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क्या PM मोदी के अतिआत्मविश्वास और बड़बोलेपन ने देश को महामारी की विभीषिका में धकेला?

विपक्ष का आरोप है कि केंद्र सरकार ने अपनी वैश्विक छवि चमकाने के लिए बड़ी मात्रा में वैक्सीन के डोज दूसरे देशों को भेज दिए।

नई दिल्ली (जोशहोश डेस्क) देश में कोरोना के कहर के बीच वैक्सीन की किल्लत ने हालात बिगाड़ दिए हैं। कोरोना की भयावहता के चलते देश में वैक्सीन की अचानक बड़ी मांग से स्थिति और गंभीर हो चुकी है। आलम यह है कि अब 45 प्लस के लोगों को भी वैक्सीन उपलब्ध हो नहीं पा रही है और 18 प्लस के लोगों को टीके की घोषणा तो शुरुआत से ही फुस्स पटाखा साबित हो चुकी है। भारत में वैक्सीन का सबसे बड़ा उत्पादक सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया भी अपने अंतर्राष्ट्रीय अनुबंधों के दबाव में नज़र आ रहा है।

ऐसे में मोदी सरकार वैक्सीन की किल्लत को लेकर बुरी तरह घिरी हुई नजर आ रही है। विपक्षी दल केंद्र सरकार की वैक्सीन डिप्लोमेसी पर सवाल उठा रहे हैं। विपक्ष का आरोप है कि देश की जरूरतों को नजरअंदाज कर केंद्र सरकार ने अपनी वैश्विक छवि चमकाने के लिए बड़ी मात्रा में वैक्सीन के डोज दूसरे देशों को भेज दिए। सरकार की अदूरदर्शिता से देश में वैक्सीन की मांग और आपूर्ति में बड़ा अंतर पैदा हो चुका है।

वैक्सीन की मांग और आपूर्ति में बड़े अंतर से उत्पन्न संकट का क्या कारण रहा? केंद्र सरकार से कहां और क्या चूक हुई? और कोरोना की दूसरी लहर कैसे देश में तबाही का कारण बन गई? इन सवालों के जवाब तलाशने बीते कुछ घटनाक्रम पर नजर डालते हैं?

बीते साल सितंबर के अंत तक देश में कोरोना की पहली लहर ढलान पर थी रोजाना करीब 70 हजार केस आ रहे थे। इस समय केंद्र सरकार दूसरी लहर के खतरे से बेपरवाह कोरोना से जीत के दावे करती नजर आने लगी थी। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सितंबर के अंत में संयुक्त राष्ट्र महासभा तक में यह ऐलान कर दिया कि विश्व के सबसे बड़े वैक्सीन उत्पादक देश के तौर पर आज मैं वैश्विक समुदाय को आश्वासन देना चाहता हूं कि भारत की वैक्सीन प्रोडक्शन और वैक्सीन डेलिवरी क्षमता पूरी मानवता को इस संकट से बाहर निकालने के लिए काम आएगी।

सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया (SII ) इस समय तक इंटरनेशनल वैक्सीन अलायंस Gavi और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के साथ समझौता कर चुका था। जिसके तहत भारत के साथ दूसरे कम और कम मध्य आय वाले देशों (LMICs) के लिए कोविड-19 वैक्सीन की 100 मिलियन डोज की मैन्युफैक्चरिंग और डिलीवरी की जानी थी और SII इसके लिए बाध्य था।

16 जनवरी से देश में धूूमधाम से वैक्सीनेशन अभियान शुरू किया गया। जुलाई तक देश में 35 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाए जाने का लक्ष्य था। अभियान के पहले दो सप्ताह में 39 लाख लोगों को वैक्सीन लगाई गई जबकि इस अवधि में 1.6 करोड़ डोज दूसरे देशों को भेजे जा चुके थे।

भारत में अभी वैक्सीन अभियान शुरू हुए तीन दिन भी नहीं हुए थे की केंद्र सरकार और विदेश मंत्रालय ने 20 जनवरी को ‘वैक्सीन मैत्री’ कार्यक्रम लांच कर दिया। इस समय तक कुछ भारतीय मीडिया संस्थान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वैश्विक छवि को निखारते हुए उन्हें ‘वैक्सीन गुरू’ तक का तमगा भी दे चुके थे।

मार्च 2021 की शुरुआत में स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने एलान कर दिया कि भारत में कोविड-19 महामारी ‘अब ख़ात्मे की ओर’ बढ़ रही है। 30 मार्च तक देशभर में 6,11,13,354 लोगों को कोरोना वायरस की वैक्सीन लगी। वही वैक्सीन डिप्लोमेसी के तहत 6 करोड़ से ज्यादा डोज दूसरे देशों को भेजे जा चुके थे। यह वह दौर था जब अमेरिका और कनाडा जैसे अमीर देश अपने नागरिकों के लिए सभी संभव स्रोत से वैक्सीन इकट्ठा कर रहे थे।

वैक्सीन मैत्री कार्यक्रम के तहत 8 मई 2021 तक 94 देशों को 6.63 करोड़ टीके मुहैया कराए गए। जिसमें अनुदान, व्यवसायिक खरीद और WHO के कोवैक्स कार्यक्रम में अंशदान के तौर पर दिए गए टीके शामिल थे। इसमें बड़ा हिस्सा 3.57 करोड़ टीकों का बिक्री के तौर पर है, जबकि 1.98 करोड़ टीके कोवैक्स कार्यक्रम के लिए दिए गए। अनुदान के तौर पर 1.07 करोड़ टीके भारत ने दिए।

वैक्सीन मैत्री में भी भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश को बहुत प्राथमिकता मिली। बांग्लादेश सदैव की भारत का मित्र देश रहा लेकिन पश्चिम बंगाल में चुनाव के चलते बीते दो महीनों में बांग्लादेश भारतीय राजनीति में भी सुर्खियों में रहा।

पश्चिम बंगाल में चुनाव के दौरान ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन के प्रवास पर बांग्लादेश पहुंचे और वहां शासकीय कार्यक्रमों के अलावा मतुआ समाज के कार्यक्रमों में सहभागिता की। मतुआ समाज पश्चिम बंगाल की राजनीति के लिहाज से बेहद अहम था।

इधर जब भी वैक्सीन की खेप लेकर जहाज विदेश के लिए रवाना होते विदेश मंत्री एस जयशंकर उसकी तस्वीर टवीट करते। भारत पर आने वाले संभावित खतरे से बेखबर सोशल मीडिया में इसे दुनिया को बचाने भारत का प्रयास मानकर वाहवाही होती रही।

यहां तक कि कनाडा में भारतीय जनता पार्टी के समर्थकों ने तो बकायदा शहरों में प्रधाममंत्री नरेंद्र मोदी के पोस्टर तक लगवा दिए जबकि कनाडा में भारत से इस समय तक केवल .5 मिलियन डोज ही पहुंचे थे।

कनाडा ने अपनी आबादी के लिए दुनिया भर से 11.4 मिलियन डोज का करार किया था। भारत से कनाडा पहुंची खेप केवल उसकी जरूरत का करीब पांच प्रतिशत ही थी लेकिन इसे जबर्दस्त तरीके से प्रचारित किया गया।

इस समय तक भारत वैक्सीन डिप्लोमेसी के रथ पर सवार था यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत के प्रतिनिधि गर्व से कहते नजर आए कि भारत ने अपने नागरिकों को जितनी वैक्सीन नहीं लगाई उससे कहीं ज्यादा दूसरे देशों को भेजी है। हाल ही में टीएमसी नेता यशवंत सिन्हा ने भी संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत के प्रतिनिधि के बयान का वीडियो ट्वीट कर यह मुद्दा उठाया था।

इसके बाद कहानी पूरी तरह बदलती नजर आई। चुनाव और धार्मिक आयोजनों ने देश को कोरोना की दूसरी लहर में धकेल दिया। इधर अमेरिका से कच्चा माल न समय पर न मिलने से सीरम इंस्टीटयूट की उत्पादन क्षमता में भी गिरावट आई यहां तक कि सीरम के सीईओ अदारपूनावाला ने मार्च के आखिरी सप्ताह में तीन देशों द्वारा कीमत चुकाए जाने के बाद भी वैक्सीन उपलब्ध कराने में असमर्थता जता दी।

दूसरी लहर के साथ अप्रैल का हर एक दिन भारत के लिए भयावहता की नई कहानियां लेकर आ रहा था। अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन की कमी ने सरकार की तैयारियों की पोल खोल दी थी। इस समय तक दुनिया भर को वैक्सीन बांट चुके भारत की महज दो प्रतिशत आबादी को ही वैक्सीन के दोनों डोज उपलब्ध हो सके थे।

इधर अप्रैल के अंतिम सप्ताह में पश्चिम बंगाल में विधानसभा और और उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव का आखिरी दौर में पहुंच रहा था। सरकार ने इस समय 18 साल से ज्यादा की उम्र के लोगों को भी वैक्सीन लगाए जाने का ऐलान कर दिया। एक मई से यह कार्यक्रम कई राज्यों में शुरू होना था लेकिन वैक्सीन की कमी यहां आड़े आ गई। लगभग सभी राज्यों में कार्यकम को स्थगित करना पड़ा। इनमें भाजपा शासित राज्य भी शामिल थे।

फजीहत होते देख सरकार ने तीन मई को 34 करोड़ वैक्सीन के डोज आर्डर किए। इनमें से 26 करोड डोज का आर्डर सीरम इंडिया को और 8 करोड डोज का आर्डर भारत बायोटेक को दिया गया। सीरम इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला ने प्रेस रिलीज जारी कर साफ कह दिया कि इतना प्रोडक्शन रातों रात संभव नहीं। इस समय तक अदार पूनावाला भारत में वैक्सीन उपलब्ध कराए जाने के बढ़ते दबाव के कारण गुपचुप इंग्लैंड रवाना हो चुके थे।

वैक्सीन के अभाव में अप्रैल के अंत तक भारत में रोजाना नए केस की संख्या चार लाख तक पहुंच चुकी थी। मौतों की संख्या भी रिकाॅर्ड तोड़ रही थी लेकिन दुर्भाग्य यह रहा कि वैक्सीन के उत्पादन के बाद भी वैक्सीन डिप्लोमेसी के चलते मई के मध्य तक देश में केवल दस प्रतिशत लोग ऐसे थे जिन्हें वैक्सीन की पहली खुराक मिल पाई थी वहीं तीन प्रतिशत लोग ऐसे थे जो वैक्सीन की दोनों खुराक ले चुके थे।

अब सरकार को भी यह समझ आ चुका था कि केवल दो कंपनियों के भरोसे देश की पूरी आबादी को वैक्सीन लगवाना संभव नहीं। अब सरकार अन्य कंपनियों में निवेश के साथ ही वैक्सीन के आयात के विकल्प पर भी काम कर रही है लेकिन यह काम काफी पहले किया जाना था।

विशेषज्ञों के मुताबिक सरकार अब काफी लेट हो चुकी है और जबकि पूरे विश्व में वैक्सीनेशन का काम तेजी से चल रहा है भारत में वैक्सीनेशन प्रक्रिया धीमी पड़ चुकी है। नतीजा यह है कि रोजाना नए केसों की संख्या में कमी के बाद भी मौतों की संख्या में कमी नहीं आ रही है और गांव में हालात बेकाबू दिखाई दे रहे हैं।

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