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छह साल-फिर वही सवाल, नोटबंदी मास्टरस्ट्रोक या महातबाही?

नोटबंदी के छह साल पूरे, परिणामों को लेकर पक्ष-विपक्ष में चल रहे तर्क-वितर्क

नई दिल्ली (जोशहोश डेस्क) केंद्र की मोदी सरकार द्वारा नोटबंदी के फैसले को आज छह साल पूरे हो रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 को रात आठ बजे राष्ट्र के नाम संदेश में नोटबंदी का ऐलान किया था। तब से ही नोटबंदी को लेकर इसके परिणामों को लेकर पक्ष-विपक्ष में तर्क-वितर्क चल रहे हैं। सोशल मीडिया पर आज फिर नोटबंदी को लेकर कई तरह के दावे किये जा रहे हैं।

हालंकि छह साल भी यह सवाल बना हुआ है कि नोटबंदी राष्ट्र के विकास का मास्टरस्ट्रोक थी या नोटबंदी देश के लिए महातबाही लेकर आई। एक ओर सरकार ने नोटबंदी को मूलतः आतंकवाद, कालेधन और भ्रष्टाचार पर बड़ा हमला बताया था वहीं विपक्ष लगातार यह कहता रहा कि नोटबंदी ने देश की अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान किया है।

छह साल पहले उठाये गए नोटबंदी के कदम पर सवाल उठाते हुए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने मंगलवार को एक रिपोर्ट हवाला देते हुए कहा कि नोटबंदी से देश को काले धन से मुक्त करने का वादा किया गया था लेकिन इसने व्यवसायों को नष्ट कर दिया और नौकरियों को बर्बाद कर दिया। प्रधानमंत्री ने अभी तक इस ‘बड़ी विफलता’ को स्वीकार नहीं किया है जिसके कारण अर्थव्यवस्था की खराब हालत हुई।

वहीं कांग्रेस ने भी दावा किया कि जिन दावों के साथ नोटबंदी की गई, उनमें से एक भी दावा पूरा नहीं हुआ। छोटी से छोटी चीज का क्रेडिट लेने को उतावले PM मोदी, नोटबंदी का नाम लेने से भी बचते हैं। आज न कोई उत्सव होता है, न कोई ‘धन्यवाद मोदी जी’ कहता है।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की इस ताज़ा रिपोर्ट से सामने आया है कि नोटबंदी के छह साल और डिजिटल लेनदेन बढ़ने के बावजूद लोग अब भी नकदी का उपयोग बड़े पैमाने पर कर रहे हैं। रिजर्व बैंक के 21 अक्तूबर 2022 तक के आंकड़ों के अनुसार बीते छह वर्षों में देश में जनता के पास मौजूद करेंसी नोटबंदी के समय से करीब 72 प्रतिशत बढ़कर करीब 30.88 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गई है। रिपोर्ट के अनुसार डिजिटल भुगतान का चलन बढ़ने से देश में करेंसी के प्रचलन में कमी नहीं आई है। नोटबंदी के बाद भारत में डिजिटल तरीके से लेनदेन में वृद्धि तो देखी गई है पर देश की जीडीपी के अनुपात में पारंपारिक रूप से यह फिर भी कम है।

इससे पहले नोटबंदी के करीब दो साल बाद आई आरबीआई की ही एक रिपोर्ट से भी बड़ा सवाल उठा था। नोटबंदी के 21 महीने बाद आरबीआई ने वापस आए पुराने 1000 और 500 रुपये के नोटों का आंकड़ा जारी किया था। रिपोर्ट के मुताबिक़ नोटबंदी के बाद केवल 10 लाख करोड़ रुपये के नोट ही वापस नहीं आए थे बाकी 99.3 फीसदी पुराने नोट वापस बैंकों में जमा हो गए थे। आरबीआई की इस रिपोर्ट से बड़ा सवाल उठा था कि क्या देश में मात्र 0.7 फीसदी ही काला धन था, जिसके लिए नोटबंदी जैसा बड़ा कदम उठाया गया था।

नोटबंदी के फैसले पर चल रहे तर्क वितर्क के बीच कुछ बातें बेहद साफ हैं पहली यह कि नोटबंदी के बाद विपक्ष के हमले सरकार पर लगातार जारी रहे वहीं सरकार साल दर साल नोटबंदी को लेकर बचाव की भूमिका में दिखी। यही कारण है कि नोटबंदी के 6 साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत भाजपा के बड़े नेताओं ने न तो इसकी सफलता को लेकर कोई ट्वीट किया और न ही इस पर कोई बात की।

गौरतलब है कि आठ नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 रुपये और 1,000 रुपये मूल्यवर्ग के नोटों को वापस लेने के निर्णय की घोषणा की थी। सरकार की ओर से उस समय कहा गया था कि यह कदम अर्थव्यवस्था में भ्रष्टाचार और काले धन के प्रचलन को कम करने के उद्देश्य से उठाया गया है। उस समय देश में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले पांच और हजार रुपये के नोटों पर बैन लगने के बाद शुरुआती दिन संकट से भरे थे। लोगों को बैंकों की लंबी-लंबी कतार में लगकर अपने नोट बदलने पड़े। कई जगहों पर शादी-विवाह के मौके पर लोगों को खासी परेशानी झेलनी पड़ी थी। नोटबंदी के फैसले के बाद उसमें जिस तरह लगातार संशोधन करना पड़े, उससे स्पष्ट है कि यह फैसला जल्दबाजी में लिया गया था और इसे लेकर जमीनी स्तर पर पर्याप्त होमवर्क नहीं किया था। विपक्ष ने करीब 100 मौतों के पीछे कारण भी नोटबंदी को ही बताया था।

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