प्रदेश में विश्वास जरूरी, भाषणबाजी विज्ञापन-मीडिया इवेंट्स से नहीं आता निवेश

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने मीडिया से चर्चा में उठाया बड़ा सवाल

भोपाल (जोशहोश डेस्क) इंदौर में आयोजित प्रवासी भारतीय सम्मलेन और कल से शुरू होने जा रही ग्लोबल इन्वेस्टर समिट को लेकर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ ने बड़ी बात कही है। कमलनाथ ने कहा है कि प्रदेश में निवेश तब आता है जब निवेशकों को हमारे प्रदेश में विश्वास हो, केवल भाषण बाजी करने से और विज्ञापन व मीडिया इवेंट्स से निवेश नहीं आता।

मंगलवार को मीडिया से चर्चा में कमलनाथ ने कहा कि मध्यप्रदेश में आए तमाम इन्वेस्टर्स का हम स्वागत करते हैं। मध्यप्रदेश में विश्वास की एक नई परंपरा बने हम इस बात का स्वागत करते हैं, परंतु प्रदेश में निवेश तब आता है जब निवेशकों को हमारे प्रदेश में विश्वास हो, केवल भाषण बाजी करने से और विज्ञापन व मीडिया इवेंट्स से निवेश नहीं आता। विज्ञापन तो विगत 18 वर्षों से चल रहे हैं विगत 18 वर्षों में कई इन्वेस्टर्स समिट हुए 6500 प्रस्ताव आए। हम पूछना चाहते हैं कि अब तक कितने प्रस्ताव धरातल पर उतरे?

कमलनाथ ने आगे कहा कि बड़े ही दुख की बात है कि अप्रवासी भारतीय सम्मेलन में पधारे तमाम NRI बंधुओं को असुविधा का सामना करना पड़ा है। यह मध्यप्रदेश की परंपरा नहीं है। दूसरे देशों से पधारे प्रतिनिधि अव्यवस्था और अपमान की जिस तरह शिकायत कर रहे हैं, उससे देश और प्रदेश की प्रतिष्ठा धूमिल हो रही है।

राहुल गांधी से जुड़े सवाल के जवाब में कमलनाथ ने कहा कि उन्होंने आरएसएस की तुलना कौरवों से नहीं की। उन्होंने धार्मिक और अधार्मिक होने के अंतर को समझाया है। कमलनाथ ने कहा कि हम जब भी किसी धार्मिक आयोजन में जाते हैं भाजपा और आरएसएस के पेट में दर्द शुरू हो जाता है। क्या धर्म की कोई एजेंसी डिस्ट्रीब्यूटरशिप भाजपा के पास है?

प्रदेश की सियासत में चर्चित सीडी को लेकर पूछे गए सवाल पर कमलनाथ ने कहा कि मैंने आप सबसे पहले भी कहा था कि पुलिस के कुछ अधिकारी कुछ वीडियो मुझे लैपटॉप पर दिखाने लाये अवश्य थे परंतु मैंने तत्काल इस विषय में गंभीरतापूर्वक जांच के आदेश दे दिए थे। मैं नहीं चाहता था मध्यप्रदेश की बदनामी हो।

भोपाल में करणी सेना के प्रदर्शन को लेकर कमलनाथ ने कहा कि किसी भी बात का हल चर्चा के माध्यम से किया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री जी को और सरकार को आज समझना चाहिए कि यह आक्रोश किस बात पर है और उनकी बात सुनकर रास्ता निकालने का प्रयास करना चाहिए। मैंने अपनी सरकार में यह परंपरा बनाई थी कि सभी संगठनों की समस्या को सुना जाए और उनसे बातचीत की जाए।

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