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व्यंग्य: आत्मनिर्भरता सब सुविधाओं का निचोड़, समवेत करें गुणगान

किसान आंदोलन को विफल करने से सत्ता में आत्मनिर्भरता बढ़ी थी, क्योंकि उनकी नज़र में किसान इस देश के एकदम फालतू किस्म के लोग होते हैं। वे एक लंबे अरसे से अनावश्यक टेंटें कर रहे थे। सत्ता को असुविधा में डाल रहे थे। जिम्मेदार कुछ थोड़े से किसानों को कृषि कानूनों के बेहतरीन फायदों को ठीक -ठिकाने से समझा नहीं पाए। यह न समझा पाना कोई रहस्य नहीं है बल्कि पूरा का पूरा रहस्यवाद है।

काले कृषि कानूनों से देश खुशहाल हो सकता था। समूची ताक़त काले में है। उसमें बड़ी बरक्कत होने वाली थी। कहावत है अभागी की दोनिया में छेद होता है। जिम्मेदारों ने दयानतदारी दिखाई। बिल निरस्त किए राष्ट्रीय प्रसारण में, फिर संसद में । वापसी का झन्नाटेदार बजुर किवाड़ नहीं खोल पाए। यह एक अलग मुद्दा है।

आत्मनिर्भरता की अनेक कथाएं भी होती हैं और तहें भी। वरिष्ठ जनों को दी जाने वाली सुविधाओं में कटौती करके व्यवस्था ने आत्मनिर्भरता का लगातार अनन्त विस्तार किया है। परचम लहराया है। देश के खज़ाने में इज़ाफा किया है। यही नहीं जो सुविधाएं रेलवे में दी जाती थी उनकी कटौती करके भी नागरिक आत्मनिर्भरता का कीर्तिमान अर्जित किया जा रहा है।

सेवाराम त्रिपाठी

महंगाई से हमारा कीर्तिमान बढ़ा है। उसके लिए कोई सीमा रेखा नहीं है और न हो सकती है। महंगाई का चरमोत्कर्ष विकास हमारी उच्चतम उपलब्धि साबित होने जा रहा है। महंगाई का उच्चतम स्कोर खड़ा करना आत्मनिर्भरता की चरम उपलब्धि है। गैस कनेक्शन शासन ने करा दिए एक बार। एक बार गैस भरवा दी आगे क्या जरूरत है? क्या सरकार आगे का ठेका लिए है? आत्मनिर्भर बनवा दिया।अब पूरी तरह निर्भर बनकर नागरिक उसमें गैस भराएं।

अच्छी बात है ना।आत्मनिर्भरता सब सुविधाओं का निचोड़ है। हमें उसका समवेत रूप से गुणगान करना चाहिए। है कि नहीं। यूं भी सिद्ध हो चुका है कि नागरिकों के पास गुणगान करने के अलावा आख़िर बचा ही क्या है ? अस्पतालों में मौतों की लंबी श्रंखला ने देश को आत्मनिर्भर बना दिया है।

छोटे-छोटे बच्चे और बड़े -बड़े बच्चे विगत दो वर्ष से स्कूल कॉलेज से अलग होकर अपने -अपने घर में आराम से बने रहते हैं। रिजल्ट अच्छे आ जाते हैं। इसी तरह पढ़ाई लिखाई हो जाती है । केवल अभिवावक अपना करम कूट रहे हैं। इससे बड़ी आपने आत्मनिर्भरता जिंदगी में कभी देखी है क्या? कभी सुना है जी। कभी आगे देखेंगे भी नहीं। लोग आलतू -फालतू झांझ बजाते रहते हैं।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अरसा पहले आत्मनिर्भरता नामक एक निबंध लिखा था। वे लिखते हैं-“प्रत्येक मनुष्य का भाग उसके हाथ में है। प्रत्येक मनुष्य अपना जीवन-निर्माण श्रेष्ठ रीति से कर सकता है।.. यही चित्तवृत्ति है जो मनुष्य को सामान्य जनों से उच्च बनाती है, उसके जीवन को सार्थक और उद्देश्यपूर्ण करती है तथा उसे उत्तम संस्कारों को ग्रहण करने योग्य बनाती है।”

महात्मा गांधी ने स्वावलंबी बनने की बात कही थी। उसको असली जीवन में उतारा किसने? स्वच्छता अभियान यूं तो महात्मा गांधी की देन है।देश में दूसरा संसद भवन बने तो देश आत्मनिर्भर होता है। बुलेट ट्रेन चलें तो निर्भरता के इलाके बुलंद होते हैं , स्मार्ट सिटी बने तो हम आत्मनिर्भरता के इलाके में लंबी -लंबी छलांग लगाते होते हैं।

हमें छोटी-छोटी बातों में पड़ने की आख़िर ज़रूरत क्या है? जीवन में रखा क्या है? अध्यात्म में देश दुनिया को हिलगाने से लोग बेरोजगारी से मुक्त हो जाते हैं। दुनिया की हकीकतसे बरीभी।दिन रात आरती उतारते हुए जीवन गुजारिए-“श्री रामचंद्र कृपालु भज मन /हरण भव भय दारुणम/नव कंज लोचन कंज मुख पद कंजारुणम” सब कमलमय है। अब हम कमल और कीच के बीच हैं। सारी लीलाएं कमल के कमाल के साथ कनेक्ट हैं। कृपया इसे केवल तुक तान न समझिए। यह कठिन कद काठी है और कोमल कला के कलेवर का अनुसंधान है।

(लेखक साहित्यकार और मप्र हिंदी ग्रन्थ अकादमी के पूर्व निदेशक हैं)

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