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समरसता की सियासत: क्या मंदिर-मूर्ति से दलित अपराधों पर पर्दा डाल रही सरकार?

दलित अत्याचारों में शीर्ष पर काबिज प्रदेश में समरसता यात्राओं को बताया जा रहा सियासी दांव

भोपाल (जोशहोश डेस्क) करीब 18 साल के कार्यकाल के बाद प्रदेश की शिवराज सरकार को सामजिक समरसता के लिए समर्पित संत शिरोमणि रविदास की याद आई है। प्रदेश सरकार मंगलवार को पांच स्थानों से समरसता यात्राएं निकाल रही है। संत रविदास के मंदिर निर्माण के लिए 12 अगस्त को होने वाले शिलान्यास से पहले इन यात्राओं को दलित अत्याचारों में शीर्ष पर काबिज प्रदेश में विशुद्ध सियासी दांव बताया जा रहा है।

प्रदेश के पांच अलग अलग स्थानों से प्रारंभ होने वाली ये यात्राएं सागर जिले के नरयावली पहुंचेंगी जहां 12 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में संत रविदास महाराज का मंदिर के निर्माण का शिलान्यास किया जाएगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सिंगरौली जिले के बैढ़न से यात्रा इन पांच यात्राओं में से एक को आज को हरी झंडी दिखाकर रवाना करेंगे।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की आंकड़ों के मुताबिक़ मध्यप्रदेश देश में शीर्ष स्थानों में है। हाल ही में सीधी और छतरपुर की घटनाओं से प्रदेश को शर्मसार होना पड़ा है। यह कहा जा रहा है कि इसके बाद भी दलितों की स्थिति में सुधार के कदम उठाये जाने के बजाय सरकार समरसता यात्रा जैसे इवेंट से ध्यान भटकाने की राजनीति कर रही है।

मध्यप्रदेश में 2021 में अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध दर 63.6 प्रति लाख थी, जबकि राष्ट्रीय औसत 25.3 था। दलित अपराध के राष्ट्रीय औसत से दोगुनी दर वाले प्रदेश में इस तरह के आयोजन के प्रचार प्रसार पर ही बेतहाशा खर्च को भी चुनावी फायदे से जोड़ा जा रहा है। सवाल यह भी उठाया जा रहा है कि इस बेतहाशा खर्च से दलित समुदाय को क्या लाभ होगा और 18 सालों से संत रविदास के सामाजिक समरसता के संदेश को जन-जन तक पहुँचाने से सरकार को किसने रोका था?

प्रदेश में पांच स्थानों से शुरू हो रही ये यात्राएं 45 जिलों और 55 हज़ार गांव से होते हुए सागर पहुंचेंगी। इन पांचो यात्राओं के रुट में वे जिले शामिल है जो दलित आदिवासी बाहुल्य हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में इन यात्राओं का रवाना होना ही इस बात का परिचायक है कि यात्रा का सीधा असर चुनाव पर दिखाई दे सके।

प्रदेश में 35 सीटों पर इस समुदाय प्रभाव है। साल 2013 में भाजपा के पास इनमे से 28 सीटें थी। साल 2003 और 2013 तक अनुसूचित जाति वर्ग का साथ भाजपा को मिला था लेकिन 2018 में इस वर्ग का भाजपा से मोहभंग नज़र आया था और कांग्रेस ने 18 और भाजपा ने 17 सीटें जीती थी। सियासी पंडितों की मानें तो इस बार भी मनावर, सीधी और छतरपुर जैसे कांड सामने आने से भाजपा और प्रदेश सरकार के प्रति इस वर्ग की नाराजगी और भी बढ़ी है।

दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा है प्रदेश का दलित आदिवासी समुदाय 18 सालों से सरकार की दलित और आदिवासियों के प्रति व्यवहार को देख और समझ रहा है। अब चुनाव के समय में मंदिर या मूर्ति बनवाकर सरकार अपने किए पर पर्दा नहीं डाल सकती। कहा यह भी जा रहा है कि भाजपा को इस चुनाव में नाराज़गी का परिणाम भुगतना ही पड़ेगा।

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