विख्यात लेखक सलमान रुश्दी पर हमले के बाद दुनिया के तमाम लेखकों को समझ लेना चाहिए कि शैतान कभी नहीं मरता। शैतान दशकों बाद भी आपकी जान लेने की कोशिश कर सकता है। सलमान रुश्दी हमारी बिरादरी के ही नहीं हम वतन भी हैं। हम उनकी लम्बी उम्र की कामना करते हैं। वे अभी अपनी जिंदगी की हीरक जयंती में दाखिल हो चुके हैं।
सलमान रुश्दी हमारी अग्रज पीढी के नामचीन्ह लेखक हैं | मुझसे 12 साल बड़े हैं, लेकिन लेखन में उनका नाम पूरी दुनिया में जाना जाता है। हमारा उनका रिश्ता लेखक होने का रिश्ता है। उन्होंने 1988 के आसपास ‘ दि सेनेटिक वर्सेज ‘ लिखकर एक दुस्साहसिक काम किया था। हिंदी में उनकी किताब का शीर्षक होता तो ‘ शैतान की आयतें ‘ होता। रुश्दी साहब की इस किताब के बाद भी इस्लाम के कटटरपंथी उनके पीछे पड़ गए। वो तो अल्लाह का फजल है कि शैतान अभी तक उनकी जान नहीं ले पाए।
शैतान मानते हैं कि रुश्दी ने अल्लाह की निंदा की है,लेकिन खुद सलमान रुश्दी ने ऐसा कभी नहीं माना। रुश्दी उपन्यास लिखते हैं ,जब उन्होंने अपना चौथा उपन्यास लिखा तो उसका नाम रखा ‘ द सेटेनिक वर्सेज़ ‘.ये उपन्यास पैगंबर मुहम्मद के जीवन से प्रेरित था। इस उपन्यास में कुरान की उन आयतों को “शैतानी आयतें” कहा गया है जो मक्का की तीन देवियों अल-लात, मनात और अल-उज़्ज़ा से सम्बन्धित हैं। सलमान रुश्दी चूंकि खुद मुसलमान हैं इसलिए वे जानबूझकर ईश निंदा करेंगे ये कोई मानने को तैयार नहीं है लेकिन शैतान यही मानता है।
सलमान रुश्दी के पीछे शैतान 34 साल से लगे हुए हैं , लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिल रही। शैतान लेकिन थके नहीं,रुके नहीं। उन्होंने बीते रोज अमेरिका के न्यूयार्क शहर में रुश्दी पर फिर जानलेवा हमला किया है। रुश्दी साहब जिंदगी और मौत के बीच हैं। हम उम्मीद करते हैं की ऊपर वाला उन्हें अभी जीने का और मौक़ा देगा। आपको याद होगा की सलमान रुश्दी ने ‘ दी सेनेटिक वर्सेज से पहले मिडनाइट चिल्ड्रन, लिखा था और इसके लिए उन्हें 1981 में ‘ बुकर अवार्ड’ मिला था।
शैतान के निशाने पर रुश्दी अकेले लेखक नहीं हैं | बांग्लादेश की लेखिका तस्लीमा नसरीन भी हैं। ये फेहरिश्त बहुत लम्बी है। ईरान ने रुश्दी के खिलाफ फतवा भी दिया था और रुश्दी का काम तमाम करने वाले को 30 लाख डालर का ईनाम देने का लालच भी। इस ईनाम को 2012 में बढ़कर 33 लाख डालर कर दिया गया।
बहरहाल मुदा ये है कि क्या सलमान रुश्दी और क्या तस्लीमा नसरीन और क्या किसी राजनितिक कार्यकर्ता को कथित ईश निंदा के लिए अपनी जान से हाथ धोना ही पडेगा? इंसान जिसे मुहब्बत करता है ,उससे गिला भी करता है। उसकी निंदा भी कर सकता है। इसे जुर्म क्यों माना जा रहा है? क्यों ऐसे लोगों को मौत की सजाएं देने की कोशिश की जा रही है?
ये तय है कि दुनिया में जो ये इंसान नाम का जीव है कभी भी पीछे हटने वाला नहीं है। अगर इसे भगवान से तकलीफ है तो वो बोलेगा,लिखेगा। उसकी नियति पर सवाल उठाये जा सकते हैं लेकिन उसकी जान नहीं ली जा सकती। एक लेखक जब लिखता है तो उसका कोई एजेंडा नहीं होता, लेकिन जब एक नेता बोलता है तो उसका एजेंडा होता है। इसके बावजूद उसे भी कथित ईशनिंदा के लिए सूली पर नहीं टांगा जा सकता। कटटरता के इस विश्वव्यापी अभियान के मुकाबले के लिए एक विश्वव्यापी मुहिम की जरूरत है। अन्यथा सलमान रुश्दी की तरह पूरी लेखक बिरादरी निशाने पर बनी रहेगी। राजनेताओं की बिरादरी को सियासत करना कठिन हो जाएगा।
सलमान रुश्दी की जान जाने से शैतान को ख़ुशी मिल सकती है लेकिन अल्लाह को ख़ुशी बिलकुल नहीं मिलेगी, क्योंकि अल्लाह कभी अपनी औलादों को कत्ल करने के लिए नहीं कह सकता। अल्लाह के नाम पर और अल्लाह की और से उसके अभिकर्ता बनकर जो ताकतें लोगों की बोलती बंद करना चाहतीं है , उन्हें कामयाबी मिलने वाली नहीं है। जिस अमेरिका में रुश्दी को निशाना बनाया गया है उसी अमेरिका के ड्रोन ऐसी ताकतों को खोज निकालते हैं। हाल में ड्रोन ने अपना काम किया भी है।
बागेश्वरधाम के नौजवान साधकों की तरह मेरा ईश्वर से कभी साक्षात नहीं हुआ। ईश्वर का कोई मोबाइल नंबर भी नहीं है जिससे उनसे बात की जा सके। इसलिए मै पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि ईश्वर की मुझसे या मेरी ईश्वर से कोई अदावत नहीं है। सलमान रुश्दी की भी किसी से अदावत क्यों रही होगी? वे लेखक हैं.उन्हें जो सही लगा होगा वो उन्होंने लिखा होगा। उन्हें लिखने की आजादी है। आपको पढ़ने या न पढ़ने की आजादी है ,लेकिन लेखक की जान लेने की आजादी न क़ानून किसी को देता है न अल्लाह।
सलमान रुश्दी को नयी जिंदगी मिलना चाहिए। अल्लाह उनपर रहम करेगा ऐसा यकीन मुझे है। हम सब सलमान रुश्दी के लिए दुआएं करें तो और बेहतर है | दुनिया की बेहतरी के लिए मुहब्बत बहुत जरूरी चीज है। नफरत से ,कटटरता से ये दुनिया चलने वाली नहीं है। चल ही नहीं सकती। कुछ देर के लिए मुहब्बत को स्थगित कर नफरत से दुनिया चलकर देख लीजिये न ? हकीकत का पता चल जायेगा |
आपको याद होगा कि लेखन कोई आसान काम नहीं है | चीन में ‘ बुहान की डायरी ‘ लिखने वाली लेखिका फेंग को 2019 में धमकाया गया था। फेंग कोई नामचिन्ह लेखिका नहीं हैं। उन्होंने ईश निंदा भी नहीं की। फेंग ने केवल कोरोना विषाणु को लेकर अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा किया था।
एक मामूली और अनाम लेख के रूप में कार्य करते हुए मै लेखन के धर्म और खतरों से वाकिफ हूं। एक लेखक की हैसियत से ही मैं सलमान रुश्दी के साथ खड़ा हूँ। तस्लीमा के साथ खड़ा हूँ,फेंग के साथ खड़ा हूँ। आप भी यदि दुनिया में सच्चाई को जिन्दा रखना चाहते हैं तो कृपाकर लेखकों के साथ खड़ा होना सीखें। अगर लिखने वाले नहीं होंगे तो ये समाज कैसा होगा ,इसकी कल्पना करके देख लीजिये?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)