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शिवराज को नरसिंहपुर की बेटी का पत्र: आपका उद्देश्य व्यवस्था दुरुस्त करना नहीं, पूँजीपतियों की जेब भरना

आपका उद्देश्य सरकारी व्यवस्था को दुरुस्त करना नहीं बल्कि पूँजीपतिओं की जेब भरना है आज हर गाँव से लाशें निकल रही हैं शमशान में चिताएँ जल रही हैं और आप दमोह के चुनावों में व्यस्त हैं।

भोपाल (जोशहोश डेस्क) प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं का बुरा हाल है। सरकार लगातार यह दावा कर रही है कि अस्पताल में बिस्तर उपलब्ध हैं, ऑक्सीजन की कमी नहीं है और अस्पतालों में सभी सुविधाएं हैं। लेकिन हकीकत इसके विपरीत है। प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था के लेकर सामाजिक कार्यकर्ता और सुकर्मा फॉउंडेशन की की अध्यक्ष माया विश्वकर्मा ने मुख्यमंत्री को खत लिखा है। जिसमें उन्होंने प्रदेश की खस्ताहाल व्यवस्था का जिक्र किया है।

मुख्यमंत्री के नाम माया विश्वकर्मा का पत्र

आदरणीय मुख्यमंत्री जी मेरा नाम माया विश्वकर्मा है और मैं मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर ज़िले की निवासी हूँ विगत बारह वर्षो से अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया में रहती हूँ मेरे गृह निवास के क्षेत्र की हालात लगातार देखती आयी हूँ फिर लगा कि यहाँ कुछ सामाजिक कार्य करना चाहिए शिक्षा, स्वस्थ और महिलाओं पर पिछले पाँच साल से सुकर्मा फॉउण्डेशन की अध्यक्ष और संस्थापक के रूप में ज़िले में कार्यरत हूँ।

पिछले साल जब से कोरोना आया है हम लगातार राहत का कार्य कर रहे है और अपने टेली मेडिसिन प्राथमिक स्वस्थ मेहरागाँव केंद्र के जरिये स्वस्थ सेवायें भी दे रहे है।

पिछले हफ्ते हमारी 12 वर्षीय बिटिया की रिपोर्ट पॉजिटिव आयी और उसे चिकनपॉक्स भी हो गया जिसके चलते हम उसे भोपाल के हमीदिया अस्पताल ले गए।  बिटिया कोरोना पॉजिटिव थी पर वो वार्ड में अकेले नहीं रह सकती थी इसलिए डॉक्टर ने मुझे भी साथ में सावधानी के साथ अनुमति दे दी। हम लोग हमीदिया के पाँच नंबर वार्ड में थे जिसमें करीब 40 और कोरोना मरीज थे जिसमें एक पंद्रह दिन का बच्चा अपनी माँ के साथ और एक छह साल का बच्चा अपने माता पिता के साथ था। इस पत्र के माध्यम से मैं अपना तीन दिन का अनुभव लिख रही हूँ जो मैंने अस्पताल में अपनी आँखों से देखा।

हम जब अस्पताल पहुंचे तो हमारे पास रेफेरल पर्ची थी जिस पर लिखा हुआ था कोरोना पॉजिटिव और चिकनपॉक्स बुखार (१०४  डिग्री) इस आधार पर हमारी बच्ची का दाखिला हुआ मगर दाखिला होने के बाद ना तो किसी डॉक्टर नर्स ने दोबारा तापमान नापा और ना ही कोरोना पॉजिटिव कन्फर्म करने के लिए दोबारा रैपिड टेस्ट किया सिर्फ ऑक्सीजन लेवल देखा जो नार्मल रेंज में आया। सीधा एडमिट कर चिकेनपॉक्स बुखार की दवा देना शुरू कर दिया। हमको बताया गया कि अब अगले दिन से ब्लड टेस्ट शुरू होंगे। अगले दिन करीब १२ बजे पीडिअट्रिशन आयीं और ब्लड सैंपल लिए जिसकी रिपोर्ट दूसरे दिन आयी जो काफी हद तक नार्मल थी इसके बाद X-Ray या CT-Scan होना था। दुर्भायपूर्ण X-Ray मशीन ख़राब हो गयी और CT-Scan में लम्बी कतार जिसके चलते इन दोनों में से कुछ ना हो सका। जिन मरीजों का CT-SCAN होना था उनको रात को 3 बजे उठा कर जाँच कराने ले गए थे और उनकी रिपोर्ट 24 घंटे बाद आयी। अगले दिन नर्स मल्टीविटामिन के साथ पैरासिटामाल देना शुरू किया तो मैंने सवाल किया कि पहले बच्ची का तापमान देख लीजिये फिर दीजिये पैरासिटामॉल नर्स कहने लगी की इस वार्ड में कोई थर्मामीटर नहीं है हम बुखार नहीं देख सकते इसलिए ऐसे ही पैरासिटामाल दे रहे है इतना सुनकर हमने बहस करना उचित नहीं समझा और बाजार से डिजिटल थर्मामीटर बुलवा लिया। लेकिन दो दिन तक हमको उचित इलाज़ नहीं मिल रहा था ऊपर से मैं एक स्वस्थ इंसान सिर्फ मास्क के भरोसे कोरोना मरीजों के बीच में थी। सभी मरीजों को बहुत करीब से देख रही थी जो कुछ लोग तो बीस पचीस दिन से यही भर्ती थे ज्यादातर मरीज बजुर्ग थे जिनमें अधिकांश को खाँसीं थी। पर उनके पास मास्क नहीं था। वार्ड में सफाई बढ़िया थी भोजन और बिस्लरी पानी की बोतल सबको मिल रही थी कमी थी तो बस उचित समय पर जाँच और मास्क की जब आप बीस रुपये की बोतल दे सकते है तो दो रुपये का मास्क भी दे सकते है कोरोना मरीज बाहर नहीं जा सकता सबके परिजन भी नहीं ला सकते। जो मरीज बिना मास्क के खाँसता था आसपास के मरीज उससे डर जाते थे जो बीमार ना हो वो भी बीमार हो जाए। 

इसी के साथ एक और बिकराल समस्या थी बाथरूम और शौचालय में पानी की एक बार शाम को सात आठ बजे पानी ख़त्म हुआ अगले दिन सुवह दस ग्यारह बजे आता था मरीज पूरे समय में बिसलरी की बोतल पर आश्रित रहते है पीने के अलावा शौचालय में भी इमर्जेंसी में बिसलरी के पानी का उपयोग होता है चूकि सभी कोरोना मरीज है कोई बाहर नहीं जा सकता और ना ही शिकायत कर सकता है इसलिए वो ज्यादातर स्टाफ या डॉक्टर को बोलते है मगर बात उन तक ही रह जाती थी आधे से बाथरूम के नल ख़राब दरवाजे ख़राब खिड़की टूटी हुई मच्छर भिनभिनाते हुए देख कर लग रहा था कि इस पुरानी बिल्डिंग की रिपेरिंग ही नहीं हुई। ऐसे में पानी नहीं रहेगा तो हाईजीन भी नहीं रहेगी और रोगी और रोगों से ग्रसित रहेगा।

इन सब हालात को देखते हुए मुझे लगा कि बच्ची की हालत इतनी नाजुक भी नहीं है और जाँच भी ठीक से समय पर नहीं हो रही है तो क्या फायदा ? बीमार नहीं है तो और बीमार हो जाएगी और मैं भी कोरोना के मरीजों के बीच संक्रमित हो जाउंगी। इसलिए हमने डॉक्टर से निवेदन किया की हमको डिस्चार्ज कर दें ताकि ये एक बेड किसी जरूरतमंद को मिल जाए। ये बात को डॉक्टर सुनाने को तैयार नहीं थे तो मुझे हमीदिया के सुपरिटेंडेंट डॉक्टर चौरसिया जी के पास जाना पड़ा तब जाकर हमको छुट्टी मिली और सुरक्षित घर आये।

ये मेरा तीन दिन का अनुभव आपके शहर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल का है जो शहर के मध्य में है और सर्व सुविधायुक्त है उसमें इस प्रकार की छोटी छोटी कमियाँ है तो आप माननीय अंदाज़ा लगाइये की छोटे कस्बों की हालत क्या होगी ? आपको खुद को कोरोना हो तो आप प्राइवेट “चिरायु अस्पताल” में अपना इलाज़ करा सकते है मगर आज के आम मरीज को ये सुविधा मुमकिन नहीं है हर किसी को चिरायु या अन्य अस्पताल में बेड नहीं मिल सकता है आपकी सरकार को मध्य प्रदेश में पंद्रह साल से अधिक समय हो गया है आप चाहते तो भोपाल ही क्या पूरे मध्य प्रदेश के सिविल अस्पताल को सर्व सुविधायुक्त बना सकते थे जिसमें कभी भी आक्सीजन या इंजेक्शन की कमी ना होती। लेकिन आपका उद्देश्य सरकारी व्यवस्था को दुरुस्त करना नहीं बल्कि पूँजीपतिओं की जेब भरना है आज हर गाँव से लाशें निकल रही है शमशान में चिताएँ जल रही है और आप दमोह के चुनावों में व्यस्त हैं। गाँवों में इस कदर डर व्याप्त है कि आदमी ना तो टीकाकारण (वैक्सीन) लेने जा रहा ना ही इलाज कराने। आपके पास एक साल का पूरा समय था कोरोना से लड़ने का मगर सत्ता मिलते ही आप फिर चुनावों में व्यस्त हो गए। मेरी आपसे हाथ जोड़ कर यही प्रार्थना है कि आप अपने लोगों को इस कोरोना काल से निकालिये। आप अभी प्रदेश के मुखिया है इसलिए अस्पतालों में दवाई और डॉक्टरों की उपलब्धता सुनिश्चित कीजिये तभी इससे मुक्ति मिल सकती है नहीं तो बहुत से परिवार और अनाथ हो जायेंगे। 

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