उमंग श्रीधर क्यों हैं हीरो मध्यप्रदेश कीं !

तो आइए, मिलते हैं जोशहोश की स्पेशल सीरीज 'हीरो मध्यप्रदेश के' में बुंदेलखंड के दमोह जिले के गांव किशनगंज से ताल्लुख रखने वाली उमंग श्रीधर से..

उन्हें खुद के बुंदेली होने पर नाज है, खुद को गांव वाला कहलाने पर गर्व है। वो खुद 27 साल की हैं, लेकिन हजारों महिलाओं को रोजगार देकर आत्मनिर्भर बना रही हैं। यही वजह है कि वह मध्यप्रदेश की हीरो बन गई हैं। इतना ही नहीं, वो अपने इस काम के जरिए 10 लाख लोगों को रोजगार भी देना चाहती हैं।तो आइए, मिलते हैं जोशहोश की स्पेशल सीरीज ‘हीरो मध्यप्रदेश के’ में बुंदेलखंड के दमोह जिले के गांव किशनगंज से ताल्लुख रखने वाली उमंग श्रीधर से… 

जोशहोश टीम से मुलाकात में उमंग श्रीधर ने सबसे पहले बताया कि खादी और हैंडलूम में क्या फर्क होता है। उन्होंने कहा कि जो कपड़ा चरखे पर बना है वो खादी और जो मिल के धागे से बना, वो हैंडलूम है। उमंग ने अपनी संस्था का नाम ‘खादी’ और ‘जी’ को मिलाकर रखा है। यह संस्था चरखे के डिजिटल फ़ॉर्म से खादी बनाने का काम करती है। 27 वर्षीय उमंग कहती हैं कि उन्होंने इस बिजनेस की शुरुआत 2015 में महज 30 हजार रुपए से की थी और अब इसका टर्नओवर सालाना 60 लाख है। इतना ही नहीं, रिलायंस इंडस्ट्रीज़ और आदित्य बिड़ला ग्रुप ‘खादीजी’ के क्लाइंट्स हैं।  

उमंग अपनी सारी उपलब्धियों का श्रेय अपनी मां को देती हैं, उनकी मां वंदना श्रीधर किशनगंज की पूर्व जनपद थीं। उमंग ने बताया, मैंने बचपन से मां को दूसरों की समस्या को सुलझाते देखा है, तभी से मैंने भी सोचा कि मैं भी बड़े होकर कुछ ऐसा करूंगी, जिससे दूसरों की मदद की जा सके। उमंग के खादी बिज़नेस से मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल के बुनकरों को रोज़गार मिल रहा है। खादी को बनाने में ऑर्गेनिक कॉटन के साथ बांस और सोयाबीन से निकले वेस्ट मटेरियल का भी इस्तेमाल किया जाता है। लॉकडाउन से लेकर अब तक उमंग की संस्था क़रीब 2 लाख़ मास्क बना कर बांट चुकी है और इसके माध्यम से भोपाल और आसपास के गांव की लगभग 50 महिलाओं को रोज़गार मिला है। इसके अलावा वो किशनगंज में सोलर चरखे पर खादी बनाने के साथ ही 200 महिलाओं को रोज़गार दे रही हैं। उमंग कहती हैं कि एक मीटर फैब्रिक को बनाने में 12 परिवारों को रोजगार मिलता है। उमंग को प्रतिष्ठित बिजनेस मैगज़ीन Forbes की अंडर-30 अचीवर्स की लिस्ट में चुना जा चुका है।  

 ग्रामीण क्षेत्र में पली बढ़ी, जहां उन्होंने कारीगरों के संघर्ष को देखा… 

खादी, जो कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान आर्थिक सशक्तिकरण का एक माध्यम था,  सिल्क और पॉलिएस्टर जैसी आधुनिक चीजों के आने से इसका महत्व कम हो गया। अब नए जमाने के कपड़ों में भी इसका फैशन फिर से लौट रहा है। उमंग श्रीधर द्वारा स्थापित भोपाल स्थित खादीजी एक ऐसा ही सामाजिक उपक्रम है। पांच साल पहले इसकी स्थापना के बाद से यह संगठन खादी के निर्माण से जुड़े मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल के स्थानीय सूत कातने वालों और हथकरघा बुनकरों को प्रशिक्षित कर रहा है। यह B2B स्टार्टअप अपने राजस्व का 60 प्रतिशत कारीगरों में बांटता है। उमंग बुंदेलखंड के ग्रामीण क्षेत्र में पली बढ़ी, जहां उन्होंने कारीगरों के संघर्ष को देखा। वे कहती हैं कि क्योंकि भारत के विकास में स्वदेशी विशेषज्ञता का कोई मूल्य नहीं था। इसलिए उन्हें सशक्त बनाना हमारा पहला लक्ष्य है। इसके अलावा खादी एक आरामदायक, किफायती और टिकाऊ उत्पाद है। कौन जानता था कि इतनी अच्छी क्वालिटी वाले भारतीय कपड़े को फिर से वापस लाने से इतने सारे फायदे हो सकते हैं। उमंग के संरक्षक, निवेशक, सूत कातने वाले और बुनकर से लेकर अधिकांश कामगार महिलाएं हैं।  

उमंग श्रीधर

वह कहती हैं कि, खादी की दुनिया में सूत कातने वालों को कातिन के नाम से जाना जाता है, जो स्त्रीलिंग शब्द है। तकनीकी रूप से सूत कातने वाले पुरुषों के लिए कोई शब्द ही नहीं है। इसलिए दोनों के लिए एक ही शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। जमीनी स्तर पर बदलाव लाने के लिए दृढ़ संकल्प उमंग उन 300 महिला कारीगरों के जीवन में बदलाव ला रही हैं जो सरकार के स्वामित्व वाली खादी और ग्रामोद्योग आयोग का हिस्सा हैं।वह आगे बताती हैं, हम उन महिलाओं को काम पर रखते हैं जो केवीआईसी कार्यक्रम का हिस्सा हैं। सूत कातने वाले और बुनकर क्रमश 6,000 और 9,000 रुपए प्रति माह कमाते हैं। हालांकि, अनुभव और उच्च कौशल वाले लोग 25,000 से 30,000 रुपए के बीच कमाते हैं।

एक प्रतियोगिता ने बदल दी लाइफ… 

बुंदेलखंड के दमोह क्षेत्र के किशनगंज नामक एक छोटे से गांव में जनमी उमंग की रूचि हमेशा डेवलपमेंट सेक्टर में थी। वह बताती हैं, दुर्भाग्य से मैं इस रूढ़िवादी समाज का हिस्सा थी। यह अजीब है कि लोग अपने नाम से नहीं बल्कि अपनी जाति से जाने जाते हैं। आगे जब मैं उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली गई तो मुझे ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच के अंतर को देखकर हैरानी हुई। दिल्ली विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई के साथ-साथ, उमंग ने कई गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर जमीनी हकीकत को समझा और सीखा। ग्रामीण क्षेत्रों की कामगार महिलाओं का खादी में काम करना एक स्वाभाविक प्रगति की तरह लग रहा था। अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए उन्होंने 2014 में दिल्ली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी से फैशन डिजाइनिंग और क्लॉदिंग टेक् नोलॉजी का कोर्स किया। उन्होंने स्कूल ऑफ सोशल एंटरप्रेन्योर इंडिया से फेलोशिप भी हासिल की। कपड़ा मंत्रालय द्वारा आयोजित एक प्रतियोगिता में हथकघा का उपयोग करके एक होम कलेक्शन डिजाइन तैयार करना उमंग का पहला अनुभव था, जिसके लिए उन्हें पुरस्कार जीतना खादी में क्रांति लाने और भारत में इसे एक लोकप्रिय उत्पाद बनाने के विचार का एक प्रमाण था। उमंग ने अगले दो साल रिसर्च और विकास में बिताए और फिर आधिकारिक रूप से 2017 में खादीजी को लॉन्च किया। 

उमंग बताती हैं, हम खादी कपड़े पर डिजिटल प्रिंटिंग तकनीक का उपयोग करते हैं। इसके लिए हम महिलाओं को आवश्यक उपकरण, धागे और डिजाइन प्रदान करते हैं। हम उन्हें साल में दस महीने के लिए काम पर रखते हैं और उचित मजदूरी देते हैं। हालांकि खुरदुरे बनावट वाली खादी हर मौसम में आरामदायक होती है और हाथ से कातने वाली तकनीक का बाजार में प्रवेश करना आसान नहीं था। खादी में एक बहुत ही अव्यवस्थित आपूर्ति श्रृंखला है। मुझे और मेरी गुरु सारिका नारायण को बाजार को समझने में कुछ समय लगा। कपड़े की ब्राडिंग करने की बजाय, हमने इसे एक ऐसी कपड़ा कंपनी के रूप में पहचान दी जो टिकाऊ खादी के कपड़े बनती है। हमारी इस रिब्रांडिंग को रातों-रात सफलता तो नहीं मिली। लेकिन धीरे-धीरे हमारे क्लाइंट मुम्बई में क्लॉदिंग स्टोर अरोका से लेकर, जयपुर में अपारेल स्टोर कॉटन रैक सहित दिल्ली, जयपुर और मुंबई में फैले फैशन डिजाइनरों तक बढ़ते गए। 2018 में उमंग के सोशल सर्कल की एक बिजनेस डेवलपर तान्या चुघ बिजनेस मॉडल को आगे बढ़ाने के लिए एक पार्टनर के रूप में कंपनी में शामिल हो गई। उमंग ने कहा,  तान्या चुघ इस साल लंदन में शिफ्ट हो गई और हम अंतरराष्ट्रीय बाजारों में एक सफलता बनाने की उम्मीद करते हैं।  कोविड-19 लॉकडाउन के कारण कई कंपनियां बंद हैं। वैसे खादीजी के कपड़े विभिन्न उत्पादों में फैशन में है। इन दिनों उमंग आम लोगों के लिए मास्क और दस्ताने जैसै उत्पाद बनवा रही हैं। अब तक उन्होंने एक लाख से अधिक मास्क बनवाया है। लॉकडाउन के बाद उमंग और तान्या को कपड़े की हर लंबाई पर क्यूआर कोड डालकर प्रौद्योगिकी के माध्यम से अपनी सप्लाई चेन में सुधार करना है। इससे ग्राहक को कपड़े की उत्पत्ति का पता चल सकेगा। स्टार्टअप अपनी राजस्व प्रणाली को स्थिर करने के लिए बी2सी (बिजनेस टू कस्टमर) ऑनलाइन मॉडल पर काम कर रहा है।

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