क्या महज एक चुनावी झांसा है राज्यों में ‘डबल इंजन’ की सरकार?
डबल इंजन यानी जिस पार्टी की केंद्र में सरकार उसी पार्टी की राज्य में सरकार। विकास के मामले में डबल इंजन सरकारें धरातल पर फेल।

नई दिल्ली (जोशहोश डेस्क) राज्यों के विधानसभा चुनाव में डबल इंजन की सरकार का नारा जमकर इस्तेमाल होता आ रहा है। डबल इंजन यानी जिस पार्टी की केंद्र में सरकार उसी पार्टी की राज्य में सरकार। इस नारे के दम पर विकास की सुनहरी तस्वीर दिखा वोटर को लुभाने भरपूर कवायद की जाती है लेकिन विकास के मामले में डबल इंजन सरकारें धरातल पर फेल हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट तो कम से कम यही संकेत दे रही है।
नीति आयोग की हालिया रिपोर्ट डबल इंजन की सरकार की कलई खोलने को काफी है। इस रिपोर्ट के मुताबिक देश के पांच सबसे गरीब राज्यों में बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और मेघालय में से अकेले झारखंड को छोड़ दिया जाए तो चार राज्यों में इस समय डबल इंजन की वाली सरकार है। पांच सबसे गरीब राज्यों में शीर्ष पर बिहार है।
बिहार में भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन सत्ता में है। गठबंधन की अगुआई कर रहे नीतीश कुमार यहां लंबे समय से मुख्यमंत्री हैं और खुद को सुशासन का पर्याय बताते नहीं थकते। सुशासन का हाल यह है कि राज्य की आधी से ज्यादा आबादी डबल इंजन की सरकार होने के बाद भी गरीब है।
इस लिस्ट में सबसे हैरान करने वाली स्थिति मध्यप्रदेश की है। यहां भी मुख्ममंत्री शिवराज सिंह चौहान अपना चौथा कार्यकाल पूरा कर रहे हैं। बीते सात सालों से केंद्र में भी भाजपा सरकार है। फिर भी राज्य गरीबों की संख्या के मामले में पूरे देश में चौथे नंबर पर है।
उत्तर प्रदेश में भी बीते विधानसभा चुनाव में भाजपा को प्रचंड बहुमत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर ही मिला था। विधानसभा चुनाव में डबल इंजन की सरकार के नारे की दम पर ही भाजपा ने सारे सियासी समीकरणों की पीछे छोड़ते हुए 300 से ज्यादा सीट जीत कर अभूतपूर्व बहुमत हासिल किया था। लेकिन राज्य में डबल इंजन सरकार के बाद भी बहुत ज्यादा परिवर्तन नीति आयोग की लिस्ट के मुताबिक तो नहीं दिख रहा। गरीबी में यूपी पूरे देश में तीसरे नंबर पर है।
मेघालय में भी भाजपा अपने सहयोगियों के साथ सत्तारूढ है। पूर्वोतर के इस छोटे राज्य का गरीबी के मामले में देश के पांच शीर्ष राज्यों में होना हैरानी भरा है। दूसरी ओर केरल जहां नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक सबसे कम गरीबी है वहां डबल इंजन जैसी कोई बात नहीं है।
केरल में हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन होने की परंपरा सी है। केवल बीते विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री विजयन की सरकार ने दोबारा सत्ता में वापसी की थी। वहीं सबसे कम गरीबों की संख्या वाले पांच राज्यों में केरल के बाद गोवा, सिक्किम, तमिलनाडु और पंजाब में अगर गोवा को अपवादस्वरुप छोड़ दिया जाए तो डबल इंजन जैसा संयोग बहुत ही कम रहा है।
गौरतलब है कि ‘डबल इंजन’ की सरकार जैसी कोई भी अवधारणा अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है। संविधान में केंद्र और राज्य सरकार के लिए अलग और स्पष्ट कार्यभार निर्धारित हैं। वास्तव में केंद्र सरकार के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है जो उसे किसी राज्य में किसी पार्टी विशेष की सरकार होने के आधार पर अतिरिक्त लाभ दे, या सौतेला व्यवहार करे। ऐसे में यह साफ़ है कि राज्यों में महज चुनावी लाभ के लिए सियासी दल डबल इंजन की सरकार जैसे नारे बुलंद करते हैं।