ताकतवर होते बीजेपी-RSS और कुंठित होता हिंदू समुदाय

पत्रकार-लेखक राकेश कायस्थ की प्रतीकों के फूहड़ और बाज़ारू इस्तेमाल के संदर्भ में FB पोस्ट

धर्म पर किसी तरह की बात ना करना मौजूदा समय का असली धर्म है। लेकिन पानी जब सिर से गुजरने लगे तो बात करनी ही पड़ेगी। पिछले तीन दशक में मैंने धर्म के नाम पर कई दंगे देखे हैं लेकिन इससे कहीं ज्यादा सामाजिक सौहार्द और भाईचारे की कहानियां देखी हैं। नफरत फैलाने की कोशिशें देखी हैं और उसके खिलाफ पूरे समाज को एकजुट होकर खड़ा होते हुए भी देखा है।

जो पहले कभी नहीं देखा, वो है कि अपनी देवी-देवताओं को सड़क पर उतारकर नफरत का औजार बनाना। लोग धमकी दे रहे हैं कि तुम्हारे घर के बाहर हनुमान चालीसा पढ़ दूंगा, जैसे कह रहे हों कोई गंदी गाली दे दूंगा। दुनिया की किसी भी सभ्यता ने अपने प्रतीकों का इतना फूहड़ और बाजारू इस्तेमाल नहीं किया होगा, जैसा वर्तमान हिंदू समाज कर रहा है।

राकेश कायस्थ

किसी समुदाय विशेष को लक्ष्य करके जय श्रीराम चिल्लाते लोगों को देखिये। लहजा ऐसा कि अपने ईश्वर का नाम लेने और `भैंस की आँख’ की आँख कहने में कोई फर्क ही नहीं बचा। करोड़ों शांतिप्रिय और आस्थावान लोगों को इस बात का बुरा लगना चाहिए। धर्मगुरुओं को यह कहना चाहिए राजनीतिक लामबंदी के लिए धार्मिक प्रतीकों का सस्ता इस्तेमाल बंद करें। मेरी समझ में इसका कोई राजनीतिक लाभ भी नहीं है। जिसके लिए धार्मिक पहचान ही सबसे बड़ा मुद्दा है, वह पहले भी बीजेपी को वोट देता था और आगे भी देगा।

अपने मंत्रों का हूटिंग का औजार बनाने का परिणाम आनेवाले दिनों में दिखाई देगा, जब शब्द अपना असली अर्थ खो देंगे। तब धर्म सही मायने में खतरे में होगा।

दुनिया का कोई और धर्म दूसरे धर्मावलंबियों को डराने, चिढ़ाने या नीचा दिखाने के लिए अपने धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल नहीं करता है, क्योंकि वह उसकी पवित्रता को बचाये रखना चाहता है।

यह एक विचित्र विरोधाभास है कि जैसे-जैसे बीजेपी और आरएसएस राजनीतिक रूप से ताकतवर हुए हैं, हिंदू समुदाय के एक हारे हुए कुंठित समुदाय में परिवर्तित होने की प्रक्रिया तेज हुई है। न्यू इंडिया का नया हिंदू दूसरे धर्म की अच्छाइयों से कुछ नहीं सीखता लेकिन बुराइयों की नकल करना चाहता है।

नफरत, कुंठा और उन्माद इसी तरह बढ़ते रहे तो इसका सबसे पहला असर अपने परिवार, समाज और परिवेश पर पड़ेगा औरो को `सबक सिखाना’ तो बहुत दूर की बात है। शांतिप्रिय लोग यह बात जितनी जल्दी समझ लें उतना अच्छा है।

(पत्रकार-लेखक राकेश कायस्थ की फेसबुक वॉल से साभार)

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