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शहादत के स्मृति प्रसंग में ‘सावरकर का माफीनामा’ भी याद दिला गए मनोज मुंतशिर?

मनोज मुंतशिर ने सुनाया भगत सिंह से जुड़ा एक प्रसंग, सावरकर के माफीनामे को लेकर होने लगी चर्चा

भोपाल (जोशहोश डेस्क) शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के शहीद दिवस पर स्मृति प्रसंग का आयोजन हुआ। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा आयोजित इस स्मृति दिवस के कार्यक्रम में गीतकार मनोज मुंतशिर शामिल हुए। इस मौके पर मनोज मुंतशिर ने भगत सिंह से जुड़ा एकप्रसंग सुनाया जिसके बाद कार्यक्रम में उपस्थित कुछ श्रोताओं में विनायक दामोदर सावरकर के माफीनामे को लेकर चर्चा होने लगी।

दरअसल मनोज ने कहा कि मुझे 1931 का वो दिन याद आ रहा है। जब लाहौर सेंट्रल जेल में भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव तीनों कैद हैं। तारीख नहीं आई है, लेकिन फांसी का हुकुम सुनाया जा चुका है। दो अंग्रेज ऑफिसर राबर्ट और बारकर भगत सिंह से मिलने आते हैं। भगत सिंह से कहते हैं कि बरतानिया सरकार ने सोचा है कि तुम्हारी फांसी माफ कर दी जाए। तुम्हें जीवनदान दे दिया जाए। बस तुम्हें माफीनामा लिखना है।

मनोज मुंतशिर ने आगे बताया कि माफीनामे में तुम्हें यह कहना है कि तुम्हें अपने किए पर शर्मिदगी है। आगे से तुम ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कोई मुहिम नहीं छेड़ोगे, कोई बगावत नहीं करोगे। किसी क्रांति का हिस्सा नहीं बनोगे। लिख दो भगत जान बच जाएगी। झुक जाओ भगत जिंदगी दोबारा नहीं मिलती है, तुम तो भरी जवानी में हो।

इस पर भगत ने कुछ कहा नहीं… बस दोनों अंग्रेज अफसर की ओर देखकर मुस्कुराते रहे। मानों भगतसिंह की मुस्कुराहट कह रही थी, तेरी हैवानियत की है तो बस औकात इतनी है, बहाकर बेगुनाहों का लहू इतराना आता है। गुरुरे बेखबर ये बात तुझको कौन समझाए, वो सर झुक ही नहीं सकता जिसे कट जाना आता है…।

मनोज के इस प्रसंग को सुन कार्यक्रम में उपस्थित कुछ श्रोता इस बात पर चर्चा करते दिखे कि एक ओर भगत सिंह ने माफीनामा लिखने के बजाय फांसी के फंदे को चुना वहीं विनायक दामोदर सावरकर ने माफीनामा लिख खुद को अंग्रेजों की कैद से खुद को आज़ाद करा लिया। कुल मिलाकर मनोज मुंतशिर द्वारा इस प्रसंग को सुनाये जाने के बाद आज़ादी के संघर्ष और माफीनामे को लेकर विमर्श का दौर कार्यक्रम में देखा गया।

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