बंधुता का अर्थ: अम्बेडकर को जो आशंका थी वह सही हो रही साबित!
बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर की जयन्ती पर ध्रुव शुक्ल का विशेष आलेख
Ashok Chaturvedi
अम्बेडकर की दृष्टि में बंधुता का अर्थ है – सभी भारतीयों के भाईचारे और एक होने की भावना। यही बात हमारे सामाजिक जीवन को अखण्डता प्रदान कर सकती है और यह बहुत ही कठिन काम हमें कर दिखाना चाहिए। उन्होंने कहा था कि २६ जनवरी १९५० से हम कई अंतर्विरोधों के जीवन में प्रवेश करने जा रहे हैं। राजनीति में हमें समानता प्राप्त होगी पर सामाजिक और आर्थिक जीवन में नहीं होगी। हम ‘एक व्यक्ति एक वोट’ को मान्यता देते रहेंगे पर हमारे सामाजिक और आर्थिक ढांचे के कारण ‘एक व्यक्ति एक मूल्य’ के सिद्धांत को नकारते रहेंगे।
अम्बेडकर की यह आशंका अब तक सही साबित होती आयी है। धर्म जाति संप्रदाय के भेदभावों से ग्रस्त समाज में आर्थिक न्याय भी तब तक काफी नहीं है जब तक उसके साथ सामाजिक न्याय जुड़ा हुआ न हो। संविधान की रचना करते हुए वे महसूस कर रहे थे कि संविधान चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, यदि वे लोग, जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा जाये, खराब निकलें तो निश्चित रूप से संविधान भी खराब सिद्ध होगा। दूसरी ओर, संविधान में चाहे कितनी भी कमियां क्यों न हों, यदि उसे अमल में लाने वाले ईमानदार हों तो संविधान अच्छा साबित होगा।
अम्बेडकर कहते हैं कि किसी संविधान पर अमल उसके स्वरूप पर निर्भर नहीं करता। वह तो केवल विधायिका,कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसे राज्य के अंगों का प्रवधान ही कर सकता है। इन अंगों का नीतिपूर्वक संचालन जनता और उसकी आकांक्षाओं को पूरा करने के उद्देश्य से बने राजनीतिक दल ही कर सकते हैं। अम्बेडकर गहरे सोच में डूबकर यह भी रेखांकित करते हैं कि-अभी से यह कौन कह सकता है कि आने वाले समय में भारत के लोगों और राजनीतिक दलों का व्यवहार कैसा होगा?
अम्बेडकर को जो शंका थी वह सही साबित हो रही है। वे देख पा रहे थे कि हमारी अतीतजीवी स्मृति में जाति और संप्रदायों के रूप में पुराने शत्रु तो बने ही रहेंगे। परस्पर विरोधी विचार रखने वाले राजनीतिक दल भी बना लिये जायेंगे। ऐसी हालत में क्या भारतवासी देश को अपने पंथ से ऊपर रखेंगे या पंथ को देश से ऊपर रखेंगे? आज हम देख ही रहे हैं कि जात-पांत और पंथ की अनुदार सीमाओं में जकड़े जीवन पर अंध राष्ट्रवाद की धूल उड़ रही है और जिसकी धुंध में देश अदृश्य हो रहा है।
अम्बेडकर चेतावनी दे गये हैं कि यदि राजनीतिक दल अपने पंथ को देश से बड़ा मानेंगे तो हमारी स्वतंत्रता भयानक खतरे में पड़ जायेगी और संभवत: हमेशा के लिए ख़त्म भी हो सकती है। वे आह्वान करते रहे हैं कि सभी देशवासियों को इस संभावित घटना का प्रतिकार करते रहना चाहिए। अम्बेडकर जी की बात सुनकर अनुभव होता है कि मतांध कट्टरता का प्रतिकार करना हमारी दिनचर्या में शामिल होना चाहिए। जैसे हम रोज़ अपने शरीर की रक्षा के उपाय करते हैं ठीक वैसे ही देश के लोकतांत्रिक शरीर की रक्षा भी हमें प्रतिदिन करना होगी।