बापू के साबरमती आश्रम पर 1200 करोड़ खर्च, कितना जायज?

कहा जा रहा है कि साबरमती आश्रम पर 1200 करोड़ के खर्च से बापू की सादगी और किफायत का पूरा दर्शन ही परास्त हो जाएगा।

अहमदाबाद (जोशहोश डेस्क) गुजरात के अहमदाबाद में स्थित महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम को बारह सौ करोड़ की लागत से विकसित करने की योजना का कई गांधीवादी विरोध कर रहे हैं। यही नहीं महात्मा गांधी के पड़पोते तुषार गांधी भी गुजरात सरकार की इस योजना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। यह कहा जा रहा है कि साबरमती आश्रम पर 1200 करोड़ के खर्च से बापू की सादगी और किफायत का पूरा दर्शन ही परास्त हो जाएगा।

तुषार गांधी गुजरात सरकार की योजना के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट भी गए थे जहां इस याचिका को खारिज कर दिया गया था। याचिका में तुषार गांधी ने कहा था कि करीब 1200 करोड़ रुपये की इस परियोजना से इस ऐतिहासिक महत्व वाले आश्रम और इसके संचालन की मूल प्रकृति प्रभावित होगी इसलिए इसे रद्द कर आश्रम को उसके मूल स्वरूप में संरक्षित किया जाना चाहिए।

बड़ी बात यह है कि गुजरात सरकार की ओर से हाईकोर्ट में यह केस आने पर एक छोटा सा जवाब दे दिया गया था कि साबरमती आश्रम के मूल ढांचे को नहीं छुआ जा रहा है। हाईकोर्ट ने सरकार के जवाब से संतुष्ट होकर तुषार गांधी की याचिका खारिज कर दी थी।

वहीं गांधीवादियों का कहना है कि बापू की अपनी जिंदगी सादगी और त्याग की एक मिसाल रही। उन्होंने एक धोती को काटकर दो टुकड़े किए और एक वक्त पर एक टुकड़े से ही अपना काम चलाया। वे कम से कम सामान और खपत के साथ जीते थे, अपने खुद के तमाम काम खुद करते थे, और उनके आश्रमों की जिंदगी भी बहुत ही किफायत की थी।

वरिष्ठ पत्रकार सुनील कुमार लिखते हैं कि यह सोच पाना भी तकलीफ देता है कि गांधी के आश्रम को विकसित करने पर बारह सौ करोड़ रूपए खर्च किए जा रहे है और उस देश में खर्च किए जा रहे हैं जहां आबादी का एक बड़ा हिस्सा आज भी गरीबी की रेखा के नीचे है, भूख की कगार पर है, जिसके बच्चे कुपोषण के शिकार हैं, जिन्हें ठीक से इलाज नसीब नहीं है, जिन्हें ठीक से इंसाफ नसीब नहीं है।

उन्होंने यह भी लिखा कि आज सरकारों के फैसले नेताओं और ठेकेदारों को फायदा देते हैं, फिर चाहे वे गांधी की स्मृतियों को कुचल देने की कीमत पर ही क्यों न हों। जिन लोगों को आज गांधी को गालियां देने वालों को और गोडसे का महिमामंडन करने वालों को संसद पहुंचाने में ओवरटाईम करना सुहा रहा है, वे अगर गांधी की स्मृति पर हजारों करोड़ रूपए खर्च करने जा रहे हैं, तो वह गांधी के लिए नहीं है, नेता, आर्किटेक्ट, और ठेकेदार के भले के लिए है।

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