दस साल जिस ‘इंडिया’ पर बजाए गाल, अचानक वह घृणा का पात्र कैसे बन जाएगा?
इंडिया और भारत दोनों एक ही देश के दो वैधानिक और सांस्कृतिक नाम
Ashok Chaturvedi
कॉरपोरेट मीडिया मक्कारी भरी कहानी बनाने की कोशिश कर रहा है। इंडिया का नाम बदलकर भारत किया जा रहा है। ऐसा इसलिए है ताकि भ्रम पैदा हो कि देश को इंडिया और भारत में किसी एक को चुनना है।
इंडिया का नाम बदलकर भारत नहीं किया जा रहा है बल्कि इंडिया नाम मिटाया जा रहा है। इंडिया और भारत दोनों एक ही देश के दो वैधानिक और सांस्कृतिक नाम हैं। जो इस देश से प्रेम करता है, वो उन तमाम नामों से प्रेम करता है, जिनसे भारत की पहचान है। भारत और इंडिया दोनों नाम समानार्थी एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं। पापा कहो या बाबूजी या अब्बू। मतलब पिता ही होता है।
एक शब्द जिसे लेकर देश का प्रधानमंत्री दस साल तक गाल बजाता रहा हो, स्टैंड अप इंडिया, मेक इन इंडिया, न्यू इंडिया जपता रहा हो वो शब्द अचानक घृणा का पात्र बन जाये ये कैसे संभव है?
ये सिर्फ जोंबी समाज में संभव है। जहां एक राजनेता अपने राजनीतिक फायदे के लिए कोई इशारे करे और बिना सोचे-समझे लाखों लोग उसके पीछे तोता रटंत अंदाज में वही दोहराने लगे।
नाम बदलने को लेकर इस देश में जो राजनीति चल रही है, उसके केंद्र में सिर्फ और सिर्फ घृणा है। यही घृणा एक खास तरह की राजनीति करने वालों का खाद-पानी है। इंडिया मिटाया जाएगा या नहीं ये अभी तय नहीं है। संघी अफवाह तंत्र फिलहाल केवल हवा का रूख भांप रहा है।
लेकिन रातो-रात दर्जनों विचारकर और चिंतक प्रकट हो गये और लगे फेसबुक और ट्विटर जैसे अमेरिकी प्लेटफॉर्म्स पर ज्ञान की गंगा बहाने कि भारत सनातन है और इंडिया विदेशी है।
कभी इनकी टाइम लाइन चेक कीजिये क्या पिछले दस साल में इन्होंने कभी भारत और इंडिया का मुद्दा उठाया? ये अपनी आत्मा गिरवी रख चुके ऐसे लोग हैं, जिन्हें वक्त ने पांच रूपये प्रति ट्ववीट वाले ट्रोल से भी गया गुजरा बना दिया है।
बीजेपी को लगता है कि प्रतीकवाद ही सबकुछ है और वो ऐसे तमाशे खड़ी करके अनंतकाल तक सत्ता में बनी रह सकती है। बिना किसी बहस के माना जा सकता है कि देश की बहुसंख्यक आबादी मूर्ख है लेकिन बुद्धि विरोधी आंदोलन का भी कोई ना कोई एक्सपायरी डेट तो होता ही होगा।
(लेखक-पत्रकार राकेश कायस्थ की फेसबुक वॉल से साभार)