क्या नैरेटिव सेट करने की अपनी क्षमता खो चुके हैं नरेंद्र मोदी?
नरेंद्र मोदी सिर्फ विपक्ष की बातों पर रियेक्ट करते आ रहे नज़र, इंडिया गठबंधन के डर ने सरकार को बना दिया जरूर से ज्यादा आक्रामक
Ashok Chaturvedi
मैंने पहले लिखा था कि 2024 की लड़ाई अंकगणित बनाम रसायन होगी। यानी वोटों के अंकगणित के आधार पर विपक्ष चुनौती पेश करता नज़र आ रहा है लेकिन केमेस्ट्री मोदी के पक्ष में है।
केमेस्ट्री के पक्ष में होने का क्या मतलब है? मतलब ये कि आप किसी भी सरकार समर्थक से पूछिये तो कहेगा कि मोदीजी जैसा नेता दुनिया में नहीं है। लेकिन नौ साल के तीन काम पूछिये तो बगले झांकने लगेगा। दस में आठ समर्थकों का यही हाल है। फिर भी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि “आएगा तो मोदी ही” वाले वोटर विशाल संख्या मौजूद हैं।
लेकिन कहानी अब इतनी सरल भी नहीं रह गई है। पिछले तीन-चार महीने से लगातार ऐसा लग रहा है कि नैरेटिव सेट करने की अपनी क्षमता नरेंद्र मोदी खो चुके हैं और वो सिर्फ विपक्ष की बातों पर रियेक्ट करते नज़र आ रहे हैं। इंडिया गठबंधन के डर ने सरकार को जरूर से ज्यादा आक्रामक बना दिया है।
आज़ादी के बाद की यह पहली सरकार है जो अपने उत्तरदायित्व रहित होेने पर गर्व करती है। जब सरकार सवालों के घेरे में होती है, तो उपयुक्त सफाई देकर देश को आश्वस्त करने के बदले पूरा कैबिनेट ” तू चोर, तेरा बाप चोर, तेरा खानदान चोर ” वाली भंगिमा में हाथ नचा-नचाकर गालियां बकने लगता है।
जब लोकप्रियता उफान थी, तब ये शैली कुछ हद तक कारगर भी रही। लेकिन पूरे देश को इससे घिन आने लगी है। मणिपुर मामले पर सरकार का जो स्टैंड रहा उसे देखकर देश यही मानना है कि ऐसे निकम्मे लोगों को कान पकड़कर निकाल बाहर करना चाहिए।
यानी केमेस्ट्री अब नरेंद्र मोदी के पक्ष में नहीं है। इसका अंदाज़ा आप सड़क होेनेवाली बातचीत से लग सकता है। विपक्ष अगर सिर्फ इतना वादा करे कि हम नरेंद्र मोदी की तरह पिछली सरकार के किस्से नहीं सुनाएंगे बल्कि देश को अपने काम का हिसाब देंगे, तो इसका चमत्कारिक परिणाम 2024 में दिखाई दे सकता है।