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BJP के लिए परिणाम खतरे की घंटी, कौन लेगा हार की जिम्मेदारी?

वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल का नगरीय निकाय चुनाव के प्रथम चरण के नतीजों पर विश्लेषण

स्थानीय निकाय के चुनाव परिणाम सामने आ गए हैं। इन चुनावों में कांग्रेस ने पहली बार पांच दशक के बाद कुछ हासिल किया है। आप ने तो आते ही अपने खाते में एक निगम परिषद कर ली। जो गंवाया सो सत्तारूढ़ भाजपा ने गंवाया। भाजपा 11 में से 07 जीती जरूर है लेकिन उसकी ये जीत पराजय के दंश को कम नहीं कर सकती। स्थानीय निकाय चुनाव स्थानीय मुद्दों और चेहरों पर लड़े जाते हैं लेकिन ये पहला मौक़ा था जब सत्तारूढ़ दल ने ये चुनाव पूरी ठसक से लड़े। प्रत्याशियों के नाम तय करते समय खूब दांव-पेंच खेले और जब चुनाव परिणाम सामने आए तो सबके पेंच ढीले हो गए।

जीत का श्रेय भाजपा में जो चाहे सो ले ले लेकिन बात तो तब हो जब हार की जिम्मेदारी भी कोई ले। इन चुनावों में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर के साथ ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने एड़ी-छोटी का जोर लगाया था फिर भी सब मिल कर भी पार्टी की प्रतिष्ठा बचा नहीं पाए। भाजपा ने जिला पंचायतों के चुनावों में 84 फीसदी सीटें जीतने का दावा किया है लेकिन हकीकत इसके उल्ट है। पंचायत चुनाव चूंकि दलगत आधार पर नहीं होते इसलिए जो चाहे सो दावा किया जा सकता है,किन्तु स्थानीय निकाय चुनाव तो सब कुछ साफ़-साफ सन्देश दे रहे हैं।

भाजपा के लिए ये चुनाव खतरे की घंटी साबित हुए हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष यदि समय रहते न सुधरे तो 2023 के विधानसभा चुनाव में जनादेश भाजपा के लिए अप्रत्याशित भी हो सकता है। भाजपा ने बीते दो साल में चौथी बार सरकार तो बना ली लेकिन जनता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाए। भाजपा ने अंदरूनी कलह के साथ ही नौकरशाही पर अपनी ढीली पकड़ का भी खामियाजा भुगता है। साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश भी उसे महंगी पड़ी है।

राकेश अचल

भाजपा ने समाजवादी पार्टी को तो घोल कर पी लिया लेकिन ‘आप ‘ और ‘ औवेसी ‘ का प्रवेश नहीं रोक पायी। हालाँकि ये दोनों अघोषित रूप से कांग्रेस के खिलाफ और भाजपा के लिए काम करने वाले दल माने जाते हैं। हमारा मानना है कि अब समय बहुत कम बचा है। भाजपा चाहे तो अपने दुर्ग को ढ़हने से बचा सकती है अन्यथा एक महाराज के पार्टी में आने भर से जंग नहीं जीती जा सकती। अब बेहद जरूरी है कि भाजपा हकीकत को तस्लीम करे और सभी नये जन सेवकों को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर काम करने में मदद करे। स्थानीय निकायों के कामकाज में राजनीति बेहत खतरनाक और आग से खेलने जैसी होती है।

मध्यप्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव में जनादेश से बनी सरकार गंवाने के बाद घायल कांग्रेस ने कुछ ही समय में न सिर्फ अपने आपको सम्हाल लिया है बल्कि भाजपा के दुर्ग माने जाने वाले ग्वालियर,जबलपुर को भाजपा से छीन लिया। कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा में भी कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने ऐसी सेंध लगाईं कि भाजपा आसानी से भरभराकर गिर गई।
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प्रदेश में भाजपा विरोधी वातावरण है या नहीं इसका आकलन राजनीतिक दल करें लेकिन स्थानीय निकाय चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि कांग्रेस बिना ज्योतिरादित्य सिंधिया और बिना दिग्विजय सिंह के भी चल सकती है और भाजपा सिंधिया को अपने साथ खड़ा करके भी कोई तीर नहीं मार सकती। दरअसल कांग्रेस कार्यकर्ताओं के मन से अब भाजपा का भय समाप्त हो गया है। ग्वालियर में जहां भाजपा प्रत्याशी सुमन शर्मा के लिए केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर,ज्योतिरादित्य सिंधिया ,पार्टी अध्यक्ष बीडी शर्मा के अलावा प्रदेश के आधा दर्जन से ज्यादा मंत्री लगे हुए थे ,वहां अकेले कमलनाथ और उनके दो विधायकों ने कार्यकर्ताओं के बल पर भाजपा को चारों खाने चित्त कर दिया।

भाजपा जबलपुर और छिंदवाड़ा के अलावा सिंगरौली में भी हारी। सिंगरौली में ‘आप ‘ पार्टी की जीत हुई यानि इन शहरों में केवल नेताओं के नाम और चेहरे बदले लेकिन परिदृश्य नहीं बदला। भाजपा चाहकर भी कांग्रेस को आगे बढ़ने से नहीं रोक पायी। कांग्रेस की बढ़त और आप का उदय भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं है। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस तो जी-जान से लड़ेगी ही साथ ही आप भी पीछे रहने वाली नहीं है। तीसरी शक्ति के रूप में बसपा और समाजवादी के विधायक अतीत में बिककर अपनी-अपनी पार्टियों का नाम डुबा चुके हैं। ऐसे में ‘ आप ‘ ही अब तीसरी शक्ति के रूप में कुछ कर सकती है।

स्थानीय निकाय चुनाव में जहाँ भी भाजपा हारी वहां आप एक महत्वपूर्ण कारक रहा। सत्ता प्रतिष्ठान विरोधी हवा के बावजूद यदि भाजपा आप को मना लेती तो शायद उसकी हालत इतनी पतली न होती ,जितनी की दिखाई दे रही है। भाजपा ने इंदौर और भोपाल में अच्छी तरीके से चुनाव लड़ा और जीता भी लेकिन दूसरे शहरों में भाजपा प्रबंधन नहीं कर पायी,फलस्वरूप उसे जहाँ भितरघात का सामना करना पड़ा वहीं प्रत्याशियों के चुनाव में बिखरे शिराजा को समेटने में भी अपनी तमाम शक्ति जाया करना पड़ी।
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मप्र में नगर निकाय चुनाव के दूसरे चरण की मतगणना 20 जुलाई को होगी। मध्य प्रदेश के 49 जिलों में 133 नगरीय निकायों के लिए पहले चरण के चुनाव के लिए 6 जुलाई को मतदान हुआ था। 11 नगर निगमों में मेयर पद के लिए कुल 101 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था। नगर निकाय चुनाव के दूसरे चरण की मतगणना 20 जुलाई बुधवार को होगी। राष्ट्रपति चुनाव की वजह से कुछ शहरों में मतगणना की तिथि आगे बढ़ा दी गयी थी।
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एक महत्वपूर्ण बात ये है की इन चुनावों में भाजपा मतगणना में पहले की तरह मशीनरी का ज्यादा इस्तेमाल नहीं कर पायी क्योंकि विपक्ष सतर्क था। खुद कमलनाथ हैलीकाप्टर लेकर हर जगह उड़ने को तैयार थे लेकिन इसकी नौबत आयी नहीं। कोई माने या न माने किन्तु जानकार बताते हैं की स्थानीय निकाय चुनावों को लेकर केंद्रीय नेतृत्व बेहद नाराज है और कभी भी ये नाराजगी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के ऊपर निकल सकती है।

शिवराज की कुर्सी पर पहले से ही बहुत से नेताओं की नजर है, की कब छींका टूटे और कब लोग दाढ़ी पात्र लपकें। प्रदेश में पत्रकारों को मामा मीडिया बनाने की कोशिश में लगे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह मुमकिन है की पत्रकारों के जन्मदिन पर पौधे लगना बंद कर दें, उनके बच्चों को खिलाना बंद कर दें क्योंकि इसका कोई लाभ न शिवराज सिंह चौहान को मिला न पार्टी को। पत्रकारों के बच्चे खिलाना और सरकार चलाना दो अलग-अलग विधाएँ हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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