घर से निकाले या निकल पड़े लोगों ने ही लड़ी अन्याय से निर्णायक लड़ाई
राम अन्यायपूर्वक घर से निकाले गये तो रावण के अन्याय का अंत हुआ। कृष्ण घर से निकल पड़े तो कंस के अत्याचारों का अंत हुआ।
Ashok Chaturvedi
घर से निकाले जाने वाले या घर से निकल पड़े अकेले लोगों ने ही हमेशा अज्ञान और अन्याय का सामना करने के रास्ते बनाये हैं। राम अन्यायपूर्वक घर से निकाले गये तो रावण के अन्याय का अंत हुआ। कृष्ण घर से निकल पड़े तो कंस के अत्याचारों का अंत हुआ। बुद्ध जीवन की नश्वरता को पहचानकर घर छोड़कर निकल पड़े तो संसार को अपने दुखों को परखने की दृष्टि मिली। सम्यक मार्ग मिला।
तुलसीदास तो जन्म लेते ही घर से बाहर फेंक दिए गये और उन्होंने अपनी कविता से लोगों को वह विवेक दिया जिससे वे सबके हृदय में बसे ईश्वर रूपी प्रेम की गहराई की थाह लेकर एक-दूसरे से बैर करना छोड़ सकें।
गांधी घर से निकल पड़े तो उन्हें और उनका सामान चलती रेलगाड़ी से अहंकारी शासकों ने प्लेटफार्म पर फेंक दिया। इसी प्लेटफार्म से सदियों की गुलामी का अंत करने के लिए सविनय अवज्ञा से भरे अहिंसक सत्याग्रह का मार्ग निकला।
पूरे देश को ‘करो या मरो’ की पुकार ने वह शक्ति दी जिसने भारत से लुटेरी सत्ता को निकाल बाहर किया। यह शक्ति सबकी निर्भयता से बड़ी होती गयी और लोगों ने बिना डरे अन्याय का सामना करने की ठान ली।
इतिहास गवाह है कि जो लोग अन्यायपूर्वक घर से निकाले जाते हैं और जो लोकहित के संकल्प से भरकर लोगों को सच बताने घर से निकल पड़ते हैं, उनके साथ बिना डरे लाखों लोग चलने में संकोच नहीं करते। आज तक कोई भी अराजक ताक़त घर से निकल पड़े लोगों का दमन नहीं कर सकी।