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भोपालवासियों सावधान, आप सिंगाड़े नहीं ज़हर खा रहे हैं !

अगर आप सिंगाड़े खाने के शौकीन है तो सावधान हो जाइए। आपको शहर में जहरीले सिंगाड़े खाने को मिल रहे हैं। इनमें पौष्टिकता की जगह टॉक्सिक हैं। जी, हां हुजूर यह इल्जाम नहीं हैं। न ही कोई सनसनी है। न ही मेरा ऐसा कोई इरादा है। मैं चाहता भी नहीं हूं कि शहर में सनसनी फैले। लेकिन यह एक खौफजहा करने वाली हकीकत है। दरअसल हजारों लोगों को अपना निवाला बनाने वाले यूनियन कार्बाइड के तालाब में सिंगाड़े की खेती हो रही है।

यह जानकारी मुझे सोशल मीडिया से मिली है। अगर ऐसा हो रहा है तो यह खतरनाक और मानव स्वास्थ्य के लिए घातक है। बताया जा रहा है कि यहां से सिंगाड़ा खुले बाजार में पहुंच रहा हैं। यह अत्यंत चिंता जनक हैं। अब ये जान लीजिए आप। तालाब वहीं है, जहाँ यूका ने हज़ारो टन जहरीले रसायन को दफन किया था। यानी दबाया था। लोगों की मानें तो यूका का 200 मीट्रिक टन से ज्यादा जहरीला कचरा यहां सुपुर्देखाक किया गया था।

अलीम बज़्मी

थोड़ा फ्लैश बैक में चले तो आप सभी को याद होगा कि 2-3 दिसंबर 1984 की रात को यूका से मिथाइल आइसो साइनाइड (मिक) गैस का रिसाव हुआ था। इसके कारण हजारों लोगों की मौत हो गई थीं। ये सिलसिला अब भी जारी हैं। वजह भी साफ है, तरह-तरह की बीमारियां जैसे कैंसर, किडनी, श्वांस, आंखों की रोशनी जाना, मधुमेह, रक्तचाप, हृदय रोग, साथ ही जन्मजात समस्याएं, शारीरिक विकार पैदा होना। पर्यावरणीय प्रदूषण के कारण हवा का दूषित होना।

आला हजरत आप ये भी जान लीजिए कि यूका परिसर में खुले में और फैक्ट्री के अंदर कचरा होने के अलावा फैक्ट्री के पीछे की ओर स्थित तालाब में भी जहरीला कचरा है। तालाबों की तलहटी में लगाई गई प्लास्टिक पन्नियां फट चुकी हैं। कचरा बारिश के पानी के साथ जल स्रोतों में लगातार मिलता जा रहा है। इसके कारण 3 वर्ग किमी का भूजल भंडार प्रदूषित हुआ।

अलग-अलग मौकों पर गैस पीड़ित संगठनों ने दावा किया कि यूका कारखाने में 20 हजार मीट्रिक टन से ज्यादा जहरीला कचरा पड़ा है। यह कचरा जल स्त्रोतों में भी कई बारिशों के चलते घुल चुका है। भूजल में पहुंच चुका है। यूका कारखाना के गोदाम में रखे जहरीले कचरे में तमाम कीटनाशक रसायन और लैड, मर्करी,आर्सेनिकआदि मौजूद हैं। कचरे में शामिल कीटनाशकों और रसायनों का असर अभी कम नहीं हुआ है। खतरा बरकरार हैं।

बताते हैं कि पूर्व में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सीलॉजी रिसर्च ने रिपोर्ट दी थी कि कारखाने के आसपास की 42 बस्तियों का भू-जल जहरीले कचरे की वजह से बहुत ज्यादा प्रदूषित हो चुका है। वैसे यूका हादसे के बाद से अब तक इस जहरीले कचरे के निष्पादन के लिए कभी कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। बातें खूब हुई। बातों का सिलसिला अब भी जारी हैं। कुछ वर्ष पहले यहां एक बोर्ड भी लगाकर चेताया गया था कि तालाब में नहाना मना है। मवेशी इसका पानी न पी सके। इसके लिए रोक-टोक होती थी। इस पूरे मामले की हकीकत से आम-खास भी वाकिफ है। सरकारी अमला भी नासमझ नहीं है।

खैर, नतीजे में सुप्रीम कोर्ट के हुक्मनामे पर नगर निगम को वहां के सारे हैंड पंप और टयूबवेल बंद करना पड़े। बाद में निगम अमले ने वहां तक स्वच्छ पेयजल पहुंचाने का प्रबंध किया था। इसके चलते कई सरकारी और गैर सरकारी टीमों ने यूका क्षेत्र का मुआयना किया था। बीते दो-ढाई दशक में कई संस्थाएं यहां का भू-जल का परीक्षण कर चुकी हैं। इनमें पीएचई, नेशनल एनवायरमेंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट, ग्रीन पीस इंटरनेशनल, पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट देहरादून, मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, जियोग्राफिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सीलॉजी रिसर्च संस्थान शामिल है।गैस पीड़ित संगठनों ने सरकारी एवं गैर सरकारी अध्ययनों के हवाले से दावा किया है कि यूका के तालाब में मस्तिष्क, गुर्दे , जिगर को नुकसान पहुँचाने वाले और बच्चों के अंदर जन्मजात विकृति पैदा करने वाले रसायनों की पुष्टि हुई हैं।

इस सबके बावजूद आश्चर्य जनक यह है कि यहां सिंगाड़े की खेती होने की बात से जिला प्रशासन और नगर निगम भी अनभिज्ञ हैं। दोनों ने अब तक कुछ नहीं किया। दोनों से उम्मीद काफी है लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं करना इनके संवेदनशील चरित्र का उदाहरण है। सिंगाड़े की खेती भी यूनियन कार्बाइड के जहरीले तालाब में कुछ स्थानीय दबंगो द्वारा की जा रही है और जहरीले सिंगाड़ों को स्थानीय बाजार में बेचा जा रहा है। गैस पीड़ित संगठनों ने जिला प्रशासन और गैस राहत विभाग, नगर निगम से इस गैरकानूनी और जन स्वास्थ्य को गहन हानि पहुँचाने वाली इन गतिविधियों पर तुरंत रोक लगाने की मांग की है।इसका मैं समर्थन करता हूं।

इस लड़ाई को अंजाम ले जाने के लिए भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की रशीदा बी,भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा की शहजादी, भोपाल ग्रुप फॉर इंफोर्मेशन एंड एक्शन की बहन रचना ढिंगरा काफी मशक्कत कर रही है। उनके संघर्ष को सलाम। उनके परिश्रम का अभिनंदन। उनके प्रयास सराहनीय है। हां, ऐसे अवसरों पर भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक भाई अब्दुल जब्बार की कमी बहुत खलती है। वे गैस पीड़ितों के हक में काफी मुखर रहते। जन चेतना जगाने वाले वे एक जांबाज सिपाही थे।

अब ये मशाल बहन रचनाजी, रशीदाबी और चंपा देवी ने संभाल रखी हैं। इन तीनों की मशक्कत से अच्छे परिणाम की उम्मीद है। नागरिकों से अपील है कि ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर निष्क्रिय न रहे। सुप्रीम कोर्ट को पोस्ट कार्ड लिखकर अवगत कराएं। आपकी एक पहल भोपाल में बच्चों को जन्मजात होने वाली विकृति को रोकेगी। मानव स्वास्थ्य की रक्षा करेगी। पर्यावरणीय खतरे से घिरे भोपाल को बचाएगी। इस मौके पर मरहूम ताज भोपाली साहब का एक शेर।

मैं चाहता हूं निज़ाम-ए-कुहन बदल डालूं
मगर ये बात फक़त मेरे बस की बात नहीं
उठो बढ़ो मेरी दुनिया के आम इंसानों
ये सब की बात है दो-चार दस की बात नहीं।

(दैनिक भास्कर भोपाल में न्यूज एडिटर अलीम बज़्मी की फेसबुक पोस्ट)

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