बाबा साहेब अंबेडकर के नाम पर ग्वालियर में र हुए महाकुंभ के जरिए दलितों को अकेली मप्र सरकार ने ही नहीं अपितु ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी अहसानों के बोझ से लादने क कोशिश की गई। दलितों को अहसास कराया गया कि भाजपा से पहले उनका और उनके आराध्य बाबा साहेब अम्बेडकर क कोई खैर-ख्वाह नहीं था।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने अनुसूचित जाति समाज की प्रमुख उप जातियों के अलग-अलग कल्याण बोर्ड बनाने क ऐलान किया। अब विधानसभा चुनाव में दलितों के वोट हड़पने के लिए प्रदेश में कोरी कल्याण बोर्ड, जाटव कल्याण बोर्ड. बनाए जाएंगे।इनके अध्यक्ष और सदस्य भी बनाएंगे। अध्यक्ष को मंत्री का दर्जा दिया जाएगा। इनकी जिम्मेदारी समाज के बीच दौरा करना और समस्याएं जानने का होगा।
विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का दिल अचानक दरिया हो गया। शिवराज सिंह ने कहा कि अभी तक जिन परिवारों की वार्षिक आय 6 लाख होती थी उनकी पढ़ाई की फीस सरकार जमा कराती थी। आज से 8 लाख तक के आय वाले परिवारों के बच्चों की फीस सरकार जमा कराएगी।
सरकार को ये सब अपने पिछले तीन कार्यकालों में नहीं सूझा। चौथे में भी दलितों की याद तब आई जब जमीन खिसकने का अहसास हुआ। भाजपा की डूबती नैया पार करने की मजबूरी में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जय भीम का नारा लगाते हुए अपनी बात रखना शुरू की । मुख्यमंत्री को गड़े मुर्दे खोदना पड़े। कहना पड़ा कि जिस बाबा साहब अंबेडकर ने संविधान बनाया, उन्हें चुनाव में हरवाने का काम कांग्रेस ने किया। बाबा साहब के बनाए संविधान पर मोदी जी और हम सरकार चला रहे हैं।
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से दो कदम आगे निकल गए। सिंधिया के पूर्वजों ने तो किसी दलित को अंबेडकर बनाने में मदद नहीं की सो मजबूरन ससुराल को बैशाखियों क इस्तेमाल करना पड़ा। सिंधिया ने कहा, मेरी पत्नी के पूर्वज सयाजीराव गायकवाड़ महाराज ने बाबा साहब को पढ़ाई के लिए विदेश भेजा था। सिंधिया की रियासत में कितने दलितों को विदेश पढ़ने के लिए भेजा गया ये कोई नहीं जानता। हां सिंधिया स्कूल में अवश्य दलितों के लिए कुछ सीटों का आरक्षण है।
सिंधिया को भी सीने पर पत्थर रखकर कांग्रेस को कोसना पड़ा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने बाबा साहब को कभी सम्मान नहीं दिया। 75 साल बाबा साहब को सम्मान के लिए इंतजार करना पड़ा। सिंधिया ने हाथ जोड़कर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से निवेदन करते हुए कहा, ग्वालियर में अंबेडकर धाम बनाने के लिए सरकारी जमीन दें। ये हाथ पहले कभी नही जुड़े।
आपको याद होगा कि भाजपा दलितों से पहले आदिवासियों को दाना डाल चुकी है। रानी कमलापति को भाजपा ने ही पुनर्जीवित किया।अब दलितों के लिए भाजपा महू में होने वाले कुंभ को ग्वालियर उठा लायी, जबकि ग्वालियर से बाबा साहब का कोई रिश्ता नहीं है। भाजपा चूंकि ग्वालियर -चंबल संभाग में हिलती नजर आ रही है इसलिए दलितों का जमावड़ा महू के बजाय ग्वालियर में करना पड़ा।
दलित महाकुंभ का स्थान बदलने की वजह से सरकार को दस करोड़ रुपए से अधिक की राशि खर्च करना पड़ी।अब ये दलितों पर है कि वे विधानसभा चुनाव में भाजपा और सिंधिया की ससुराल के अहसानों के बदले में भाजपा को वोट देते हैं या नहीं ? ग्वालियर -चंबल के जनप्रतिनिधियों की कथित बगावत की वजह से 2020 मार्च में भाजपा को बिना जनादेश के बिना दोबारा सत्ता मिली थी। लेकिन छह माह के भीतर हुए विधानसभा उप चुनाव में कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए तमाम सिंधिया समर्थक विधायक चुनाव हार गए थे।
दलितों को लुभाने के लिए मजबूर भाजपा के सामने इस बार महाराज चुनौती नहीं बल्कि समस्या बन गये हैं। अंचल में भाजपा से ज्यादा विरोध सिंधिया का है। सिंधिया को कांग्रेस तो घेर ही रही है, भाजपा का भी एक धड़ा भी घेर रहा है।महल के भीतर और बाहर से घिरे सिंधिया भी डाक्टर भीमराव अम्बेडकर की जय जयकार करने के लिए विवश हैं।
डाक्टर भीमराव अम्बेडकर को पूजना भाजपा की मजबूरी है। मजबूर भाजपा को घेरने के लिए इस बार बसपा से ज्यादा भीम आर्मी सक्रिय दिखाई दे रही है।इस अंचल की 32 में से 12 सीटों पर दलित निर्णायक भूमिका में रहते आए हैं।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)