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राहुल बजाज की रगों में है गांधीवाद का नमक, बापू के ‘पांचवे पुत्र’ कहलाते थे दादा जमनालाल

प्रसिद्ध उद्योगपति राहुल बजाज के निधन पर वरिष्ठ पत्रकार डॉ राकेश पाठक की श्रद्धांजलि।

प्रसिद्ध उद्योगपति राहुल बजाज एक सार्थक जीवन जीने के बाद विदा हो गए। इस मौके पर राहुल बजाज के अतीत को जान लेना समीचीन होगा। बजाज समूह के सिरमौर रहे राहुल बजाज की रगों में गाँधीवाद का नमक बहता है। उनके दादा जमनालाल बजाज महात्मा गांधी के न केवल अनन्य सहयोगी थे बल्कि उन्हें गांधी का ‘पांचवा पुत्र’ भी कहा जाता है।

जमनालाल ने दांडी यात्रा के बाद गांधी जी द्वारा नीलाम नमक खरीदा था। जमनालाल राजस्थान के सीकर के एक गांव में किसान परिवार में जन्मे थे। बाद में वर्धा के एक धनी सेठ बच्छराज ने उन्हें गोद ले लिया था। जमनालाल ने 1920 में बजाज समूह की स्थापना की लेकिन उनका मन हमेशा आज़ादी के आंदोलन की तरफ़ आकर्षित रहा।

महात्मा गांधी के साथ जमनालाल बजाज की तस्वीर

गांधी जी के दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद वे उनके संपर्क में आये तो पीछे मुड़ कर नहीं देखा। गांधी जी के साबरमती आश्रम में जमनालाल ने उनकी निकटता प्राप्त की। नागपुर में एक अजीबोगरीब वाकया हुआ। वहां भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सम्मेलन के मौके पर जमनालाल बजाज ने बापू के सामने प्रस्ताव रख दिया कि मेरी इच्छा आपका पांचवा पुत्र बनने की है इसलिये आपको पिता के रूप में गोद लेना चाहता हूं।

बापू बड़ी मुश्किल से इसके लिये तैयार हुये। सन 1922 में गांधी जी ने साबरमती जेल से चिट्ठी लिख कर जमनालाल से कहा- तुम मेरे पांचवे पुत्र बन गए हो किन्तु मैं योग्य पिता बनने का प्रयत्न कर रहा हूँ। ईश्वर मेरी सहायता करे और मैं इसी जन्म में इस योग्य बन सकूं। फिर जीवन भर जमनालाल ने पुत्र धर्म निभाया। बाद में गांधी जी के लगभग हर आंदोलन में जमनालाल बजाज साथ रहे।

डॉ राकेश पाठक

अप्रैल 1930 के नमक सत्याग्रह के बाद गांधी जी को सजा हुई थी।तब गांधी ने जेल जाने से पहले साबरमती सर्किट हाउस पर दांडी के एक चुटकी नमक की नीलामी की जिसे जमनालाल बजाज ने खरीदा था। ये नमक उन्होंने जीवन भर सम्हाल कर रखा। प्रथम विश्व युद्ध में मदद करने के लिये जमनालाल को अंग्रेजों ने ‘राय बहादुर’ का ख़िताब दिया था लेकिन असहयोग आंदोलन शुरू होने पर उन्होंने ये ख़िताब लौटा दिया।

उन्होंने गांधी जी की प्रेरणा से अपनी रिवॉल्वर और बंदूक भी वापस करके लायसेंस भी सरेंडर कर दिया था। गांधी जी जब दांडी यात्रा पर निकले थे तब उन्होंने संकल्प लिया था कि स्वराज प्राप्त किये बिना आश्रम नहीं लौटेंगे। दांडी में गिरफ्तार होने पर उन्हें यरवदा जेल में रखा गया। वर्ष 1933 में रिहा हुए तब हरिजन यात्रा पर निकल पड़े। संकल्प के मुताबिक बिना स्वराज्य मिले साबरमती लौट नहीं सकते थे तब जमनालाल बजाज के आग्रह पर गांधी जी वर्धा पहुंचे।

जमनालाल ने ही वर्धा से 8 किलोमीटर दूर सेगांव (अब सेवाग्राम) में उनके लिये आश्रम तैयार करवाया। गांधी अपने जीवन के संध्याकाल में इसी सेवाग्राम में करीब 12 वर्ष रहे। जमनालाल बजाज ने छुआछूत निवारण के लिये भी बहुत महत्वपूर्ण काम किये। उन्होंने वर्धा के लक्ष्मीनारायण मंदिर को दलितों के लिये खोलने का महती कार्य किया।

अपना घर,आंगन,कुएं,खेत,
बगीचे सब दलितों के लिये खोल दिये थे।

उल्लेखनीय यह भी है कि जमनालाल बजाज ने अपनी तमाम चल अचल संपत्ति,कारोबार का संचालन गांधी के ट्रस्टीशिप के सिद्धांत के तहत किया। याद रहे कि इन्हीं जमनालाल बजाज के पौत्र राहुल बजाज ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौज़ूदगी में केंद्र सरकार की रीति नीति की खुली आलोचना की थी। यह भी याद कीजिये कि बजाज ऑटो ने घोषणा की थी कि वह ऐसे न्यूज़ चैनलों को विज्ञापन नहीं देगा जो समाज में नफ़रत फैलाने का काम कर रहे हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व गाँधीवादी कार्यकर्ता हैं)

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