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प्रकाश से अंधकार की ओर बढ़ता भारत, पत्रकार राकेश अचल का आलेख

राकेश अचल लिखते हैं- जनता भले ही बिजली संकट से जूझ रही हो किन्तु बिजली कंपनियों की पाँचों उँगलियाँ घी में और सिर कढ़ाई में है।

अंर्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष का अनुमान भले ही भारत की अर्थव्यवस्था में 9.5 फीसदी इजाफे का हो लेकिन भारत की हालत सचमुच खराब है। सचमुच यानि सचमुच दो साल से लगातार ईंधन के दामों में इजाफे की मार झेल रहे भारत के लोगों के सामने अब नया संकट खड़ा हो गया है और ये संकट है बिजली का। देश के किसी भी हिस्से में, किसी भी समय अन्धेरा अपने पांव पसार सकता है,क्योंकि देश के विद्युत उत्पादन संयंत्रों के पास कोयला नहीं है।

भारत के सामने किसानों का संकट पहले से है। पेट्रोल,डीजल,सीएनजी,और रसोई गैस के दाम मनमाने ढंग से बढ़ रहे हैं। केंद्र सरकार ने महंगाई रोकने में अपनी नाकामी को खामोशी के साथ स्वीकार कर लिया है। जनता भी भक्तिभाव और राष्ट्रप्रेम के जज्बे के चलते सिर झुकाकर मंहगाई की डायन के सामने खड़ी है। न कोई आंदोलन,न विरोध,न असंतो , न क्रोध। आखिर देश का मामला है लेकिन अँधेरे से ये जनता लड़ पाएगी या नहीं कहना कठिन है, क्योंकि कोई भी अँधेरे के साथ नहीं जीना चाहता। अन्धेरा गरीबी की तरह अभिशाप है।

देश में कोयला संकट क्यों है ? इसका सीधा सा जबाब है कि देश में बिजली की मांग लगातार बढ़ रही है। जब आबादी लगातार बढ़ रही है तो बिजली की मांग का बढ़ना भी स्वाभाविक है। हमारी सत्यवादी सरकार कहती है कि कोरोनाकाल में बिजली की मांग बढ़ी है। सरकार कहती है तो सच ही होगा, क्योंकि सरकार कभी झूठ नहीं बोलती। कोरोनाकाल में ऑक्सीजन की कमी से देश में कोई नहीं मरा,ये भी हमारी ही सरकार ने देश की सबसे बड़ी संसद में सीना ठोंककर कहा था। 56 इंच सीने वाली सरकार को सच बोलने की क्या जरूरत? सारा काम जब झूठ से ही चल जाता है?

राकेश अचल

आंकड़े बोलते हैं कि देश में 2019 में जहां हर महीने 106.6 बिलियन यूनिट की खपत होती थी, वहीं 2021 में 124.2 बिलियन यूनिट बिजली की खपत होने लगी। इसके चलते कोयले की खपत भी बढ़ गई। पिछले साल अगस्त-सितंबर के मुकाबले इस साल इसमें 18 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। देश में ज्यादातर बिजली कोयले से बनाई जाती है। शायद 72 फीसदी बिजली का निर्माण कोयले से होता है और ये कोयला बिजली केंद्रों को मुहैया सरकार नहीं निजी कंपनियां कराती हैं। कोयला किसी फैक्ट्री में नहीं बनता.प्रकृति की कोख से निकाला जाता है। ये काम जिन हाथों में है वे ही इस संकट के पीछे भी हों तो हैरान नहीं होना चाहिए क्योंकि एक तरफ जहां देश लगातार अँधेरे की और बढ़ रहा है वहीं दूसरी और कोयला और बिजली उत्पादन क्षेत्र की कंपनियों के शेयर अलगतार उछल रहे हैं।

देश में कोयले का संकट है। अनेक राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने केंद्र सरकार को इस बारे में पत्र लिखे हैं लेकिन देश कोयला मंत्री केंद्रीय प्रह्लाद जोशी कहते हैं कि- ‘बिजली आपूर्ति बाधित होने का बिल्कुल भी खतरा नहीं है। कोल इंडिया लिमिटेड के पास 24 दिनों की कोयले की मांग के बराबर 43 मिलियन टन का पर्याप्त कोयले का स्टॉक है। कोयला मंत्रालय ने भी आश्वस्त किया कि बिजली संयंत्रों की मांग को पूरा करने के लिए देश में पर्याप्त कोयला उपलब्ध है। सवाल ये है कि सच किसे माना जाये। मुख्यमंत्रियों के पत्रों को या जोशी जी के जोशीले दावों को ?

आमतौर पर बिजली संकट के रटे-रटाये कारण गिनाये जाते हैं कि बिजली संयंत्रों में कोयले के भंडार में कमी अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार के कारण बिजली की मांग में अभूतपूर्व बढ़ोतरी, कोयला खदानों में भारी बारिश से कोयला उत्पादन और ढुलाई पर प्रतिकूल प्रभाव, आयातित कोयले की कीमतों में भारी बढ़ोतरी और मानसून से पहले पर्याप्त कोयला स्टॉक न करने की वजह से हुई। वजह जो भी हो लेकिन इसके लिए आम आदमी तो जिम्मेदार नहीं है फिर बेचारा वो परेशानी क्यों भुगते ? दिक्क्त ये है कि दूसरे ईंधनों की तरह भारत आज भी कोयले के मामले में भी आत्मनिर्भर नहीं है।

हकीकत ये है कि कुछ महीनों से कोयले की घरेलू कीमतों और वैश्विक कीमतों में बड़ा अंतर दिखाई दे रहा है। कहा जा रहा है कि इससे कोयले का आयात प्रभावित ही नहीं हुआ बल्कि कम हो गया है। भारत में 80 फीसदी से अधिक कोयले का उत्पादन करने वाली कोल इंडिया का कहना है कि वैश्विक कोयले की कीमतों और माल ढुलाई लागत में वृद्धि से आयात होने वाले कोयले से बनने वाली बिजली में कमी आई है, जिससे यह स्थिति बन गई है।

देश इस समय नवदुर्गा महोत्स्व मना रहा है। भक्तिभाव में डूबे इस देश के सामने कोई भी पल अँधेरे का सन्देश लेकर आ सकता है। अनेक प्रांतों के पास आज या कल के लिए ही बिजली है। यानि कोयला संकट से जूझने के लिए आपको तैयार रहना होगा। देशप्रेम दर्शाने का ये एक और बड़ा अवसर सरकार आपको दे रही है।

जनता भले ही बिजली संकट से जूझ रही हो किन्तु बिजली कंपनियों की पाँचों उँगलियाँ घी में और सिर कढ़ाई में है। इन कंपनियों के शेयर लगातार उछल रहे हैं। कोयला कंपनियों के ही नहीं वैकल्पिक ऊर्जा से जुड़ी कंपनियों की भी बल्ले-बल्ले हो रही है। इन दोनों क्षेत्रों में करीब एक दर्जन कंपनियां सक्रिय हैं। जाहिर है कि इस संकट के पीछे भी इन्हीं कंपनियों का हाथ होगा, लेकिन सरकार कुछ कर नहीं सकती। ज्यादा चिल्ल-पों होगी तो सरकार कोल इंडिया को भी नीलाम कर देगी। न रहेगा बांस और न बजेगी बाँसुरी।

अगर आप देशभक्त हैं तो आपको मानवाधिकारों के मामलों की तरह बिजली संकट के मामले में भी ‘सिलेक्टिव्ह ‘ नहीं होना है। बिजली संकट से जूझने के लिए आप सरकार की आलोचना करने के बजाय अंधेरे के खिलाफ जंग में जुगनुओं की तरह शामिल हों। बाजार जाएँ लालटेन और घासलेट खरीद लाएं दिनचर्या बदलें, दिन ढलने से पहले ही अपने तमाम जरूरी काम निबटा लें। जितनी भी बिजली मिले उसमे अपने मोबाइल, लेपटाप और इन्वर्टर चार्ज कर लें और उन्हें रिजर्व इस्तेमाल के लिए रखें,क्योंकि सरकार आपकी इस मामले में कोई मदद नहीं करने वाली। सरकार के सामने बिजली से बड़ा संकट किसान आंदोलन है,उत्तर प्रदेश और पंजाब विधानसभा के चुनाव जीतना है। सबसे बड़ी बात सरकार को अपने टैनी की कुर्सी को बचाना है।

आप हनुमान चालीसा का पाठ करिये.’संकट टरे मिटे सब पीरा,जो सुमरे हनुमत बलबीरा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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