बढ़ रही है एनडीए में टूट की संभावनाएं

अपने एकतरफा निर्णय लेने के कारण मोदी सरकार (Modi Government) का साथ उनके सहयोगी निरंतर छोड़ते जा रहे हैं।

नई दिल्ली (जोशहोश डेस्क) अपनी हठधर्मिता और एकतरफा निर्णय लेने के कारण मोदी सरकार (Modi Government) का साथ उनके सहयोगी निरंतर छोड़ते जा रहे हैं। किसान आंदोलन (Kisan Andolan) के चलते अब और भी राजनैतिक दल एनडीए (NDA) से साथ छोड़ रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि सहयोगी दलों को प्रधानमंत्री और उनके सहयोगी अमित शाह का एकाधिकार पूर्ण रवैया पसंद नहीं आ रहा है। जिस तरह से गठबंधन के अन्य सदस्य अपने आप को असहज महसूस कर रहे हैं। उसका नतीजा है कि एक-एक करके वे साथ छोड़ रहे हैं। जिस तरह से अरुणाचल प्रदेश में नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड के 6 विधायकों को भाजपा ने अपने साथ मिलाया उससे एनडीए में टूट की संभावना और भी ज्यादा बढ़ गई है।

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अब तक एनडीए से चार दल अलग हो चुके हैं। नए कृषि कानूनों के विरोध में शनिवार को राजस्थान में भाजपा की सहयोगी रही राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) ने एनडीए का साथ छोड़ दिया। आरएलपी के अध्यक्ष हनुमान प्रसाद बेनीवाल ने खुद इसका एलान किया है। हनुमान प्रसाद बेनीवाल ने प्रदर्शनकारी किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि – हम उनके साथ नहीं रह सकते जो किसानों के खिलाफ हैं। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने 2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन किया था। इसके साथ ही पिछले चार महीनों में एनडीए छोड़ने वाली यह चौथी पार्टी है।

इससे पहले सितंबर में किसानों के मुद्दे पर ही भाजपा की पुरानी सहयोगी पार्टी शिरोमणी अकाली दल ने एनडीए का साथ छोड़ा था। केंद्रीय मंत्री रहीं हरसिमरत कौर ने किसानों के मुद्दे पर इस्तीफा दे दिया था। बीजेपी और अकाली दल का गठबंधन बहुत पुराना है। 1992 तक दोनों पार्टी अलग-अलग चुनाव लड़ती थी और चुनाव के बाद साथ आती थी। इसके बाद 1996 में दोनों पार्टी ने मोगा डेक्लेरेशन पर साइन किया और 1997 में पहली बार साथ चुनाव लड़ा। तभी से लेकर अब तक दोनों का साथ बरकरार था लेकिन किसानों के मुद्दे पर अब दोनों पार्टी अलग हो गईं हैं।

पंजाब में अकाली दल ही एक ऐसी पार्टी है जो लगातार दो बार चुनाव जीती है लेकिन 2017 में उनकी बुरी तरह हार हुई थी। पार्टी 117 सीटों में से सिर्फ 15 सीटों पर सिमट के रह गई। इस वजह से इतनी पुरानी पार्टी को मुख्य विपक्ष का तमगा भी नहीं मिला। ऐसे में अब पार्टी को डर है कि किसानों के मुद्दे पर भी किसानों का साथ न देकर उनका बचा हुआ वोट बैंक भी खिसक जाएगा। माना जा रहा है कि अकाली दल के इस फैसले के बाद सबसे ज्यादा खराब स्थिति भाजपा को होने वाली है। क्योंकि उनका वहां कोई चेहरा नहीं है और जिन मुद्दों में दोनों दल साथ लड़ते थे, अब उन मुद्दों में भी बंटवारा हो जाएगा।

अक्टूबर में पीसी थॉमस की अगुवाई वाली केरल कांग्रेस ने भी एनडीए का साथ छोड़ दिया। भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान पीसी थॉमस की अगुवाई वाली केरल कांग्रेस से गठबंधन किया था।इसके अलावा दिसंबर में बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट ने भी एनडीए का साथ छोड़ दिया। अब एनडीए में 16 दल रह गए हैं।

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