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष की ये अनुशासनात्मक कार्रवाई बड़ी अच्छी लगती है, किन्तु इससे प्रदेश का लोधी समाज भाजपा से क्षुब्ध हो गया है।

राकेश अचल

प्रीतम प्यारे लोधियों का नेता है। पहले अपराधी था,अब शायद नहीं है। होगा तो भी खुलकर सामने नहीं आता। भाजपा प्रीतम प्यारे को विधानसभा का चुनाव भी लड़वा चुकी है। जाहिर है कि प्रीतम तभी तक प्रीतम था जब तक उसकी जातीय उपयोगिता थी। अब न प्रीतम प्यारे उपयोगी है और न उसकी नेता सुश्री उमा भारती | इस लिए एक तीर से दो निशाने साध लिए भाजपा के ब्राम्हण प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा ने। कम से कम ब्राम्हण तो अब संतुष्ट हैं। ब्राम्हण वैसे भी सदा संतोषी जीव है। जरा में क्षुब्ध होता है और जरा में संतुष्ट।

दुर्भाग्य से जन्मना मैं भी ब्राम्हण हूँ ,किन्तु मैं प्रीतम जैसे कम पढ़े-लिखे लोगों की टिप्पणियों से कभी आहत नहीं होता। मेरा ब्राम्हणत्व अलग तरीके का है। ब्राम्हणों में कुछ परशुराम के वंशज भी होते हैं। उनकी भावनाएं कठमुल्लों की भांति छुई-मुई जैसी होती हैं। फौरन आहत हो जाती हैं। फौरन तुष्ट भी हो जाती हैं भाजपा को तुष्टिकरण करना कांग्रेस के मुकाबले अब बेहतर तरीके से करना आता है। वीडी शर्मा जी ने ये जाहिर भी कर दिया।

सवाल ये है कि आखिर प्रीतम प्यारे ने ऐसा क्या कह दिया था जो ब्राम्हणों की अस्मिता और ब्राम्हणत्व के खिलाफ था? क्या प्रीतम प्यारे का कथन सही नहीं है ? देश में सभी कथावाचक ब्राम्हण तो नहीं हैं ,फिर ब्राम्हण क्यों नाराज हुए? सवाल ये है कि भाजपा में प्रीतम प्यारे जैसे अर्धसत्य कहने वाले कितने नेता [?] हैं ? ब्राम्हणों में कितने नेता हैं जो प्रीतम की तरह पुलिस की डायरी में हिस्ट्री शीटरों की तरह दर्ज नहीं हैं ? क्या आज से पहले सभी प्रियतमों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई की गयी भाजपा नेतृत्व की ओर से?

अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई सदैव स्वागत योग्य होती है,किन्तु ‘ सिलेक्टिव्ह ‘ कार्रवाई हमेशा सवालों के घेरे में रहती है। प्रीतम प्यारे को मै भी कभी पसंद नहीं करता। ये मेरा निजी मामला है लेकिन जब प्रीतम प्यारे एक राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में सामने आता है तो मुझे उसका प्रणाम स्वीकार करना पड़ता है राजनीति में वैसे भी कोई अपावन नहीं होता। राजनीति में जो जितना बड़ा अपराधी होता है, उसका उतना ज्यादा सम्मान होता है। अपराधियों के सम्मान से किसी दल विशेष का कोई लेना-देना नहीं है। ये एक प्रवृत्ति है,जो हर राजनीतिक दल में है। फर्क सिर्फ इतना है कि सत्तारूढ़ दल में रहते हुए हर अपराधी अपने कुकर्मों ,अपराधों से स्वत्: विमोचित यानि मुक्त हो जाता है और विपक्ष में पहुँचते ही उसके सारे कुकर्म और अपराध संज्ञान में आ जाते हैं।

किसी की भावनाओं को आहत करने का हक किसी को भी नहीं है,फिर चाहे वो भाजपा की नुपुर हों या भाजपा कि नूपुर शर्मा। नूपुर का अपराध प्रीतम से कहीं ज्यादा है लेकिन उसे आजतक पार्टी की प्राथमिक सदस्य्ता से बर्खास्त नहीं किया गया। किया भी नहीं जा सकता ,क्योंकि नूपुर भविष्य के लिए उपयोगी है और प्रीतम प्यारे नहीं। प्रीतम प्यारे तो वैसे भी कुछ नहीं है। बेचारा मिट्टी का माधौ है। उसे तो भाजपा की ऊर्जावान नेत्री सुश्री उमा भारती ने सृजित किया है। प्रीतम प्यारे ने उमा जी के हर सुख-दुःख में साथ दिया है | वे जब भाजपा से बाहर थीं तब भी प्रीतम उनके साथ था और जब वे भाजपा में वापस आयीं तब भी प्रीतम उनके साथ है। यानि प्रीतम का भाजपा से नहीं बल्कि उमा जी से रिश्ता है ,इसे किसी पार्टी की कोई भी अनुशासन समिति नहीं तोड़ सकती।

प्रीतम के बहाने भाजपा ने उमा भारती को इशारा कर दिया है कि वे अब ज्यादा उछल-कूंद न करें। उमा जी अपने भतीजे को अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में स्थापित करने के लिए अपने गृह जिला टीकमगढ़ में राजनीतिक उत्पात करती रहतीं हैं। अभी उमा जी के मन में राजनीतिक महत्वाकांक्षा मरी नहीं है ,भले ही पार्टी नेतृत्व ने उन्हें किनारे कर दिया है | अब देखना होगा कि वे अपने कटटर समर्थक प्रीतम प्यारे के खिलाफ भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा द्वारा की गयी सख्त कार्रवाई को लेकर क्या रुख अपनाती हैं ? भाजपा में हर तरफ प्रीतम प्यारे भरे पड़े हैं | कांग्रेस भी भाजपा के प्रीतम एपिसोड के मजे ले रही है | पार्टी के वरिष्ठ नेता डॉ गोविंद सिंह ने इस मामले चुटकी ली है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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