सरकार के नए नियमों से बीड़ी उद्योगों में संकट, अब खुले में भी नहीं मिलेगी बीड़ी

सागर (जोशहोश डेस्क) कोरोना काल में कई संकटों से जूझ रहे बीड़ी जैसे कुटीर उद्योगों के सामने अब नया संकट पैदा हो गया है। केंद्र सरकार द्वारा लाए जा रहे कोटपा एक्ट के बाद बीड़ी उद्योग चिंता में है। हाल ही में कोटपा एक्ट में संशोधन किया गया है जो फरवरी में लागू होना है। कोटपा एक्ट में संशोधन के बाद जो नए नियम बनाए गए हैं वह बीड़ी उद्योगों के लिए अव्यवहारिक माने जा रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष अमित दुबे ने इस विषय को लेकर ट्वीट किया है।

मध्यप्रदेश बीड़ी उद्योग संघ की अध्यक्ष मीना पिंपलापुरे ने भी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिख कर नए नियमों को अव्यवहारिक बताया है और इस  नियमावली में बीड़ी उद्योगों से सुझाव लेकर संशोधन करने की मांग की है।

मध्यप्रदेश में बीड़ी के कारोबार का पुराना इतिहास है। बुंदेलखंड क्षेत्र में सागर और जबलपुर के बीच लगभग दो सौ वर्ष पूर्व बीड़ी उद्योग शुरू हुआ था। तेंदूपत्ता की भरपूर उपलब्धता के कारण मध्यप्रदेश में यह उद्योग 80 के दशक में अपने चरम पर था। उसके बाद सरकारों के अधिक हस्ताक्षेप की वजह से इन उद्योगों का पलायन पश्चिम बंगाल और दक्षिण एवं पूर्व भारत के राज्यों की ओर होता चला गया।

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कोटपा की नई नियमावली से होगा नुकसान

कोटपा अर्थात् सिगरेट एंड अदर टबैको प्रॉडक्टस एक्ट कानून 2003 में हाल ही में संशोधन कर 31 दिसंबर को नई नियमावली जारी की थी। यह संशोधन अगले महीने फरवरी में लागू हो जाएगा। सरकार ने इस संशोधन पर चर्चा करने के लिए वक्त भी कम दिया है। नए नियमों के अनुसार बीड़ी निर्माता बीड़ी के बंडल पर अपने ब्रांड या लेवल का चित्र नहीं दर्शा सकते हैं। दुकानदार अपनी दुकान पर बीड़ी बण्डलों को प्रदर्शित नहीं कर सकते हैं। ऐसे में ग्राहक को पता नहीं लगेगा कि कौनसा दुकानदार बीड़ी बेचता है।

खुली बीड़ी बेचने पर भी रोक

सरकार ने नए संशोधन में खुली बीड़ी के विक्रय पर भी रोक लगाई है। इसके साथ ही हर बंडल पर 25 बीड़ी ही होनी चाहिए। हर बंडल पर एमआरपी और निर्माण की तारीख छपी होना अनिवार्य है। बीड़ी की पैकिंग की प्रक्रिया को रिलाई कहते हैं जो हाथों से की जाती है न की मशीन से। इस वजह से यह सब नियम रिलाई की प्रक्रिया में शामिल करना मुश्किल है।

इसके साथ ही अब से बीड़ी निर्माता, ठेकेदार, व्यापारी, डिस्ट्रिब्युटर, पनवाड़ी एवं दुकानदार को कोटपा के तहत पंजीयन करवाना अनिवार्य होगा। ऐसा न करने पर लाखों रुपए तक का जुर्माना और जेल हो सकती है। ऐसे में व्यापारी और ठेकेदारों के लिए पंजीयन कराना तो आसान होगा लेकिन पनवाड़ी एवं दुकानदार जो की गली-मोहल्लों में दुकान खोल के बैठे रहते हैं। उन लोगों को पंजीयन कराने में मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा और इससे बीड़ी उद्योग को नुकसान होगा।

अब कोटपा के कोई भी नियम को तोड़ना दण्डनीय अपराध माना गया है और यदि कोई नियम तोड़ता है तो उसे जुर्माने के साथ-साथ जेल भी हो सकती है।

बीड़ी उद्योग लाखों लोगों को देता है रोजगार

बीड़ी मूलत: ग्रामीण-कुटीर उद्योग है जो देश भर में 2.6 करोड़ तम्बाकू किसानों, 85 लाख बीड़ी श्रमिकों, 40 लाख से अधिक आदिवासी-तेंदु-पत्ता-संग्राहक परिवारों और 75 लाख पनवाड़ियों के रोजगार का माध्यम है। इस उद्योग में न ही बिजली का उपयोग होता है न ही पानी की आवश्यकता पड़ती है।

नए नियमों के खिलाफ उठ रही आवाज

कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष अमित दुबे ने कोटपा के नए संशोधन पर कहा कि – सागर सहित बुंदेलखंड का मुख्य व्यवसाय बीड़ी उद्योग सरकार का गलत नीतियों का शिकार बनने की कगार पर हैं।

वहीं बीड़ी कामगार यूनियन से जुड़े कामरेड अजित जैन कोटपा में होने जा रहे संशोधन को अव्यवहारिक, अनुचित और कुटीर उद्योग को करने वाला बताया है। उन्होनें कहा कि देश के 15 करोड़ लोग बीड़ी उद्योग से जुड़े हुए हैं। यह कदम कुटीर उद्योग को बंद करके मशीनीकृत उद्योग को बढ़ावा देने वाला है।

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