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क्या ‘चुनावी झूठ’ है पेट्रोल-डीजल की कीमत पर सरकार का दावा?

पेट्रोल-डीजल की कीमतों से फिर सवालों के घेरे में मोदी सरकार। मार्च में सामने आएगा बड़े दावे का सच।

नई दिल्ली (जोशहोश डेस्क) मार्च का महीना केंद्र की मोदी सरकार के लिए बेहद अहम होने वाला है। एक ओर उत्तरप्रदेश समेत पांच राज्यों के चुनाव नतीजे 10 मार्च को घोषित होंगे जो सरकार की दिशा-दशा तय करेंगे। दूसरी ओर मोदी सरकार के एक बड़े दावे का सच भी देश की जनता के सामने आ जाएगा। हालांकि इसका असर भी आम जनता पर ही पड़ना है।

यहां मोदी सरकार के जिस दावे की बात की जा रही है वह पेट्रोल-डीजल की कीमतों से जुड़ा है। मोदी सरकार यह कहती आई है कि पेट्रोल-डीजल की कीमतों बाजार से तय हो रही हैं उसमें सरकार की भूमिका नहीं है। बीते मई-जून में जब पेट्रोल डीजल की कीमतें आसमान छू रही थीं तब भी वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि तेल की कीमतें पूरी तरह से बाजार पर निर्भर हो चुकी हैं और दाम तय करने में सरकार की कोई भूमिका नहीं है।

मोदी सरकार और वित्तमंत्री का यह दावा एक बार फिर सवालों के घेरे में है। सवाल इसलिए क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का दाम 90 डाॅलर प्रति बैरल तक पहुंच गया जो बीते 8 साल सालों में सर्वाधिक है। इसके बाद भी देश में 4 नवंबर यानी दिवाली के बाद से घरेलू ऑयल मार्केटिंग कंपनियों ने पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कोई बदलाव नहीं किया है जबकि दुनिया भर में पेट्रोल-डीजल के दामों में इजाफा देखा जा रहा है।

कच्चे तेल की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि के बाद भी देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतें में वृद्धि न होने को पांच राज्यों में होने वाले चुनाव से जोड़ा जा रहा है। विषय विशेषज्ञों का कहना है कि मार्च में अंतिम चरण के मतदान के साथ ही पेट्रोल-डीजल की कीमतों में इजाफा हो जाएगा। अगर ऐसा होता है तो पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर नियंत्रण न होने के सरकार के दावे की भी कलई खुल जाएगी।

यह पहली बार भी नहीं जब देश में चुनावी मौसम के दौरान पेट्रोल-डीजल की कीमतों में इजाफा न हुआ हो। इससे पहले मई 2021 में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल, पुडुचेरी में विधानसभा चुनाव के दौरान भी ऐसा हो चुका है। इन राज्यों में 6 अप्रैल से 29 अप्रैल तक मतदान चला था और 23 फरवरी के बाद से ही तेल कंपनियों द्वारा पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कोई इज़ाफ़ा नहीं किया गया था। हालांकि 2 मई को चुनावी नतीजे आने के बाद 4 मई को ईंधन कीमतों में इजाफा हो गया था। मई में फिर तेल कंपनियों ने 16 बार तेल की कीमतों में इजाफा किया था।

विशेषज्ञों के मुताबिक यूएई के तेल ठिकानों पर हैती विद्रोहियों के हमले और रूस-यूक्रेन विवाद के चलते कच्चा तेल 100 डॉलर प्रति बैरल के पार जा सकता है। इधर पांच राज्यों में अंतिम चरण का मतदान 7 मार्च को होना है और चुनावी नतीजे 10 मार्च को आना है। माना जा रहा है कि 7 मार्च के बाद से तेल कंपनियां कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी का हवाला देकर तेल के दाम बढ़ा देंगी। ऐसे में चुनाव परिणामों के बाद पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बड़े इज़ाफ़े की आशंका व्यक्त की जा रही है।

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