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हीरो मध्यप्रदेश के : प्रदीप, 1000 कोरोना मरीजों का कर चुके हैं अंतिम संस्कार

प्रदीप बनना तो चाहते थे एक पुलिस कांस्टेबल, लेकिन किस्मत का फेर ही कहिए कि मां की मृत्यु के साथ मानो सारे सपने दफ़न हो गए। जिम्मेदारियों ने दस्तक दी तो मजबूरी श्मशान ले आई। बीते 35 सालों से श्मशान ही उनका दूसरा घर बन गया है।

दीपक तिवारी

भोपाल .  वो अब तक सैकड़ों चिताओं को आग दे चुका है। जिंदगी उससे वो करवा रही है, जो वह कभी करना नहीं चाहता था। लेकिन अब इस काम के लिए ही उसने अपना जीवन समर्पित कर दिया है। कोरोना (Corona) महामारी, जिसने ऐसी दस्तक दी कि आम हों या खास सभी चारदीवारी में कैद से हो गए। सड़कें सूनी तो बाजारों की रौनक मानो रूठ गई। सोशल डिस्टेंसिंग ने ऐसी दूरी बनाई कि हर दो शख्स के बीच दो ग़ज़ ने ले ली। इन मुश्किल हालात में भी कुछ ऐसे लोग थे, जिन्होंने डर को परे रखते हुए फर्ज़ को अव्वल रखा। सरकार, अशासकीय संस्था या फिर आम लोग सभी ने इन कोरोना योद्धाओं को सलाम और सम्मानित किया। लेकिन इन योद्धाओं में एक शख्स ऐसा भी है जो चर्चाओं से परे गुमनामी में रहकर एक बड़े फर्ज़ को अंजाम दे रहा है। न तो उस इंसान का कही ज़िक्र आया और न ही उसके योगदान को किसी ने सराहा। जोशहोश की स्पेशल सीरीज मध्यप्रदेश के हीरोज में जानिए ऐसे ही योद्धा प्रदीप उर्फ डली की कहानी…

अलमस्त, मस्तमौला अंदाज वाले प्रदीप को उनके करीबी डली नाम से जानते है। प्रदीप की रोजी-रोटी जिस काम से चलती है उसे सभ्य समाज में अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता। दूरी सिर्फ इसलिए क्योंकि प्रदीप श्मशान गृह में केयर टेकर का काम करते हैं। भले ही काम थोड़ा अलग हो, लेकिन कोरोना काल में प्रदीप ने जो योगदान दिया वो उन्हें कोरोना योद्धा के फेहरिस्त में शुमार कर देता है। प्रदीप की माने तो बीते 6 माह में अकेले वह एक हज़ार से ज्यादा शवों का दाह संस्कार कर चुके हैं, जिनकी मौत कोरोना महामारी की वजह से हुई है।

प्रदीप भोपाल के भदभदा शमशान गृह काम करते हैं। कोरोना संक्रमण के खौफ़ से जब परिजन ही शव से दूरी बना लेते हैं, इस हालात में अकेले प्रदीप विधिवत दाह संस्कार की क्रिया निभाते हैं। न कोई खौफ़ और न ही किसी तरह की हिचक। बस अपने फर्ज़ को निभाना ही एक मात्र मकसद होता है। प्रदीप बनना तो चाहते थे एक पुलिस कांस्टेबल, लेकिन किस्मत का फेर ही कहिए कि मां की मृत्यु के साथ मानो सारे सपने दफ़न हो गए। जिम्मेदारियों ने दस्तक दी तो मजबूरी श्मशान ले आई। बीते 35 सालों से श्मशान ही उनका दूसरा घर बन गया है।

प्रदीप अकेले नहीं है। धर्मपत्नी के साथ दो बच्चे हैं। कभी मजबूरी थी, आज बच्चों के भविष्य के ख़ातिर इस काम को करते हैं। बीते कई महीनों से घर नहीं पहुंचे हैं। कभी-कभी परिजन ही आकर खैर ख़बर दे जाते हैं। भदभदा श्मशान गृह की समिति और प्रदीप के सहयोगी सभी उनके हौसले,मेहनत और ईमानदारी की तारीफ करते नहीं थकते। सचिव ममतेश शर्मा ने कहा कि विडम्बना ही है कि प्रदीप ने अपने फर्ज़ को ईमानदारी से अंजाम दिया, लेकिन इस ख़तरनाक काम के एवज में जो राशि सरकारी तौर पर दिए जाने की घोषणा की गई थी, उसका आज तक भुगतान नहीं हो सका है। लगभग 50 बंसत देख चुके प्रदीप ने तो इंसानियत के लिए जो किया वो मिसाल है, लेकिन अब हम सभी को भी ऐसे अनदेखे-अनजाने कोरोना योद्धा को सम्मान भी देना होगा ताकि इंसानियत का यह स्तम्भ कभी कमज़ोर न पड़े। 

जोशहोश टीम ने जब राजधानी भोपाल के भदभदा श्मशान घाट में कोरोना मरीजों के दाह संस्कार का आंकड़ा जुटाया तो वह प्रदीप की बातों को सही साबित कर रहे हैं। आंकड़े कुछ इस तरह हैं। अप्रैल महीने में 13, मई 40, जून 31, जुलाई 69, अगस्त 157, सितंबर 335, अक्टूबर 292 और नवंबर 3। अब अगर इनका टोटल किया जाए तो यह 940 पहुंचता है। इस तरह रोजोना लगभग 20 से 25  कोरोना मरीजों की मौत का अंदेशा है, जबकि इसमें कब्रिस्तान के आंकड़े और शहर में मौजूद अन्य श्मशान घाट के आंकड़े शामिल नहीं हैं। अगर वे भी जोड़ लिए जाए तो स्थिति भयानक नजर आएगी। 

भदभदा विश्राम घाट के सचिव मम्तेश शर्मा के मुताबिक मार्च 2020 में 133, जबकि 2019 में 125 अंतिम संस्कार रिकॉर्ड में दर्ज हैं। इनमें कोरोना एवं सामान्य मौत भी शामिल हैं। इसी तरह, अप्रैल 2020 में 127 – 2019 में 122, मई 2020 में 193, – 2019 में 112, जून 2020 में 172, – 2019 में 146, इसी तरह जुलाई 2020 में 216 -2019 में 131, अगस्त 2020 में 308 -2019 में 148 और सितंबर  2020 में 412 -2019 में 166 कुल मौतें दर्ज की गई हैं। जिसका कुल टोटल इस साल 1606 है। जबकि पिछले साल इन्हीं महीनों में कुल 950 अर्थियां यहां लाई गई थी।

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