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तानाशाही बनाम लोकशाही की लड़ाई, राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो’ पदयात्रा

आज स्वराज्य, स्वतंत्रता, लोकशाही और धर्मनिरपेक्षता खतरे में, यह लड़ाई भाजपा बनाम कांग्रेस नहीं बल्कि तानाशाही बनाम लोकशाही

विनोबाजी के भूदान पदयात्रा का पड़ाव अप्रैल 1957 को तीन दिन कन्याकुमारी में था। 16 अप्रैल 1957 के सुबह विनोबाजी कन्याकुमारी के सागर तट पर गये। तट के पत्थर पर बैठकर, सागर की लहरों का स्पर्श, उगते सूर्यनारायण का दर्शन और कन्याकुमारी का स्मरण करते उन्होंने प्रतिज्ञा ली –

‘ जब तक स्वराज्य का रूपांतर ग्रामस्वराज्य में नहीं होता है, तब तक हमारा यह देह निरंतर इस काम में लगा रहेगा।’

65 साल के बाद आज उसी कन्याकुमारी से राहुलजी गांधी के नेतृत्व में काॅंग्रेस, 7 सितंबर 2022 को पदयात्रा की शुरुआत करने जा रही है। यह पदयात्रा कन्याकुमारी से कश्मीर तक, करीबन 3500 किलोमीटर और 150 दिन की है।

विनोबाजी, अपने प्रतिज्ञा में स्वराज्य का रूपांतर ग्रामस्वराज्य में करने निकले थे। लेकिन आज तो स्वराज्य, स्वतंत्रता, लोकशाही और धर्मनिरपेक्षता ही खतरे में है! और सत्ताधारी तानाशाही के तरफ कदम बढ़ा रहे है। इस स्थिति के विरोध में एक अकेले राहुल जी अर्थात् काॅंग्रेस लड़ाई लड़ रहे हैं। यह लड़ाई भाजपा बनाम कांग्रेस ऐसी नहीं है। यह लड़ाई तानाशाही बनाम लोकशाही है!

सर्वोदय और कांग्रेस

गांधीजी के शहादत के तुरंत बाद, 13 से 15 मार्च 1948 को सेवाग्राम, वर्धा में आयोजित सम्मेलन में, विनोबाजी के मार्गदर्शन में सर्वोदय समाज तथा सर्व सेवा संघ की स्थापना हुई।

इस सम्मेलन में विनोबाजी के साथ राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, मौलाना आजाद, शंकरराव देव आदि काॅग्रेस के नेता उपस्थित थे। कांग्रेस के महासचिव शंकरावजी देव ने ही सर्व सेवा संघ के मंत्री पद का भी कार्यभार संभाला। इस तरह से सर्वोदय और कांग्रेस एक दूसरे से जुड़ गए।

गांधीजी के दो वारिस, विनोबा और पं.नेहरू इन दोनों ने, स्वतंंत्रता मिलते ही नये सिरे से, और एक दुसरे के सहयोग से राष्ट्र-निर्माण का काम शुरू किया। विनोबाजी ने शासनमुक्त, शोषणविहीन, वर्गविहीन, अहिंसक समाजरचना के लिए, एकादशव्रतों की आधारशिला पर सर्वोदय आंदोलन को आगे बढ़ाया एवं पंडितजी ने बहुपक्षीय लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद, संमिश्र अर्थव्यवस्था एवं अलिप्ततावादी अंतरराष्ट्रीय नीति की बुनियाद पर नए रूप से कांग्रेस का कार्य चलाया।

विनोबा प्रणित सर्वोदय का विचार और पंडित नेहरू प्रणित कांग्रेस का विचार परस्परपूरक हैं। तथा म.गांधी के दो वारिस विनोबा और नेहरुजीने खड़े किए, सर्वोदय और कांग्रेस सहोदर है! यह बात हमें समझ लेनी चाहिए।

काॅंग्रेस : विनोबाजी के शब्दों में!

“आज के पहले कांग्रेस की जो हालत थी, उससे आज की हालत भिन्न है। चूंकि वह राज्यकर्ता जमात है, इसलिए उसकी जिम्मेदारी और भी बढ़ गई है। आजादी के पहले कांग्रेस को जेल में, वनवास में जाना पड़ता था इसलिए उस में दाखिल होने वालों की सहज शुद्धि हो जाती थी। आज कांग्रेस वनवासी नहीं है, बल्की सिंहासनारूढ है। इसलिए अवांछनीय तत्वों के भी उसमें दाखिल होने का खतरा मौजूद है। ऐसी हालत में कोई विशेष त्याग का कार्यक्रम, वनवास का नहीं हो तो, जनवास का उसके सामने होना चाहिए। किसी संस्था में अगर नैतिक शक्ति की हम अपेक्षा रखते हैं तो उस संस्था के पास त्याग का कार्यक्रम चाहिए। काॅंग्रेस की पुण्याई को अगर कायम रखना है तो सर्वोदय के काम में लग जाना चाहिए।

काॅंग्रेस कार्यकर्ता और रचनात्मक कार्यकर्ता एक साथ मिलकर काम कर सके, यह तभी संभव है, जब सारे काॅंग्रेस वाले रचनात्मक काम करने वाले बन जाए। जब यह होगा तो रचनात्मक काम करने वाले भी काॅंग्रेस वाले बन जाएंगे तथा राजनैतिक कहलाएंगे। और रचनात्मक काम करने के कारण राजनैतिक कार्यकर्ता रचनात्मक कार्यकर्ता कहलाएंगे।

वास्तव में राजनैतिक दृष्टि और रचनात्मक कार्य, दोनों में स्वराज्य के बाद कोई फर्क नहीं हो सकता। स्वराज्य में और करना क्या पड़ता है? सारे रचनात्मक कार्य ही तो करने पड़ते हैं। इसलिए दोनों में कोई फर्क नहीं हो सकता।”

विनोबाजीने काॅंग्रेस के शुद्धि के लिए जो त्याग, सेवा तथा जनवास के कार्यक्रम की अपेक्षा की थी, वह ‘जनवास’ का कार्यक्रम दे कर आज राहुलजी, कन्याकुमारी से कश्मीर तक पदयात्रा में निकल रहे हैं। देश में स्वराज्य, स्वातंत्र्य, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता बरकरार रहा तो ही विनोबाजी का अहिंसक समाज रचना का सपना पूरा हो सकेगा।

आज राहुलजी ने पदयात्रा निकाल कर, तानाशाही बनाम लोकशाही ऐसी लड़ाई छेड़ दी है। इस लड़ाई में सर्वोदय के तथा काॅंग्रेस के सभी कार्यकर्त्ताओं को, लोकशाही के पक्ष में खड़े होकर, राहुलजी के पदयात्रा में शामिल होना चाहिए। या कम से कम उन्हें नैतिक समर्थन देना चाहिए।

यह वर्ष विनोबा प्रणित सर्वोदय का अमृत महोत्सवी वर्ष है। वैसे ही यह नेहरू प्रणित काॅंग्रेस का भी अमृत महोत्सवी वर्ष है। विनोबा तथा पंडित नेहरू अर्थात सर्वोदय और काॅंग्रेस के सहकार्य को भी 75 साल हो रहे हैं। इस बात का, सर्वोदय तथा काॅंग्रेस दोनों को स्मरण रहें, और एक दूसरे के सहयोग से राष्ट्र निर्माण का कार्य करें!!

(लेखक-विजय दीवान, विनोबा जन्मस्थान, महाराष्ट्र)

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