ईंट से ईंट बजाती उमा भारती, क्या किसी में है कार्रवाई का दम?

वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल का उमा भारती के शराब की दुकान पर व्यवहार पर आलेख।

मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री उमा भारती आखिर किसकी ईंट से ईंट बजाना चाहती हैं? क्या उन्हें पुलिस संरक्षण में शराब की दुकान पर ईंट बजाने की छूट मध्यप्रदेश की सरकार ने दी है,या वे मध्यप्रदेश में लागू पुलिस कमिश्नर प्रणाली की ईंट से ईंट बजा रहीं हैं ? आखिर पूरे परिदृश्य से हमारी पुलिस अदृश्य क्यों है?

उमाजी भाजपा की पकी-पकाई नेता हैं। केंद्र में मंत्री रहने के साथ ही वे मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं और मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार की ईंट से ईंट बजाने में उमा जी ही सबसे आगे थीं। उन्हें मालूम है कि ईंट से ईंट कब और कैसे बजाई जाती है लेकिन इस बार उन्होंने शराबबंदी के लिए केवल शराब की एक दुकान पर ईंट नहीं फेंकी बल्कि अपनी ही पार्टी की सरकार और हाल में लागू पुलिस कमिश्नर प्रणाली की ईंट से ईंट बजा दी है। अब इसकी प्रतिध्वनि कितनी दूर जाएगी ये अभी नहीं कहा जा सकता।

प्रदेश की पुलिस चाहती थी कि उसे पुलिस कमिश्नर प्रणाली में तब्दील कर ज्यादा अधिकार दिए जाएँ ताकि पुलिस बिना दबाब के अपना काम कर सके। पुलिस को अतिरिक्त अधिकार मिल गए लेकिन क्या पुलिस कमिश्नर प्रणाली ने उमा भारती द्वारा शराब की दूकान पर किये गए जुर्म को लेकर कोई संज्ञान लिया? पुलिस कह सकती है कि उसके पास कोई फरियादी नहीं आया लेकिन क्या पुलिस कह सकती है कि सैकड़ों की भीड़ के साथ उमा भारती द्वारा किये जा रहे आंदोलन की कोई जानकारी पुलिस को नहीं थी। उमा भारती पूर्व मुख्यमंत्री हैं,उन्हें विशेष सुरक्षा मुहैया कराई गयी है किन्तु क्या वे इस सुरक्षा व्यवस्था के साथ कहीं भी जाकर तोड़फोड़ कर सकतीं हैं? क्या उनकी सुरक्षा में लगे पुलिस कर्मियों को ये प्रशिक्षण नहीं दिया गया वे अपनी आँखों के सामने कोई अपराध होता न देखें ?

राकेश अचल

पूर्व मुख्यमंत्री के नाते उमा जी को विधि-विधान का पूरा ज्ञान है ही,होना ही चाहिए। इसलिए हैरानी होती है कि वे शराबबंदी आंदोलन के तहत किसी लाइसेंसशुदा शराब की दूकान में घुसकर वहां रखी शराब की बोतलों को ईंट के प्रहार से तोड़तीं हैं और गर्वोन्नत भाव से जयश्रीराम के नारों के बीच वापस लौटती हैं। क्या मुख्यमंत्री और पुलिस कमिश्नर ने कभी सोचा की उनकी निष्क्रियता से पूरे प्रदेश में क्या हो सकता है? उमा जी का अनुशरण करते हुए यदि शराबबंदी के समर्थक इसी तरह ईंटें लेकर हर गांव,शहर में शराब की दुकानों में घिसकर तोड़फोड़ करेंगे तो क्या सूरत बनेगी ?

उमा भारती ने प्रथम दृष्टया क़ानून को अपने हाथ में लिया है और बेशर्मी के साथ लिया है। इसलिए पुलिस कमिश्नर प्रणाली का दायित्व बनता है कि वो बिना किसी डर-भय के उमा भारती के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करे। यदि यही कृत्य कोई आम आदमी करता तो उसे कब का हवालात में ठूंस दिया जाता,लेकिन उमा भारती के साथ पुलिस ये बरताव नहीं कर सकती। यहां पुलिस के हाथ अपने आप बांध जाते हैं। कोई भी प्रणाली यहां काम नहीं करती।

शराब बंदी एक सामाजिक मुद्दा है। कोई भी सत्ता शराबबंदी का समर्थन नहीं करती और जिन राज्यों में भी शराबबन्दी की भी गयी है वहां शराब की तस्करी का समानांतर कारोबार खूब फल-फूल रहा है। उमा जी ने शराब का सेवन नहीं किया होगा लेकिन वे हरकतें किसी शराबी जैसी ही कर रहीं हैं। शराब बहुत बुरी चीज है,इस पर रोक लगना चाहिए लेकिन इसके लिए राजनीतिक निर्णय की जरूरत है। एक तरफ सरकार शराब सस्ती कर रही है और दूसरी तरफ सरकारी पार्टी की प्रमुख नेता उमा जी शराबबंदी के खिलाफ हिंसक आंदोलन की ईंट रख रहीं हैं। ऐसे में अराजक स्थितियां तो बनेंगी ही।

आपको याद होगा कि उमा जी को एक जमाने में फायरब्रांड नेता माना जाता था। उनमें फायर थी भी। मैं उमा जी को उस दिन से जानता हूँ जिस दिन उन्होंने भगवा ओढ़े ही राजनीति में पहला कदम रखा था। वे प्रवाचक थीं। रामचरित मानस और भागवत सुनाती थीं और खूब सुनाती थीं,उनकी जिव्हा पर सरस्वती विराजती थीं,लेकिन वो अतीत की बात थी। अब उमा जी का फायरब्रांड चल नहीं रहा। उनकी अपनी पार्टी ने उन्हें हाशिये पर ला खड़ा किया है। एक बार पार्टी को विभाजित कर चुकी उमा में अब इतना जोश -खरोश नहीं बचा है कि वे अब दोबारा पार्टी को तोड़ सकें लेकिन उनके भीतर अपनी उपेक्षा की कुंठा है। इसलिए वे जब तक सनक जातीं हैं लेकिन उनकी सनक क़ानून और व्यवस्था को चुनौती नहीं दे सकती। कानून को अपना काम करना ही चाहिए,अन्यथा कोई नहीं मानेगा कि-‘ क़ानून के हाथ लम्बे होते हैं’

मुझे हैरानी होती है कि प्रदेश भाजपा ने उमा भारती के इस हारकर को उनका निजी मामला बताकर पल्ला झाड़ लिया है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और प्रदेश के मुख्यमंत्री की ये हैसियत नहीं है कि वे उमा भारती को हद में रहने की चेतावनी दे सकें। अब केंद्रीय नेतृत्व ही प्रदेश भाजपा की, प्रदेश सरकार की और प्रदेश की राजधानी में लागू पुलिस कमिश्नर प्रणाली की लाज बचा सकते हैं,अन्यथा उमा जी तो तीनों की ईंट से ईंट बजने का श्रीगणेश कर ही चुकी हैं।

उमा भारती के हाथ में ईंट का होना किसी भी रूप में स्वीकार्य,स्तुत्य या बंदनीय नहीं हो सकता। वे यदि संत हैं तो भी हिंसक नहीं हो सकतीं, वे यदि एक राजनेता हैं तो भी उन्हें क़ानून हाथ में लेने की इजाजत नहीं दी जा सकती। वे यदि समाज सुधारक हैं तो भी उन्हें हिंसात्मक रास्ते पर चलने की इजाजत नहीं दी जा सकती। दुर्भाग्य से उमा जी अब न संत हैं और न राजनेता,समाजसेवी तो बिलकुल नहीं हैं। उनकी तुलना एक खिसियानी बिल्ली से जरूर की जा सकती है। जो खम्भे नोंचने के बजाय ईंटें बरसा रही है। लेकिन दुर्भाग्य की अब राजनीती में किसी बिल्ली के भाग्य से कोई छीका नहीं टूटने वाला। वे चाहे जितना कस-बल लगा लें मुख्यमंत्री पद से शिवराज सिंह चौहान नहीं जाने वाले।

प्रदेश में शराबबंदी की उमा जी की मांग का समर्थन किया जा सकता है। उन्होंने विरोध के लिए जो रास्ता अख्तियार किया है ,उसका समर्थन न पार्टी को करना चाहिए न सरकार को और न पुलिस कमिश्नर को। उमा जी के खिलाफ यदि कार्रवाई न की गयी तो सरकार और भाजपा की तो सिर्फ भद्द पिटेगी लेकिन पुलिस कमिश्नर प्रणाली का तो भट्टा ही बैठ जाएगा। अब देखते हैं की आगे कौन से गुल खिलते हैं?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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