भारतीय सेना ने डिलीट किया रोज़ा इफ़्तार का ट्वीट, उठा बड़ा सवाल?
भारतीय सेना ने शेयर करने के बाद डिलीट किया रोजा इफ्तार का ट्वीट, सोशल मीडिया पर उठा बड़ा सवाल।
Ashok Chaturvedi
जम्मू (जोशहोश डेस्क) भारतीय सेना द्वारा रोजा इफ्तार की तस्वीरों को शेयर करने के बाद डिलीट किए जाने का मामला सोशल मीडिया की सुर्खियों में है। सोशल मीडिया पर इन तस्वीरों पर आपत्ति करने वाले सुदर्शन चैनल के सीएमडी सुरेश चव्हाणके को खरी खोटी सुनाई जा रही है वहीं यह सवाल भी उठाया जा रहा है कि क्या भारतीय सेना नफरत के आगे झुक रही है?
पूरा मामला जम्मू कश्मीर में सेना द्वारा गई रोज़ा इफ्तार की तस्वीरों से शुरू हुआ। पीआरओ जम्मू डिफेंस ने इफ्तार की इन तस्वीरों को ट्वीट करते हुए लिखा कि “सेक्युलरिज्म की परंपरा को बरकरार रखते हुए इंडियन आर्मी ने डोडा में इफ्तार आयोजित किया।
इस ट्वीट की जहां सराहना हो रही थी वहीं एक वर्ग ने इसकी आलोचना करना शुरू कर दिया। सुदर्शन न्यूज के सीएमडी और एडिटर इन चीफ सुरेश चव्हाणके ने लिखा- अब यह बीमारी सेना में घुस गई. दुखद
बाद में पीआरओ डिफेंस जम्मू द्वारा यह ट्वीट डिलीट कर दिया गया। ट्वीट डिलीट किए जाने पर सोशल मीडिया में सवाल उठाए जाने लगे। पत्रकार और ‘सेवन हीरोज़ ऑफ 1971’ के लेखक मान अमन सिंह ने लिखा धर्मनिरपेक्षता का आखिरी गढ़ लड़खड़ा रहा है-
PRO Defence Jammu choses to delete the tweet on secularism,which had photographs of Iftaar organised by Indian Army in Doda during Ramazan, after Sudarshan TV Editor Suresh Chavhanke hit out at the Army on twitter over the event.
— Man Aman Singh Chhina (@manaman_chhina) April 23, 2022
पूरे वाकए को लेकर डॉक्टर पूजा त्रिपाठी ने भी सवाल उठाया। उन्होंने लिखा- शौर्य, पराक्रम और आपसी भाईचारे की मिसाल भारतीय सेना अब सुरेश चव्हाणके जैसे दो कौड़ी के नफ़रती चिंटूओं के आगे झुक रही है?
भारतीय सेना @adgpi को इफ़्तार का ट्वीट क्यूँ डिलीट करना पड़ा?
शौर्य, पराक्रम और आपसी भाईचारे की मिसाल भारतीय सेना अब सुरेश चव्हाणके जैसे दो कौड़ी के नफ़रती चिंटूओं के आगे झुक रही है? pic.twitter.com/3lyMENxumM
वहीं यह भी लिखा गया कि सेना में सभी त्यौहार मिलजुलकर मनाएं जाते हैं। सेना के लिए सबसे पहले इंसानियत, भारतीयता और राष्ट्रसेवा ही मायने रखता है न कि जाति और धर्म। यह भी कहा गया कि स्थानीय लोगों का समर्थन सेना के लिए जरूरी होता है। इसलिए दुनिया भर की सेनाएं स्थानीय लोगों के साथ इस तरह के आयोजन करती हैं। सेना को इस तरह की संकीर्ण मानसिकता से दूर रखा जान चाहिए।