नई दिल्ली (जोशहोश डेस्क) देश के ‘राजा’ का हुक्म है-जो बेरोज़गारी, महंगाई, गलत GST, अग्निपथ पर सवाल पूछेगा-उसे कारागृह में डाल दो। भले ही मैं अभी हिरासत में हूं, भले ही देश में अब जनता की आवाज़ उठाना जुर्म हो, लेकिन वो हमारा हौसला कभी नहीं तोड़ पाएंगे।
हिरासत में होने के बाद भी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का यह ट्वीट इस बात को साबित करता है कि राहुल गांधी सियासत के टूल्स कहे जाने वाले ईडी, आईटी और सीबीआई से बेखौफ होकर सत्ता की ताकत को जमीन पर अकेले ही चुनौती दे रहे हैं।
मंगलवार को राहुल गांधी की यह तस्वीर उस समय आई जब प्रवर्तन निदेशालय द्वारा कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से पूछताछ के खिलाफ पार्टी के सत्याग्रह को पुलिस ने जबर्दस्ती रोक दिया था। राहुल गांधी समेत पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को हिरासत में लिया गया था और करीब सात घंटे बाद उन्हें रिहा किया गया था।
ईडी की कार्रवाई को कांग्रेस राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित बता रही है। साथ ही कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी बेखौफ हो ईडी की लंबी पूछताछ का सामना कर रहे हैं। राहुल गांधी से भी ईडी करीब पचास घंटे पूछताछ कर चुकी हैं लेकिन राहुल इस पूछताछ के दौरान न कभी नर्वस दिखे और न भयभीत।
दूसरी ओर अगर देश के वर्तमान सियासी परिदृश्य पर गौर किया जाए तो पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक किसी भी सियासी दल के नेता को राहुल गांधी जैसा बेखौफ होकर नरेंद्र मोदी और अमित शाह की सत्ता का मुकाबला करते नहीं देखा जा रहा है। देश के कई दिग्गज विपक्षी नेता अपने अतीत से भविष्य को सुरक्षित करने सत्ता के सामने समर्पण की मुद्रा में है लेकिन राहुल गांधी सत्ता के सामने अपने तीखे तेवरों के साथ अकेले बेखौफ खड़े नज़र आ रहे हैं।
राहुल गांधी ही इकलौते ऐसे नेता हैं जो भारतीय जनता पार्टी और उसके पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उसकी विचारधारा को सीधे चुनौती देते दिखाई दे रहे हैं। बड़ी बात यह है राहुल गांधी अपनी इस पूरी लड़ाई को राजनैतिक स्तर पर नहीं बल्कि वैचारिक स्तर पर लड़ते दिख रहे हैं और उन्होंने इस पूरी सियासी लड़ाई को राजनैतिक की बजाय वैचारिक लड़ाई में बदल दिया है।
राहुल गांधी ने मंगलवार को एक अन्य ट्वीट किया। इस ट्वीट से राहुल गांधी ने सीधा सन्देश दिया कि उनके लिए यह लड़ाई परिवार की बजाय जनता और देश से जुड़े अहम मुद्दों की लड़ाई है। यही कारण लगता है कि महंगाई, रुपए की गिरती कीमत, बेरोजगारी, देश में पनप रही नफरत और चीन की घुसपैठ जैसे मुद्दों पर राहुल गांधी सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती दे रहे हैं।
कोरोना को लेकर भी राहुल गांधी से समय रहते सरकार को चेताया था लेकिन तब उनकी हंसी उड़ाई गई। नतीजा पूरा देश ने भुगता। किसान आंदोलन पर राहुल गांधी ने डंके की चोट पर कहा था कि सरकार को किसान बिल वापस लेने पड़ेंगे और मोदी सरकार को किसानों के सामने झुकते हुए बिल वापस लेना पड़े। नोटबंदी को भी राहुल गांधी ने राष्ट्रीय त्रासदी बताया था और अब यह स्पष्ट हो चुका है कि मोदी सरकार ने जिन उद्देश्य के साथ नोटबंदी को लागू किया था वे पूरे नहीं हो सके बल्कि देश की अर्थव्यवस्था के लिये नोटबंदी को एक त्रासदी ही कहा जाने लगा है।
जीएसटी को भी राहुल गांधी गब्बर सिंह टैक्स बताया था और अब व्यापारी ही जीएसटी और मोदी सरकार के खिलाफ आंदोलन पर उतारू हैं। चीन को लेकर भी राहुल गांधी बार-बार आगाह करते रहे और अब चीन की घुसपैठ पर इंटरनेशनल मीडिया मुहर लगा चुका है। ऐसे में यह कहा जाने लगा है कि राहुल गांधी की छवि को लेकर किये गए लगातार दुष्प्रचार के जाले भी अब टूट रहे हैं।
अब जबकि मोदी सरकार में यह कहा जाने लगा है कि चुनावी जीत-हार जनता से जुड़े मुद्दों पर न होकर भावनात्मक मुद्दों पर होती है और जनता से जुड़े मुद्दे नेपथ्य में हैं। उसके बाद भी राहुल गांधी बेहद बेबाकी से भावनात्मक के बजाए जनता से जुड़े मुद्दों पर सत्ता से लोहा ले रहे हैं। देश का एक बड़ा वर्ग भी अब यह मानने लगा है कि राहुल गांधी जिन मुद्दों पर सत्ता से लोहा ले रहे हैं वे कांग्रेस से ज्यादा देश और लोकतंत्र के लिए जरूरी हैं। इसे भी राहुल गांधी की बड़ी सफलता ही माना जा रहा है।