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ट्रेन के फर्श पर पसीने से लथपथ-बेसुध, चेहरे देखा तो वे वरिष्ठ पत्रकार राकेश अग्निहोत्री थे

बीच सफर में मददगार बने पत्रकार राकेश मालवीय ने ट्रेन से अस्पताल तक संकट के लम्हों को किया साझा।

कल दफ्तरी काम को निपटा कर खजुराहो से लौट रहा था। नौगांव, छतरपुर,खजुराहो इन दिनों आग की भट्टी में तब्दील हो जाते हैं। महामना एक्सप्रेस साढ़े चार बजे छूटती है। हालत पस्त थी। वैशाख के इन दिनों के सफर में ठंडी-गर्मी का ध्यान अलग से रखना पड़ता है। रेल के एकमात्र वातानुकूलित सी वन कोच की 61—62 सीट नंबर पर अपने साथी के साथ हम सवार हो गए। ट्रेन छूटी। पांच बजे से एक आनलाइन मीटिंग शेडयूल थी तो जब तक नेटवर्क की कृपा रही, उसमें जुड़ा रहा, पर नेटवर्क भी चला ही गया। नींद खुली तो ट्रेन ललितपुर स्टेशन पर थी। मन हुआ चाय पी जाए।

दो प्याले चाय लेकर कोच में चढ़ा कि कोच के दूसरी तरफ कुछ हलचल थी। कुछ देर अपनी जगह ठहरकर देखते रहा। एक लड़की चिल्लाई कोच में कोई डॉक्टर है। ट्रेन का स्टाफ तब तक आ चुका था। मैंने जल्दी से चाय खत्म की, आगे बढ़ा तब तक बेसुध हालत में एक व्यक्ति पसीने से लथपथ फर्श पर ही पड़े थे। चेहरे पर नजर गई तो वह राकेश अग्निहोत्री थे। भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार। यात्रियों की मदद से उन्हें उठाया और सीट पर बैठाया। सभी पशोपेश में था कि कौन हैं और क्या करें ?

मैंने कहा कि मैं इन्हें जानता हूं। तब तक राकेशजी को होश आ गया था। गिरने की वजह से मुंह से थोड़ा खून निकल गया था। एक यात्री ने अपने हाथ पर खून लगा हुआ दिखाया। राकेशजी ने खुद बताया कि यह चोट की वजह से है, उन्हें पसीना आ रहा है बस। वह लेट गए और कहा कि भोपाल तक ऐसे ही चलते हैं। परिस्थिति देखकर ट्रेन को रोक दिया गया था। तब तक एक मेडिकल स्टाफ ट्रेन में आ गए थे। उन्होंने लक्षण पूछे और सजेस्ट किया कि इन्हें उतार लेना चाहिए, भोपाल तक जाना रिस्की है।

उनके साथ एक महिला थीं जो गांव में उनके पड़ोस में ही रहती थीं। वह भी उन्हें संभाले थीं। मैंने अपनी साथी निधि को कहा कि मुझे भी उतरना चाहिए। आप ट्रेन से चली जाओ मैं आता हूं। तीनों के बैग लेकर हम नीचे थे। स्टेशन पर फिर उन्हें देखा गया और ललितपुर जिला अस्पताल के लिए एक एम्बुलेंस का इंतजाम किया। रेल प्रशासन मदद कर रहा था। हम एम्बुलेंस में सवार हो गए थे।

ललितपुर ​की ज्यादा जानकारी थी नहीं। कोई हार्ट हास्पिटल की स्टाफ को जानकारी नहीं थी। गूगल करने का वक्त नहीं था। इस बीच मैंने भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी जी को फोन किया, फोन उठा नहीं, उनका संदेश मिला स्टाफ मीटिंग में हैं। थोड़ी देर से कॉल करते हैं। दूसरा कॉल मैंने मुख्यमंत्रीजी के ओएसडी सत्येन्द्र खरे भाई को किया, भारी व्यस्त होने के बावजूद भी उन्होंने बात की, मैंने सीधे उन्हें ब्रीफ किया कि यह बात है और मामला बहुत संकट का है।

दूसरे राज्य का मामला था, उसके बाद भी सब कुछ ठीक होते चला गया। अस्पताल में जांचें शुरू हो गई थीं। ईसीजी भी गड़बड़ आई थी। उन्हें हृदय रोग ईकाई के वार्ड में ले जाया गया था। इस बीच मेरे पास प्रशासन के कई वरिष्ठ अधिकारियों के फोन आने शुरू हो गए। डॉक्टर आ गए थे। सीएमएचओ मुकेश दुबे जी भी आ गए। उनका कहना था कि हमसे जो बन सकता था वह कर दिया ​पर हृदय रोग विशेषज्ञ को दिखाना बहुत जरूरी है। इस बीच एसपी भी पहुंच गए थे।

सबसे नजदीकी हास्पिटल झांसी मेडिकल कॉलेज ही था। दूसरा विकल्प भोपाल लाने का था। राकेशजी का फिर कहना था कि भोपाल ले चलो। पर मुझे लगा कि पांच घंटे से ज्यादा अच्छा होगा डेढ़ घंटे में झांसी पहुंच जाना। डॉक्टरों की राय थी झांसी चले जाएं।

एम्बुलेंस तैयार थी। एसपी साहब ने एक पुलिसवाले को हमारे साथ बैठाया। एक पुलिस की गाड़ी हमारे आगे कर दी। तब तक राकेशजी की बिटिया का फोन आ गया था। उनके छोटे भाई नौगांव से निकल गए थे। बिटिया से मेडिकल हिस्ट्री पूछकर ईसीजी के फोटो निकालकर डॉक्टर को भेज चुका था।

रात दस बजे हम झांसी शहर में प्रवेश कर रहे थे। रास्ते में एक बारात सड़क घेर कर खड़ी थी। यहां एक एक मिनट कीमती था और वह फटाखे फोड़ रहे थे, बहुत जमकर गुस्सा आ रहा था लोग क्यों सड़कों को अपने पिताजी की संपत्ति समझ लेते हैं। एम्बुलेंस तक को रास्ता देने को तैयार नहीं। डीजे की आवाज में एम्बुलेंस का सायरन गुम था। जैसे—तैसे निकले आखिर मेडिकल कॉलेज के वार्ड नंबर छह में दाखिल हो गए। डॉ आलोक शर्मा की टीम तैनात थी। इलाज शुरू हो गया था। बीपी नार्मल बता रहा था। तमाम जांचें शुरू हो चुकी थीं।

डॉक्टरों ने बताया ​कि हालात नियंत्रण में है, बाकी रिपोर्ट आने के बाद पता चलेगा। तब तक राकेशजी के भाई भी आ गए थे, और भी कई लोग थे। मेरी जिम्मेदारी पूरी हुई। ललितपुर कलेक्टर, टीकमगढ़ कलेक्टर, निवाड़ी तहसीलदार जो भी उस वक्त मदद कर रहे थे सभी को अपडेट किया और ईश्वर का शुक्रिया कहा जो सही समय पर सही निर्णय ​लेने की ताकत दी।

उन सभी साथियों, प्रशासन का शुक्रिया जो ऐसे कठिन वक्त में मददगार बने। कितना अच्छा हो कि हर संकट में पड़ी जान बचाने के लिए ऐसे ही आगे आए।


ईश्वर राकेशजी को जल्दी से सेहतयाब करे।

इस बहाने कुछ लर्निंग्स खासकर अकेले यात्रा कर रहे हों तो…
— यात्राओं में कोशिश करें कि अपना फोन हमेशा फुल चार्ज पर रखें। या कोशिश करें कि कोई लंबी बैटरी बैकअप वाला एक्स्ट्रा फोन रखें।
— पैटर्न लॉक हो तो अपने इमरजेंसी नंबर्स को फोन पर लिखकर रखेंं। अपना आईडी कार्ड या विजिटिंग कार्ड भी फोन में रखें।
— बैगेज कम से कम हो।
— अपने कुछ खास लोगों को अपनी यात्रा के बारे में बताकर रखें।
— यात्रा करते समय अपने आसपास के यात्रियों से परिचय कर लें तो अच्छा, हालांकि आजकल बैठते ही सब मोबाइल ​में ऐसे खो जाते हैं कि बा​जू वाले का मुंह भी नहीं देखते।

(पत्रकार राकेश मालवीय की फेसबुक वॉल से साभार)

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