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शहीद दिवस पर विशेष: आम जनता को निडर कर देना ही गांधी की ताकत

सेवानिवृत्त IAS राजेश बहुगुणा का वर्तमान दौर में महात्मा गांधी प्रासंगिकता पर आलेख

महात्मा गांधी की शहादत को आज (30 जनवरी) 74 वर्ष हो गए। अभी एक दो साल पहले ही हमने देखा है कि किस प्रकार एक महिला द्वारा गांधी की फोटो पर गोली चलाने का फोटो सोशल मीडिया में आया था। हालांकि वह मात्र एक नाटक था किंतु गांधी के देश में गांधी के फोटो के साथ ऐसा व्यवहार सोचने को विवश करता है कि क्या गांधी धीरे-धीरे अप्रासंगिक हो रहे हैं या गांधी अभी इतने प्रासंगिक हैं कि उनकी पुनः हत्या किया जाना कुछ लोगों की नजर में अब भी जरूरी है?

गांधी 20वीं सदी के विश्व इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण व प्रमुख व्यक्ति रहे हैं और इसलिए गांधी के पक्ष और विपक्ष दोनों ही तरफ पूरी ताकत से लिखा गया है। जहां गांधी के समर्थक उन्हें समस्त समस्याओं के हल के रूप में देखते हैं, वहाँ उनके विरोधी भी उनके विरोध में इतिहास के नए नए सच्चे झूठे तथ्य उनकी छवि को कमजोर करने के लिए नित ला रहे हैं। गांधी का समय ऐसा काल है जिसमें सभी कुछ दस्तावेजों के रूप में संग्रहित है। हमें ध्यान रखना चाहिए कि गांधी के संबंध में अन्य व्यक्तियों, गांधी के सहकर्मियों और इतिहासकारों ने इतना लिखा हुआ है कि गांधी और उनका विचार दर्शन पूरी तरह स्पष्ट तथा पारदर्शी हो चुका है। गांधी के विरोध में सोशल मीडिया ज्ञान को सदैव इन दस्तावेजों से पुष्ट करना ही एक विवेकशील व्यक्ति से आज अपेक्षा है।

गांधी के लिए आजादी का अर्थ विदेशी शासन से मुक्त हो जाना मात्र नहीं था। गांधी की दृष्टि में आजादी के पश्चात भारत के नागरिक विशेष रूप से गांव के किसान चेतना से युक्त हों, गांधी उन्हें भूख और महामारियों से मुक्त भी देखना चाहते थे। पिछले वर्षों में कोविड के दौरान सड़को पर सैकड़ों मील पैदल चलते गरीब और बेड व ऑक्सीजन के लिए भटकते गरीबों को देखकर सोचिये कि गांधी होते तो क्या करते।

राजेश बहुगुणा

आज़ादी से भी पहले उनके लिए जरूरी था कि सामाजिक सद्भाव और बराबरी कैसे स्थापित हो। कम्युनल अवार्ड घोषित होने के पश्चात गांधी द्वारा आमरण अनशन करने तथा सविनय अवज्ञा आंदोलन को स्थगित करने पर देश के उस समय के लगभग सभी नेता गांधी से सहमत नहीं थे किंतु गांधी का कहना था – क्या होगा वैसी स्वतंत्रता प्राप्त कर, जहां हिंसा हो, जहां असत्य हो, जहां नफरत हो, जहां सड़ान्ध भरे विचार हों, जहां एक भाई दूसरे भाई को अछूत मानता हो।

गांधी के अनुसार यदि आजादी की सांस लेना है तो समाज के सभी रचनात्मक कार्य प्राणवायु है। गांधी के विचारों से आजादी के 75 वर्ष के भारत को देखें। हम अभी भी अस्पृश्यता के कलंक को लिए हुए हैं। आज भी ऐसे इलाके हैं जहां अनुसूचित जाति के वर्ग के व्यक्ति को शादी में घोड़े पर बैठने या गांव में बड़ी जाति के इलाके में जूता पहनकर चलने या नीची जाति के लड़के की ऊंची जाति की लड़की के साथ विवाह पर निम्न जाति के लोगों की पिटाई, हत्या व दंगों की स्थिति बन जाती है। किसी अन्य देश में ऐसा होने पर यही दंगा करने वाले उस देश और समाज को जाहिल कहेंगे।

सुभाष चंद्र बोस ने गांधी की नीति को समग्रता में यह कहते हुए स्पष्ट किया कि उनकी नीति सबको मिलाने की रही। वह हिंदू और मुसलमानों को, ऊंची और नीची जाति वालों को , पूंजीपति और मजदूरों को तथा जमीदार और काश्तकार को मिलाना चाहते थे। अपनी मानवीय दृष्टि और घृणा से मुक्त स्वभाव के कारण वह अपने शत्रु के मन में भी सहानुभूति उत्पन्न करने में सफल रहे।

विश्व के सबसे ताकतवर राष्ट्र ब्रिटेन के सामने इतने बड़े देश में जहां गरीबी हो और समाज, धर्म और जाति में विभाजित हो,आजादी की लड़ाई हिंसा का सहारा लेकर न तो संभव थी और न ही व्यावहारिक। यह इस तथ्य से भी स्पष्ट होता है कि भगतसिंह की फांसी के बाद 2 -3 वर्षों के भीतर ही हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी विघटित और निष्क्रिय हो गयी थी।

कोई भी जनांदोलन जनता के समर्थन से ही सम्भव है। गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में जो भी प्रयोग किए थे उनकी सफलता से आश्वस्त होकर चंपारण में भी उन्होंने देश में आकर पहला प्रयोग किया जो सफल रहा। पहली बार आम जनता ब्रिटिश सरकार की कृषक विरोधी नीति के विरुद्ध एक नेता महात्मा गांधी के पीछे खड़ी थी। यह जनता गांधी के पीछे खड़ी ही क्यों हुई। अपनी आत्मकथा में डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने लिखा है कि गांधी के चंपारण में जाने और नील किसानों की शिकायतों की जांच करने की घोषणा के साथ ही स्थानीय प्रशासन द्वारा प्रतिबंधात्मक कार्यवाही के आदेश जारी किए गए।

यह स्पष्ट था कि गांधी यदि आदेश के विरोध में चंपारण जाएंगे तो गिरफ्तारी तय है। गांधी ने किसानों से पूछा कि मेरे जेल जाने पर आप लोग क्या करेंगे।सभी ने कहा कि हम आंदोलन जारी रखेंगे लेकिन जेल जाने की स्थिति में चंपारण छोड़ देंगे। गांधी ने कुछ नहीं कहा लेकिन नेताओं ने बाद में सोचा कि यह गुजरात से आया व्यक्ति हम लोगों के लिए जेल जाने को तैयार है लेकिन हम नहीं। फिर सभी ने गाँधी का साथ देने और आन्दोलन मे जेल जाने के लिए भी तैयार होने का निश्चय किया। गांधी को जब उन्होंने अपना निश्चय बाद में बताया तो गांधी ने कहा कि समझ लोअब मोर्चा फतह कर लिया। आम जनता को निडर कर देना गांधी की ताकत है। लोकतंत्र में यदि जनता का डर ताकतवर सत्ता के सामने खत्म हो जाए तो सत्ता ही निर्बल हो जाती है। भारतीय आज़ादी आन्दोलन में और गांधी विचारधारा के अनुसार मार्टिन लूथर किंग जूनियर और नेल्सन मंडेला ने भी गांधी की शहादत के अनेक वर्षों बाद जनता को सत्ता के सामने निडर कर दिया था। जनता की निडरता ही लोकतंत्र को मजबूत करती है।

अभी हाल में दिल्ली में किसानों का आंदोलन भी गांधी की प्रासंगिकता को ही स्पष्ट करता है जब लाखों किसान एक वर्ष तक पूरी तरह से अहिंसात्मक आन्दोलन में निरंतर लगे रहे और अपनी मांग शासन से मनवाने में कामयाब रहे। गांधी की एक खूबी और है – वह है असहमतियों के बीच पुल बनाने की। गांधी के अनेक निर्णयों को लेकर पटेल, नेहरू, सुभाष, आजाद सभी उनके समय के कांग्रेसी नेता कभी न कभी सहमत नहीं रहे लेकिन गांधी ने इन असहमतियों के बीच भी चर्चा की खिड़की सदैव खोल के रखी जिससे गांधी से अलग कोई नहीं हो पाया। सुभाष पूरे विरोध के बावजूद भी गांधी को राष्ट्रपिता ही कहते हैं । यही राष्ट्रपिता गांधी की महत्ता है।

जब तक नैतिकता, सत्य, सामाजिक सद्भाव, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक समता के मूल्य राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित रहेंगे और जब तक निर्बल जनता की अपने अधिकारों के लिए विश्व के किसी भी स्थान पर ताक़तवर सत्ता के विरुद्ध लड़ाई चलती रहेगी, तब तक महात्मा गान्धी और उनके विचार इस धरा में प्रासंगिक बने रहेंगे।

(लेखक सेवानिवृत्त आईएएस हैं और समसामयिक मुद्दों पर स्वतंत्र लेखन करते हैं)

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