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नेतृत्व को ‘ब्लैकमेल’ करने की निर्लज्ज कोशिश का शिकार कांग्रेस

अशोक गहलोत ने अध्यक्ष बनने के लिए जो शर्तें कांग्रेस नेतृत्व के सामने रखीं है वे साफ़ तौर पर ' ब्लैकमेलिंग ' की श्रेणी में आती हैं।

कांग्रेस में एक तरफ शुद्धिकरण अभियान चल रहा है तो दूसरी तरफ मौजूदा नेतृत्व को ‘ ब्लैकमेल ‘ करने की निर्लज्ज कोशिश भी। कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव की प्रक्रिया घोषित होने के बाद जिस तरह से राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पैंतरा बदला है ,उसे देखकर सभी भौंचक हैं। पक्ष हो या विपक्ष सभी की निगाहें कांग्रेस की अंतरकलह पर टिकी हुई हैं।

कहने को कांग्रेस एक मृतप्राय राजनीतिक दल है लेकिन उसकी अनदेखी कोई नहीं कर पा रहा। वजह कांग्रेस एक ऐसा हाथी है जो मर भी जाये तो सवा लाख का रहेगा। कांग्रेस सत्तारूढ़ दल के लिए भी खतरा है और विपक्षी एकता के लिए भी जरूरी धुरी। वजह साफ़ है कि देश में यदि विचारधाराओं के आधार पर देखा जाये तो कांग्रेस और भाजपा के अलावा कोई दूसरा राजनीतिक दल नहीं है जो समूचे देश की राजनीति के लिए आवश्यक और प्रासंगिक हो। क्षेत्रीय दलों की अपनी राजनीतिक और भौगोलिक सीमाएं हैं। ये बात और है कि ‘ आप ‘ जैसे राजनीतिक दल कांग्रेस का विकल्प बनने का ख्वाब देख रहे हैं।

कांग्रेस में अध्यक्ष गांधी परिवार के बाहर का हो या नहीं, ये तय कांग्रेस के कार्यकर्ता तय नहीं कर पा रहे। चुनाव की प्रक्रिया से भी ये आसानी से तय होता नजर नहीं आ रहा, क्योंकि जो भी अध्यक्ष पद तक पहुंचेगा वो गांधी परिवार के आशीर्वाद या संरक्षण के बिना नहीं पहुँच पायेगा। अशोक गहलोत भी इसी बैशाखी के सहारे चुनाव मैदान में उतरने के लिए राजी हुए थे,लेकिन वे राजस्थान की सत्ता के मोह से अपने आपको मुक्त नहीं करा पाए। उन्होंने अध्यक्ष बनने के लिए जो शर्तें कांग्रेस नेतृत्व के सामने रखीं है वे साफ़ तौर पर ‘ ब्लैकमेलिंग ‘ की श्रेणी में आती हैं।

राकेश अचल

मौजूदा संक्रमणकाल में कांग्रेस की राजस्थान सरकार रहे या फिर जाये इससे कांग्रेस के भविष्य पर बहुत ज्यादा असर पड़ने वाला नहीं है,क्योंकि कांग्रेस पहले ही इतना गंवा चुकी है कि उसे इस सरकार के गिरने से बहुत ज्यादा धक्का लगने वाला नहीं है। इस संक्रमणकाल में कांग्रेस के युवा नेता सचिन पायलट ने जिस तरह से अपने धैर्य का परिचय दिया है उसकी सराहना की जाना चाहिए, अन्यथा उन्हें ज्योतिरादित्य सिंधिया से लेकर कैप्टन अमरेंद्र सिंह के रास्ते पर जाने से कोई रोक नहीं सकता था। उनके लिए भविष्य के रास्ते खुले हैं। वे जब चाहें दल-बदल सकते हैं।

कांग्रेस के अंदरूनी संकट के चलते गांधी परिवार के मुखिया राहुल गांधी निरपेक्ष भाव से ‘ भारत जोड़ो ‘ यात्रा पर हैं। उनकी इस यात्रा के दौरान ही गोवा कांग्रेस अस्तित्वहीन हो गयी,अब राजस्थान दांव पर लगी है। कल को छत्तीसगढ़ भी इसी बीमारी से ग्रस्त हो सकती है .लेकिन राहुल गांधी अपनी राह जा रहे हैं. जाहिर है कि वे भी एक राजनीतिक जुआ खेल रहे हैं। मुमकिन है कि वे अपने लिए एक ऐसी कांग्रेस तैयार कर रहे हों जिसमें न कोई जादूगर हो और न कोई बंटाधार। यानि जो शेष बच रही कांग्रेस हो वो उनकी अपनी हो।

देश की राजनीति में ये पहला मौक़ा है जब कांग्रेस के डगमग भविष्य से कांग्रेस के अलावा सत्तारूढ़ भाजपा और कांग्रेस का विकल्प बनने को आतुर ‘आप ‘ भी लगातार चिंतित भी है और आश्वस्त भी। भाजपा अभी तक ‘आप ‘ को अपने लिए चुनौती नहीं मानती। उसका मुकाबला आज भी कांग्रेस से ही है और कल भी कांग्रेस से ही होगा। इसीलिए भाजपा कांग्रेस के अंतर्कलह को लेकर सजग है। पिछले कुछ वर्षों में भाजपा ने कांग्रेस का तमाम सारा फैन-फसूकर अपनी पार्टी में शामिल किया है ताकि कांग्रेस कमजोर हो सके ,लेकिन कांग्रेस है कि समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रही।

कांग्रेस के अंतर्कलह से ‘आप ‘ जैसे व्यक्ति केंद्रित राजनीतिक दल की महत्वाकांक्षाओं को भी पंख लग रहे हैं। ‘आप ‘ को लगता है कि कांग्रेस जितना स्थान खाली करेगी उतना विस्तार आप का हो सकेगा ,लेकिन ये एक दिवा स्वप्न के अलावा कुछ नहीं है। कांग्रेस का विकल्प फिलहाल तो कांग्रेस ही रहने वाली है। . कांग्रेस का विकल्प न जेडीयू है और न राजद ,’आप ‘ तो बिलकुल नहीं है। देश में जब भी आम चुनाव होंगे कांग्रेस को निशाने पर रखकर ही होंगे।

राजनीतिक दल के रूप में कांग्रेस के लिए ये सबसे हास्यास्पद दौर है। कांग्रेस ने अपने जन्म से लेकर अब तक तमाम उंच-नीच देखी है। कांग्रेस हर बार विघटित होकर संगठित हुई है। ये पहला मौक़ा है जब कि कांग्रेस विघटित नहीं हो रही है। आज कांग्रेस के विगलन का समय है। कांग्रेस से अलग हुए नेताओं में से एक ने भी अलग से अपनी कांग्रेस नहीं बनाई, जिन्होंने अपने दल बनाये भी वे भी चुपचाप या तो भाजपा में विलीन हो गए या फिर अपने नाम का झंडा उठाकर भाजपा के नाम का जाप कर रहे हैं। अशोक गहलोत और सचिन पायलट में भी इतनी शक्ति नहीं है कि वे अपनी कांग्रेस बनाकर मौजूदा कांग्रेस का विकल्प बन सकें। उन्हें भी येन-केन या तो भाजपा में जाना पडेगा या फिर मौजूदा कांग्रेस के साथ रहना पडेगा।

मुमकिन है कि मेरा आकलन गलत प्रमाणित हो किन्तु मेरा अपना अनुमान मौजूदा परिस्थितयों पर केंद्रित है। कांग्रेस रहेगी या समाप्त हो जाएगी, इसका पता आपको अगले महीने लग ही जाएगा। अक्टूबर का महीना कांग्रेस के भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. क्योंकि इस महीने में कांग्रेस के प्रणेता महात्मा गांधी का जन्मदिन भी है और कांग्रेस के लिए महात्मा गाँधी की तरह जान देने वाली इंदिरा गाँधी का बलिदान दिवस भी। आप देखते जाइये कि कांग्रेसी अपने इन दो महान नेताओं के प्रति शृद्धा प्रकट कर कांग्रेस को मजबूत करते हैं या फिर मिटटी में मिलाते हैं ? यदि कांग्रेस मिटटी में मिलती है तो भी इतिहास बनेगी और यदि दोबारा उठकर खड़ी होती है तो भी इतिहास बनेगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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